Home हमारे लेखकजलज कुमार मिश्रा साहित्यिक चोरी की परम्परा और कटघरे में खड़े होते भिखारी ठाकुर

साहित्यिक चोरी की परम्परा और कटघरे में खड़े होते भिखारी ठाकुर

by Jalaj Kumar Mishra
905 views

वैसे तो साहित्य चोरी कि परम्परा बहुत पुरानी है‌ और इससे कोई भी भाषा अछूती नही है। भिखारी ठाकुर भोजपुरीआ इलाके का एक ऐसा नाम जिनकी नाच पार्टी अपने दौर की सबसे महँगी नाच पार्टी थी। कलकत्ता के पृष्ठभूमि से भिखारी ठाकुर अपने नाच पार्टी की शुरुआत करते है और पुरबी लोगों में बहुत जल्दी प्रचलित होते चले जाते हैं।

आज उनकी पुण्य तिथि है। भोजपुरी भाषा का प्रसार उन्होंने जो अपनी नाच पार्टी के माध्यम से किया उसके लिए उनका पुण्य स्मरण है। आज का विषय थोड़ा कुछ दूसरा है।

90 के दशक के बाद भिखारी ठाकुर को ऐसे खड़ा करने की पुरजोर कोशिश होने लगती है जैसे भिखारी ठाकुर को भोजपुरी साहित्य के एक हजार वर्ष के इतिहास में सबसे बड़ा बना कर छोड़ना है। भिखारी ठाकुर पर पहली किताब महेश्वराचार्य ने लिखी तब तक भिखारी ठाकुर समान्य थे।

उसके बाद वामपंथी फौज उतरती है भिखारी ठाकुर का महिमामंडन करने और उसके बाद भिखारी ठाकुर जैसे रामभक्त आदमी को जबरदस्ती प्रगतिशील बना दिया जाता है। अविनाश चंद्र विद्यार्थी ने भिखारी ठाकुर की रचनाओं को पढ़ने लायक बनाया। वामपंथी पोस्टर बाॅय संजीव भिखारी ठाकुर की जीवनी पर उपन्यास लिखने पहुँचते है और जीवनी के नाम पर मार्क्सवादी एजेन्डा लिख कर आ जाते हैं। संजीव सरनेम के आधार पर उस आदमी तक के बारे में उल्टा पुल्टा लिख देते है जिसने भीखारी ठाकुर की रचनाओं को सराहा है। उस समय कोई हाय तौबा नही होती है क्योंकि दौर ही वही रहता है।

भिखारी ठाकुर के नाम से जोड़कर एक रचना प्रचारित की जाती है जिसका नाम बिदेसिया है। बिदेसिया की नाही शैली भिखारी ठाकुर की है और ना ही इसकी केन्द्र वाली रचना उनकी है! लेकिन आज यह कहे कौन ! वामपंथी लाॅबी के सामने खड़ा कौन होगा भाई! लोगों ने मान रखा है कि साहित्य में उसी की पुछ होगी जिसको यह लाॅबी सर्टिफिकेट देगा! मोदी युग में भी साहित्य अकादमी का पुरस्कार इसी लाॅबी को जाता है। खैर बात करते है साहित्य अकादमी से छपी एक किताब जो मोनोग्राफ की शक्ल में भिखारी ठाकुर पर केन्द्रित है और जिसके लेखक डाॅ. तैयब हुसैन ‘पीड़ित’ हैं। उस किताब में तैयब जी लिखते है कि ” यद्यपि सुन्दरी बाई, सुन्दरी बिलाप और भिखारी ठाकुर के गीतो के टेको को छोड़कर एकरूपता नही है तब भी सुन्दरी के गीत ,सुन्दरी बिलाप‌ और बिदेसिया की नायिका ‘प्यारी सुन्दरी’ की समानता महज संयोग कहकर झूठलाई नही जा सकती।तीनों का कथानक एक सा है। डाॅ. तैयब हुसैन ‘पीड़ित’ की पीएचडी भिखारी ठाकुर पर ही है। तैयब जी यह बात खुल कर स्वीकार करने का साहस नही जुटा पाते हैं।

बिदेसिया के संदर्भ में बिहार राष्ट्र भाषा परिषद से जुड़े डाॅ बजरंग वर्मा, नाट्य साहित्य : परम्परा और कथानक में उद्धृत किए जाते कि बिदेसिया भिखारी ठाकुर की रचना नही है। लेकिन वह यह कहने का साहस नही जुटा पाते है कि भिखारी ठाकुर ने नकल की चाहे चोरी की।

आलोचना करने वालों का धर्म होता है कि वर्तमान दौर के सृजन का सत्य उद्घाटित करे! सन 1960 मे बिहार राष्ट्र-भाषा परिषद,पटना से एक किताब आती है जिसका नाम था पंचदश लोकभाषा-निबंधावली! यह वह दौर था जब भिखारी ठाकुर जिवित थे और उस समय के दौर में साहित्यिक आलोचक सत्य का उद्घाटन नही छोड़ते थे।
इस किताब के माध्यम से हिन्दी साहित्य के मर्मज्ञ और राष्ट्र-भाषा परिषद संचालक बैधनाथ पाण्डेय लिखते है कि बिदेसिया गीत ‘सुन्दरी बिलाप’ नामक पुस्तक में मिली है और इसके लेखक पंडित रामशक्ल पाठक ‘द्विजराम’ हैं। पाठक बक्सर के सहनीपट्टी मुहल्ले के निवासी थे। भिखारी ठाकुर की बिदेसिया गीत सुन्दरी बिलाप (1906) की हू-ब-हू नकल है। इसलिए बिदेसिया के सर्वप्रथम‌ रचयिता भी पंडित राम शक्ल पाठक ‘द्विजराम’ जी ही है। पाठक जी के मरने के बाद बिदेसिया भिखारी ठाकुर के नाम से छपती है।
इस बात का खंडन‌ उस दौर में किसी ने नही किया। किसी भी मंच से भिखारी ठाकुर ने कभी यह खुद से नही कहा कि वह बिदेसिया के रचयिता है। लेकिन‌ बिदेसिया को भिखारी ठाकुर के नाम‌ से चिपका दिया गया और आज तक जबरदस्ती चिपकाये घुमा जा रहा हैं। आज के विमर्शकारों को सोचना चाहिए कि जिस दौर में क्रेडिट ही सबकुछ हो! उस दौर में अगर आप किसी और के काम का क्रडिट किसी और को देंगे तो यह अन्यायपूर्ण होगा।
अंत में एक बात और कहना चाहुँगा कि नाच में रंगकर्म का अद्भुत प्रयोग करने वाले भिखारी ठाकुर को भोजपुरी के समानुपाती खड़ा करने की जो बिना सिर पैर वाली कोशिश हो रही है उससे नुकसान सिर्फ भोजपुरी का है।
भोजपुरी साहित्य के पास एक अत्यंत समृद्ध परम्परा है। भोजपुरी के समानुपाती भिखारी ठाकुर को खड़ा करना भोजपुरी के कालखंड से एक छल करना है। भोजपुरी के समानुपाती कबीर दास हो सकते है! गुरु गोरखनाथ हो सकते है लेकिन भिखारी ठाकुर नही! भोजपुरी का आधार स्तम्भ इतना मजबूत है कि इसको किसी छिछले वामपंथी विमर्श की जरुरत नही है।
भोजपुरी के लिए उसका हर बेटा उतना ही महत्वपूर्ण है जिसने किसी भी रुप में उसके लिए कुछ ना कुछ किया है।
नोट : इस लेख की भाषा हिन्दी सिर्फ इसलिए है कि गैर भोजपुरी भाषाओ तक भी यह बात पहुँच सके।

Related Articles

Leave a Comment