Home विषयइतिहास विजयादशमी अधर्मी पर धर्म के विजय का दिन

विजयादशमी अधर्मी पर धर्म के विजय का दिन

by Jalaj Kumar Mishra
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विजयादशमी अधर्मी पर धर्म के विजय का दिन है। मानवतावाद ही नही कोई भी वाद सिर्फ मवाद होता है और कोई भी इज्म सिर्फ षड्यंत्र होता है।‌ धार्मिक होना मानव होने की पहली शर्त है और इस दुनिया में सिर्फ एक‌ ही धर्म है बाकी सब सम्प्रदाय हैं। धर्म अजेय है और इसके साथ रहने पर आपका हमारा सबका विजय सुनिश्चित है।
जितना जल्दी हम यह समझ जायें कि जो हमारे धर्म के साथ नही है इसका सीधा और स्पष्ट मतलब है कि वह अधर्मी और कुकर्मी है, हमारा कल्याण होगा।धर्म के पक्ष में हमारी निष्ठा हमारे वंशों के भविष्य को लिखता है। कभी जाकर उनकी छटपटाहट को महसूस कीजिए जिनके पुरखों ने चंद सिक्कों की लालच में धर्म छोड़ दिया चाहे तलवार के डर से धर्म से विमुख हो गये। हमारे और आपके पुरखों ने हम सभी को गर्व और गौरव दिया है।
राष्ट्र और धर्म एक दूसरे के समानुपाती है। धर्म है तभी राष्ट्र की संकल्पना है। विदेशी अरबी लुटेरे जब यहाँ नही आये थे उसके बहुत पहले से हिन्दू शब्द और हिन्दुस्तान यहाँ पर है। वामपंथी कुपढ़ो और पेड बुद्धिजीवी समुदाय को बृहस्पति आगम में लिखित हिंदुस्तान की परिभाषा अवश्य पढ़ना चाहिए जिसमें लिखा है कि :-
“हिमालयात् समारंभ्य यावत इन्दु सरोवरम् । तद्देव निर्मितम् देशम् हिंदुस्तानम् प्रचक्षते।।”
अर्थात हिमालय से प्रारंभ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव-निर्मित देश हिन्दुस्तान कहलाता है।
आज के दिन हिन्दी में एक‌ नयी पत्रिका ‘राष्ट्रवाक्’ का श्रीगणेश किया जा रहा है। यह पत्रिका राष्ट्र और सनातन के विचारों को नयी पीढ़ी में नयी दृष्टि देने वाली होगी इस उम्मीद के साथ इस पत्रिका के प्रवेशांक का कवर आप सभी के बीच रख रहा हूँ। इस पत्रिका में सम्पादक का दायित्व आदरणीय कमलेश कमल भैया देख रहे हैं। मैं इसमें सहयोगी की भूमिका में दिखता रहूँगा। एक नवम्बर को इसका प्रवेशांक आप सभी के मध्य होगा। साथ में आनंद कुमार भैया, सर्वेश तिवारी ‘श्रीमुख’ भैया और पीयूष द्विवेदी ‘भारत’ भैया भी दिखाई देंगे।

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