राजनीति भी व्यापक मानवीय संस्कृति का एक प्रमुख आयाम है। भारतीय जनमानस के लिए राजनीति कभी अस्पृश्य या अरुचिकर नहीं रही। स्वतंत्रता-आंदोलन के दौर से ही राजनीति जनसेवा एवं सरोकारों के निर्वाह का सशक्त माध्यम रही। स्वतंत्रता के बाद के…
प्रांजय कुमार
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नियति बलवान होती है। कभी-कभी कैसे-कैसे संदर्भों में कोई साधारण-सी बात महत्त्वपूर्ण हो जाया करती है। अब इस लेख और उससे भी अधिक इस दिवस का मेरी स्मृतियों में विशेष स्थान है। घर पर ‘दैनिक जागरण’ आता था। पिता जी…
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अगर आप किसी स्कूल में शिक्षा देने वाले अद्यापक है तो आपका परिधान क्या होना चाहिए यह आजकल कुछ शिक्षक भूल चुके है तभी तो किसी भी सरकारी स्कूल में आपको ऐसे एक या दो शिक्षक मिल जायेंगे जो स्कूल…
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अर्थव्यवस्थाप्रांजय कुमारमुद्दासामाजिकसाहित्य लेख
आज भारत सबसे अलग सबसे जुदा सबसे द्रण
by Pranjay Kumar 214 viewsश्रीलंका के कोलैप्स हो जाने पर भारत के जोकर बुद्धिजीवियों के 2 वर्ग देखे गए पहला जो “हमारे वाले कब झोला लेकर निकल रहे” और दूसरे वो जो भारत के भी ढह जाने का भय दिखा रहे थे। अंग्रेजों में…
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बीजेपी की यह भूल ऐतिहासिक सिद्ध होगी। जिस मुश्किल वक्त में बीजेपी ने नूपुर शर्मा जी और नवीन जिंदल जी से किनारा किया है, कहीं यह भूल बीजेपी के लिए ताबूत की आख़िरी कील न सिद्ध हो! संकट में…
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जाति धर्मज्ञान विज्ञानप्रांजय कुमाररोजगारशिक्षा
आर्य आक्रमणकारी थे : यूपीएससी टॉपर श्रुति शर्मा
by Pranjay Kumar 384 viewsजामिया से पढ़ी और यूपीएससी में टॉप करने वाली श्रुति शर्मा खुलेआम कह रही हैं कि – ”आर्य आक्रमणकारी थे।” जब तक हम केवल अकूत पैसे और पावर के कारण आईएएस/आईपीएस एवं अन्य सरकारी बाबुओं को सिर-माथे बिठाते रहेंगें, ये…
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आदरणीय शुभेच्छुओं एवं स्नेही स्वजनों आत्मीय नमस्कार। ईश्वर की कृपा, बड़ों के आशीर्वाद और आप सबकी शुभकामनाओं के कारण मुझे सदैव पात्रता से अधिक मिला है। मुझ जैसे अकिंचन और अति साधारण व्यक्ति का किसी राष्ट्रीय चैनल पर आना,…
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राजनीतिप्रांजय कुमार
जातीय नहीं, राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक अस्मिता तथा विकास और सुशासन की राजनीति
by Pranjay Kumar 357 viewsजातीय नहीं, राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक अस्मिता तथा विकास और सुशासन की राजनीति अथवा विकास व सुशासन के साथ-साथ राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक चेतना के सतत प्रवाह एवं सम्यक बोध की राजनीति (या आप ही कोई उपयुक्त शीर्षक दें) इस देश ने…
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लेखक के विचारनयाप्रांजय कुमारसामाजिकसाहित्य लेख
यात्राएँ दो सभ्यताओं को जोड़ती हैं
by Pranjay Kumar 419 viewsयात्राएँ जोड़ती हैं, मोहती हैं, माँजती हैं। यात्राएँ दरिया हैं, पता नहीं कब सागर से मिला दे और अखण्ड के, कुल के एहसास से सराबोर कर जाए। यात्राएँ मन-मस्तिष्क पर छाए वे स्मृति-बादल हैं जो बरसकर आपका पोर-पोर भिंगो जाते…
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परम्पराएप्रांजय कुमारसामाजिक
रंगों के त्योहार होली की पुनश्च अनंत-अशेष शुभकामनाएँ
by Pranjay Kumar 522 viewsरंग, रस, रूप, गंध के बिना जीवन नीरस और बेस्वादा रह जाता है। सनातन संस्कृति में इनमें से किसी की उपेक्षा नहीं की गई। जीवन का उत्सव है सनातन। जीवन के हर दिन, हर पल को उल्लासमय बनाना हो तो…