दी। ‘अच्छा हुआ जो तुम खुद ही आ गए।’
स्वीकार कर चतुर्वेदी जी आंखों पर चश्मा चढ़ाते हुए बोले, ‘दरअसल मैंने किसी को बुलाया ही नहीं। व्यर्थ का तामझाम होता।’ वह बोले, ‘बस घर के लोग और रिश्तेदार ही आए हैं बारात में।’
हो।’ वह बोले, ‘आइए बाकी रस्में भी पूरी कर ली जाएं।’ ‘हां, हां क्यों नहीं।’ कह कर चतुर्वेदी जी श्रीवास्तव जी के साथ-साथ विवाह मंडप की ओर बढ़ चले।