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तेरी मेरी कहानी

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कहते हैं जादू सरसो पे पढ़े जाते हैं, तरबूज पर नहीं। तो लखनऊ वही सरसो है , जहां कहानियों का जादू सिर चढ़ कर बोलता है। कहानी मन में भी लिखी जाती है। सिर्फ़ काग़ज़ पर कलम से ही नहीं। उंगलियों से कंप्यूटर , लैपटॉप या मोबाइल पर ही नहीं। कहानी दुनिया भर में दुनिया की सभी भाषाओँ में लिखी गई है। पर लखनऊ में जैसी और जिस तरह की कहानियां लिखी गई हैं और निरंतर लिखी जा रही हैं , कहीं और नहीं। हर शहर की अपनी तासीर होती है पर लखनऊ की तासीर और तेवर के क्या कहने। माना जाता है कि हिंदी की पहली कहानी लखनऊ में ही लिखी गई। वह कहानी है रानी केतकी की कहानी। जिसे इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ ने लिखी। रानी केतकी की कहानी पहली कहानी है हिंदी की या कोई और कहानी इस पर विवाद हो सकता है। हो। पर यह तो तय है कि लखनऊ में हिंदी की पहली कहानी रानी केतकी की कहानी लिखी गई । गो कि इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ मुर्शिदाबाद में पैदा हुए और मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय के काल में दिल्ली आ गए। कहते हैं कि अपने बुद्धि चातुर्य और मसखरेपन की वजह से इंशा छा गए। लखनऊ आ गए जहां आसिफुद्दौला का शासन था। यहाँ भी शाह आलम के पुत्र मिर्ज़ा सुलेमान शिकोह के दरबार में प्रभुत्व जमा लिया। जो भी हो मुसहफ़ी ने इनके बारे में कहा था – वल्लाह कि शायर नहीं है तू, भाँड है भड़वे। खैर इन्हीं इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ ने रानी केतकी की कहानी हालां कि उर्दू लिपि में लिखी है लेकिन बाबू श्याम सुंदर दास इसे हिन्दी की पहली कहानी मानते हैं। ठीक वैसे ही जैसे जायसी ने पद्मावत फारसी लिपि में लिखी है , जुबान इस की अवधी है। पर आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इस का हिंदी में लिप्यांतरण करवाया और स्थापित किया कि जायसी की पद्मावत हिंदी की रचना है। तो रानी केतकी की कहानी भी बकौल श्याम सुंदर दास हिंदी की पहली कहानी है। इस का रचनाकाल 1803 ईस्वी के आस-पास माना जाता है। कथा-लखनऊ की पहली कहानी भी इसी लिए इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा’ की रानी केतकी की कहानी ही है।
राजा राम के प्राचीन कोसल राज्य का हिस्सा था कभी लखनऊ। राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को इसे सौंप दिया था। पहले इस का नाम लक्ष्मणपुरी था। बदलते-बदलते लखनपुरी हुआ फिर लखनपुर और अब लखनऊ। पुराने लखनऊ में कुछ लोग इसे नखलऊ भी कहते हैं। तो जैसे लक्ष्मणपुरी नगर ने कई रंग देखे हैं अपने नाम के वैसे ही कथा-लखनऊ ने भी अपने कई ठाट देखे हैं। जब कथा-लखनऊ की योजना बनाई तो शुरू में सोचा कि लखनऊ के समकालीन कहानीकारों की ही कहानी ही ले कर इतिश्री कर लूं। फिर ध्यान आया कि इस लखनऊ में कथा की एक त्रिवेणी भी थी। यशपाल , भगवती चरण वर्मा और अमृतलाल नागर की। तो इस त्रिवेणी में डुबकी मारना कैसे छोड़ दूं। इस त्रिवेणी के बिना लखनऊ का कथा साहित्य अधूरा है। इतना ही नहीं यह त्रिवेणी भी अधूरी है। वास्तव में 1937 से 1955 तक लखनऊ में एक चतुष्टई हुआ करती थी। यशपाल , भगवती चरण वर्मा , अमृतलाल नागर और गंगा प्रसाद मिश्र की। पर जाने क्यों इस चतुष्ट में से गंगा प्रसाद मिश्र को अनुपस्थित कर त्रिवेणी बना दी गई। तब जब कि उन की कहानियों में पल-प्रतिपल लखनऊ धड़कता हुआ मिलता है। गंगा प्रसाद मिश्र के लेखकीय अवदान को भी भुला दिया गया। यह एक अलग कथा है। ख़ैर जब इस चतुष्टई को कथा-लखनऊ में लिया तो प्रेमचंद को कैसे न लेता। प्रेमचंद ने भी लखनऊ में खासा समय गुज़ारा है। प्रेमचंद के समकालीन अली अब्बास हुसैनी और हयातुल्ला अंसारी को भी कैसे भूल जाता। फिर याद आया सुमित्रानंदन पंत और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और महादेवी वर्मा भी लखनऊ में रही हैं। हजारी प्रसाद द्विवेदी , इलाचंद्र जोशी से लगायत मनोहर श्याम जोशी तक का भी लंबा सिलसिला है। आचार्य चतुरसेन शास्त्री , शिवपूजन सहाय भी लखनऊ में दुलारेलाल भार्गव के गंगा पुस्तक माला से जुड़े रहे। कहा जाता है कि शिवपूजन सहाय ने तो प्रेमचंद लिखित रंगभूमि का संपादन भी किया था। फिर तय किया कि इंशा अल्ला खाँ ‘इंशा की रानी केतकी से लगायत उन सभी कथाकारों की कहानी इस कथा-लखनऊ में रखूं जो लखनऊ में पैदा हुए या लखनऊ में रहे। लखनऊ से जिस भी किसी कथाकार का वास्ता था या है उन सभी कथाकारों को कथा-लखनऊ का मैं नगीना मानता हूं। लखनऊ की आबोहवा जिस भी कथाकार ने हासिल की , लखनऊ की माटी और पानी को जिस भी किसी कथाकार ने जिया सब का मणि-कांचन संयोग कथा-लखनऊ का नसीब है।
कथा-लखनऊ का एक विरल सौभाग्य यह भी है कि इस में दो परिवारों की तीन-तीन लोगों की कथा भी शामिल है। जैसे अमृतलाल नागर की तीन पीढ़ी है। अमृतलाल नागर की कहानी तो है ही , नागर जी की बेटी अचला नागर की भी कहानी है। अचला नागर की बहू सविता शर्मा नागर की भी कहानी है कथा-लखनऊ में। इतना ही नहीं , अमृतलाल नागर के अनुज मदनलाल नागर की पेंटिंग भी कथा-लखनऊ के कवर के रुप में कुछ खंड में उपयोग कर रहे हैं। इसी तरह सज़्ज़ाद ज़हीर की कहानी के साथ ही उन की पत्नी रज़िया सज़्ज़ाद ज़हीर और बेटी नूर ज़हीर की भी कहानी है। इसी तरह गंगा प्रसाद मिश्र की बेटी इंदु शुक्ला की कहानी भी इस कथा-लखनऊ का गौरव है । इतना ही नहीं , सुखद यह है कि तीन पीढ़ियों ही नहीं , कथा-लखनऊ तीन सदी की कहानियों से लबरेज है। कह सकते हैं कि यह कथा-लखनऊ , लखनऊ के कथाकार पुरखों को प्रणाम करते हुए समकालीनों को साथ लिए नए कथाकारों के स्वागत में भी नत है। बहुत कम लोग जानते हैं कि दुनिया में पांच लखनऊ हैं। सिर्फ़ भारत में ही नहीं। कनाडा , सूरीनाम , त्रिनिदाद और गोयना में भी लखनऊ शहर हैं। कुछ ऐसे सामर्थ्यवान लोग आए लखनऊ और लौट कर लखनऊ की मोहब्बत में नए-नए लखनऊ बसाए अपने-अपने देश में। लखनऊ का दुनिया में कोई जोड़ नहीं है। बेजोड़ है लखनऊ। जैसे लखनऊ शहर बेजोड़ है , वैसे ही लखनऊ कहानियों और कहानीकारों का भी बेजोड़ शहर है।
और शहरों में कवि , शायर ज़्यादा मिलते हैं। लेकिन लखनऊ ही ऐसा शहर है जहां कथाकार भी बहुत मिलते हैं। ऐसे जैसे लखनऊ सिर्फ़ बाग़ों का ही नहीं कथाकारों का भी शहर है। बारहा कोशिश की है कि लखनऊ के आदि से ले कर अब तक के सभी नए-पुराने कथाकारों की सांस और खुशबू कथा-लखनऊ की धरोहर बने। इसी गरज से मशहूर और पायेदार कथाकारों के साथ ही भूले-बिसरे कथाकारों की कहानियों को भी खोज-खोज कर इस संकलन में परोस रहा हूं। कम लोग जानते हैं कि एक समय लखनऊ में रहे कुछ मशहूर कवियों ने भी बहुत अच्छी कहानियां लिखी हैं। जैसे पंत , निराला , महादेवी वर्मा , कुंवर नारायण , रघुवीर सहाय , विनोद भारद्वाज हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि महादेवी वर्मा 1952 में विधान परिषद सदस्य के तौर पर नामित थीं। तो इस सिलसिले में वह 6 बरस रहीं लखनऊ में। पंडित कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है : महादेवी वर्मा विधान परिषद में बहुत ही कम बोलती थीं, परंतु जब कभी महादेवी जी अपना भाषण देती थीं तब सारा हाउस विमुग्ध हो कर महादेवी के भाषणामृत का रसपान किया करता था। रोकने-टोकने का तो प्रश्न ही नहीं, किसी को यह पता ही नहीं चल पाता था कि कितना समय निर्धारित था और अपने निर्धारित समय से कितनी अधिक देर तक महादेवी ने भाषण किया। तो महादेवी समेत इन कवियों की कहानियां तो हैं ही , साथ ही एकदम नए-नवेले कथाकारों की कहानियों को भी उसी सम्मान और उसी भाव के साथ परोस रहा हूं।
कोशिश यही रही है कि कोई कैसा भी हो , किसी भी विचारधारा , किसी भी आग्रह का हो , खुली धरती , खुले आसमान , खुली हवा और खुले मन से उसे इस कथा-लखनऊ का नगीना बना कर उपस्थित करुं। कोई भेद-भाव न करुं। सब से विनती बारंबार की। सब को आत्मीय और विनम्र भाव से , साधु भाव से खोजा। लेकिन होता है न कि कुछ फूल माला में गुंथने से इंकार कर देते हैं। कथा-लखनऊ में भी ऐसा ही हुआ है। कुछ फूल शायद इस भय से नहीं आए इस माला में कि माला में रुंधने पर उन के अहंकार को घाव लग जाएगा। उन के पूर्वाग्रह को लकवा मार जाएगा। सो सारी विनती और सारा निवेदन धराशाही हो गया। एक लेखक ने फ़ोन जब नहीं ही उठाया बार-बार फ़ोन करने के बाद भी तो औपचारिक न्यौते वाला संदेश भेजा। जवाब फिर भी नहीं आया। कई बार फ़ोन के बाद उन का संदेश आया कि , ‘ माफ करेंगे, मेरे लिए अपनी कहानी इस संकलन में शामिल करना संभव नहीं हो पा रहा है। दरअसल इसके लिए उत्साह और दिलचस्पी का अभाव है मुझमें । बाकी आपके प्रयत्न की सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाएं । ‘ फिर उन की एक कहानी का ज़िक्र करते हुए उन्हें लिखा कि , ‘ अगर अनुमति दें तो फला कहानी ले लूं। ‘ उन का जवाब आया , ‘ नहीं, मेरी कोई भी कहानी न शामिल करें । ‘ मैं ने उन्हें लिखा , ‘ ठीक बात है। आप की इस इच्छा का सम्मान करता हूं। ‘ इसी तरह एक लेखिका ने न फ़ोन उठाया , न किसी संदेश का जवाब दिया। एक लेखक की तो पत्नी ही बारंबार फ़ोन उठाती रहीं। लैंड लाइन भी , मोबाइल भी। संदेश वह जाने पढ़ते भी हैं कि नहीं , राम जाने। दो महीने की लुका-छुपी के बाद लेखक की पत्नी ने पूछा , इसे छापेगा कौन। बताया प्रकाशक के बारे में तो एक सवाल आया कि पैसा कितना मिलेगा ? मन में आया कि कह दूं कि एक कहानी का एक लाख रुपया। पर चुप रहा और विनयवत कहा कि क्षमा कीजिए ग़लती हो गई जो आप को कई बार फ़ोन किया। और फ़ोन रख दिया। ग़ौरतलब है कि लेखक की पत्नी भी लेखिका हैं। ऐसे और भी कुछ क़िस्से हैं। क़िस्सों की बात में क़िस्से न हों तो मजा भी नहीं आता। अपनी रचनाओं में महुआ तोड़ कर खाने वाले लोग , पैसा दे कर किताब छपवाने वाले लोगों की ऐंठ भी अब लखनऊ में मुझे एक अदा लगती है। लखनऊ तहज़ीब और तमद्दुन का ही नहीं तवायफ़ों का भी शहर रहा है। नवाबों का शहर रहा है। तवायफ़ों और नवाबों की ऐंठ और बदमिजाजियों के एक से एक क़िस्से मिलते हैं। एक नवाब वाज़िद अली शाह को तो अंगरेज फ़ौज ने सिर्फ़ इस लिए पकड़ लिया था कि उन्हें कोई जूता पहनाने वाला नहीं मिला कि वह जूता पहन कर भाग सकें। क्यों कि बेग़में , नौकर-चाकर , दरबारी , सब के सब अंगरेजों के ख़ौफ़ से भाग गए थे। नंगे पांव भी भागना नवाबी रवायत के खिलाफ था। सो नवाब वाज़िद अली शाह गिरफ़्तार हो गए। क़ैद कर कोलकाता ले जाए गए। पर जाते-जाते एक अप्रतिम गीत भी लिखते और गाते गए , बाबुल मोरा नइहर छूटो ही जाए ! नवाब वाज़िद अली शाह की यह नफ़ासत , लताफ़त और संवेदना लेकिन सभी रचनाकारों को नहीं नसीब होती। लेकिन अदा वही कि जूता खुद नहीं पहनेंगे। किसी माला का हिस्सा बनना अपनी तौहीन समझेंगे।
एक अनुवादक हुए हैं। प्रबोध मजूमदार। मेरे भी परिचित रहे हैं। काफी हाऊस में उन से कई मुलाकातें हैं। एक मित्र ने बताया कि प्रबोध जी ने भी कुछ कहानियां लिखी हैं। उन की बेटी मोनालिसा चौधरी से बात की। उन दिनों उन की मां का स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था। मोनालिसा ने कहा कि मां की तबीयत ठीक होते ही आप को बताती हूं। फिर एक दिन मोनालिसा ने बताया कि मां नहीं रहीं। बाद के समय में मोनालिसा ने अपने पिता की रचनाओं को खोजै। और एक दिन बताया कि कुछ उन के हाथ के लिखे काग़ज़ तो मिले हैं लेकिन बहुत से अक्षर धुल गए हैं। पूरा-पूरा पढ़ने में नहीं आ रहे। बताइए क्या करुं। मोनालिसा की बात में तकलीफ की इबारत साफ़ सुनाई दे रही थी। कला समीक्षक कृष्ण नारायण कक्कड़ की एक रात सोते-सोते याद आ गई। फिर याद आया कि कुछ कहानियां भी लिखी थीं उन्हों ने। वह अविवाहित थे। विदा हुए भी उन्हें ज़माना हुआ। सो परिवार नहीं है। पर तलाश करते-करते कैसरबाग में उन की बहन सरला कक्कड़ जी का घर पता लगा। फ़ोन नंबर भी मिला। बात हुई। वह खुश हो गईं कि कक्कड़ साहब के विदा होने के सालों बाद भी मैं ने उन्हें याद रखा। सरला जी खुद वृद्ध हो गई हैं। उन्हों ने बहुत खोजा घर में पर कृष्ण नारायण कक्कड़ की कोई किताब नहीं मिली। वह किसी मछली की तरह तड़प उठीं। बताने लगीं कि दिनमान के कुछ अंक हैं , उन में खोजती हूं , उन की कहानी। उन से कहा दिनमान में कहानियां नहीं छपती थीं , रहने दीजिए। फिर उन्हें याद आया कि भाई की सारी किताबें उन्हों ने कुछ साल पहले भारतेंदु नाट्य अकादमी को दे दी थीं। उस में उन की किताबें भी लगता है चली गई हैं। भारतेंदु नाट्य अकादमी में बहुत तलाश हुई पर कृष्ण नारायण कक्कड़ की कोई किताब नहीं मिली। फिर दिल्ली में कृष्ण नारायण कक्कड़ के भतीजे विवेक कक्कड़ का नंबर सरला जी ने दिया। विवेक जी से बात की। कृष्ण नारायण कक्कड़ का नाम सुनते ही वह उछल पड़े। कहने लगे हमारे ताऊ जी को आप ने अभी तक याद रखा है , बहुत बड़ी बात है। उन्हों ने इसे अपना सम्मान माना। कक्कड़ परिवार का सम्मान माना। और उन की स्मृतियों में खो गए। बड़ी देर तक वह अपने ताऊ जी के बारे में बतियाते रहे। मैं भी भीगता रहा उन की बातों में , कक्कड़ जी की यादों में। गोष्ठियों और काफी हाऊस में उन के साथ बिताए समय और बातें याद आने लगीं। दूसरे ही दिन विवेक कक्कड़ ने अपने ताऊ जी की किताबें मेरे पास भिजवा दी।
अनथक कोशिश और कसरत के बावजूद कुछ हिंदी कहानीकार भी नहीं मिले , न उन का अता-पता। न कहानी। अपने ही शहर में लोग जीवित ही गुम हो गए। कुछ रचनाकारों के परिवारीजन अपने पिता की रचनाएं याद करने या ऐसी किसी जानकारी से ही अनभिज्ञ मिले। तो कुछ कथाकार मिले लेकिन उन के ही पास से उन की कहानियां गुम थीं। बहुत असहाय दिखे वह लोग। कुछ रचनाकारों ने कहा कि कभी कहानियां लिखी थीं , यह बात भी वह भूल चुके हैं। तो अपनी कहानी वह खोजें भी कहां से। फिर दें भी कैसे भला। कुछेक लोगों की तो पहली ही कहानी इस कथा-लखनऊ की धरोहर बनी है। मैं तो लखनऊ के अंगरेजी , सिंधी , बंगला , पंजाबी आदि भाषाओँ की कहानियां भी लेना चाहता था। पर शकील सिद्दीक़ी जैसा साथी कोई इन भाषाओँ में नहीं मिल सका। सब हां , हां कहा कर गुम होते गए। लेकिन शकील सिद्दीक़ी ने कुछ उर्दू कहानियों के हिंदी पाठ जिस जोश और मुहब्बत के साथ उपलब्ध करवाए , अच्छा लगा। अच्छा लगा कि अमृतलाल नागर की एक दुर्लभ कहानी की याद हरिचरण प्रकाश ने दिलाई और यह लीजिए उत्तर प्रदेश की संपादक कुमकुम शर्मा ने उसे उपलब्ध भी करवा दिया। जिसे उन्हों ने अमृतलाल नागर विशेषांक में कभी प्रकाशित भी किया था। वीर विनोद छाबड़ा ने अपने पिता रामलाल की कहानी , एक पाकिस्तानी शहरी की कहानी एक बार के कहे में दे दी। इसी तरह गोपाल उपाध्याय के पुत्र हरीश उपाध्याय और बसेसर प्रदीप के पुत्र अखिलेश धवन गिन्नी ने अपने-अपने पिता की कहानियों को बड़ी मेहनत से खोज कर उपलब्ध करवाया। मित्र महेश पांडेय ने भी कई पुराने कथाकारों की कहानियों को खोजने में बड़ी मदद की। फिर कई कहानीकार मित्रों ने एक बार ही कहने में अपनी कहानियां भेज दीं। न कोई नाज़ , न कोई नखरा। न कोई ऐंठ , न कोई अहंकार। कुछ तकनीकी असुविधाएं आईं तो उन्हें दूर कर के भी एक ही कहानी बार-बार भेजी। कई सारे कहानीकारों ने तो सिर्फ़ सूचना मात्र से बेझिझक मुझ से संपर्क किया और अपनी कहानियां भेज कर इस कथा-यज्ञ में अपना योगदान दिया है। नूर ज़हीर इन दिनों लंदन में हैं। लंदन से फ़ोन कर के अपना सहयोग साझा किया और अपनी जुबान की कैफ़ियत दी। कथा-लखनऊ के इस कथा-यज्ञ में बहुतेरे मित्रों की मेहनत और पसीना कैसे भूल सकता हूं। महेश पांडे ऐसे ही लोगों में से एक हैं। कथाकार नहीं हैं , महेश पांडे लेकिन कथाओं और कथाकारों के रसिया हैं। लमही के संपादक विजय राय अमृत राय विशेषांक की घोर व्यस्तता में भी मदद करते रहे। रियाज़ भी ऐसे ही लोगों में से एक हैं। देहरादून से अशोक मिश्र और बलिया से डाक्टर ओमप्रकाश सिंह ने भी ख़ूब मदद की। ऐसे सभी शुभाकांक्षी मित्रों के प्रति कृतज्ञ हूं। बंधु कुशावर्ती भी कुछ कहानियों के सूत्रधार बने। पुत्रवत जितेंद्र पात्रो ने प्रलेक प्रकाशन की यह जो धरती और यह जो आकाश सौंप कर कथा-लखनऊ की सुनहरी माला गूंथने में जो समर्पण भाव दिखाया है , वह अनमोल है। कथा-लखनऊ में हिंदी-उर्दू के जितने भी लेखकों की कहानियां मिल सकीं हैं , सभी को निर्मल आनंद के साथ उपस्थित किया है। पूरा विश्वास है कि कथा-लखनऊ एक गोल्डेन ट्रेजरी के रूप में तब तक याद किया और पढ़ा जाएगा जब तक लखनऊ है , कथा है , हिंदी है और यह दुनिया है। वह कहते हैं न कि ज़िंदगी और कुछ भी नहीं , तेरी मेरी कहानी है। तो कथा-लखनऊ भी वही तेरी मेरी कहानी है। जो अब आप के हाथों में है। आप की आंखों से होती हुई , आप के दिल में समा जाना चाहती है। नई अदा में इतराती हुई। इन कहानियों की खुशबू में आप बहते रहें , कोशिश यही है। हां , सुविधा के लिए इस कथा-लखनऊ में कहानियों का क्रम लेखकों के जन्म के हिसाब से रखा गया है। जन्म से भले कोई छोटा-बड़ा होता है लेकिन कोई लेखक छोटा या बड़ा नहीं होता। बड़ी होती है रचना। कहानियों के इस काजल में कौन सी कथा आप की आंख में काजल बन कर बसती है और कौन सी कथा काजल-काजल हो कर आप को अपनी कालिख से परिचित करवाती है , यह देखना भी दिलचस्प होगा। कथा-लखनऊ में मेरा यह गिलहरी प्रयास आप को पसंद आएगा , पूरा विश्वास है। हां , कहानियों का क्रम लेखक के जन्म-दिन और वर्ष के हिसाब से तय किया गया है।
कथा-लखनऊ की कहानियां
रानी केतकी की कहानी ● इंशा अली खां इंशा
शतरंज के खिलाड़ी ● प्रेमचंद
दुखवा मैं कासे कहूं ● आचार्य चतुरसेन शास्त्री
मुंडमाल ● शिवपूजन सहाय
मेला घुमनी ● अली अब्बास हुसैनी
लिली ● सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
अवगुंठन ● सुमित्रानंदन पंत
दो बाँके ● भगवतीचरण वर्मा
रेल की रात ● इलाचंद्र जोशी
चित्र का शीर्षक ● यशपाल
इफ़्तारी ● रशीद जहां
दुलारी ● सज्जाद ज़हीर
भक्तिन ● महादेवी वर्मा
तंत्र-मंत्र ● हजारी प्रसाद द्विवेदी
आखिरी कोशिश ● हयातुल्ला अंसारी
मुग़ल बच्चा ● इस्मत चुगताई
आदमी: जाना-अनजाना ● अमृतलाल नागर
गंगा-लाभ ● गंगा प्रसाद मिश्र
नमक़ ● रज़िया सज्जाद ज़हीर
मूर्ख बालक ● स्वरूप कुमारी बक्शी
हिरनी ● चंद्रकिरण सौनरेक्सा
एक शहरी पाकिस्तान का ● रामलाल
करिये छिमा ● शिवानी
खण्डिता ● ठाकुर प्रसाद सिंह
मौत के मुंह में ●बशेषर प्रदीप
इस उम्र में ● श्रीलाल शुक्ल
पतझड़ की आवाज़ ● कुर्रतुल एन हैदर
तिल-तंदुल ● शांति देवबाला
हज़ारों साल लंबी रात ● रतन सिंह
आकारों के आसपास ● कुँवर नारायण
कुत्ते ● कृष्ण नारायण कक्कड़
सेब ● रघुवीर सहाय
आशीर्वचन ● शेखर जोशी
सवा नेजे पर सूरज ● आबिद सुहैल
मुठभेड़ ● मुद्राराक्षस
गवाह ● वीर राजा
सिल्वर वेडिंग ● मनोहर श्याम जोशी
कांटा ● गिरीशचंद्र श्रीवास्तव
नक़द भुगतान ● इक़बाल मज़ीद
संक्रमण ● कामतानाथ
महबूबा ● विलायत ज़ाफ़री
रिटायर्ड अफ़सर ● अवध नारायण मुद्गल
भँवर ● डॉ0 ऊषा चौधरी
पराया चांद ● योगेश प्रवीन
यकीन ● सुषमा श्रीवास्तव
सब्जेक्ट ● मुहम्मद ताहिर
ढोर ● अचला नागर
वह न हो सकी …..परम ● गोपाल उपाध्याय
मैं एक बौना मानव ● महेश चंद्र द्विवेदी
अपना परिवार ● डॉ. रामकठिन सिंह
मोहपाश ● उषा सक्सेना
पहला प्यार ● प्रदीप पंत
मठ ● अनिल सिनहा
बीता हुआ कल ● शारदा लाल
छिले हुए कंधे ● विजयेंद्र कुमार
छज्जूराम दिनमणि ● मोहन थपलियाल
नायक ● उर्मिल कुमार थपलियाल
मैं सावित्री नहीं हूं ● इंदु शुक्ला
भगोड़ा ● आनंद स्वरूप वर्मा
नन्हा गाइड ● शीला मिश्रा
दूसरी बार न्याय ● सुमति लाल सक्सेना
कर्णफूल ● उषा अवस्थी
उजली सुबह का अंजाम ● आइशा सिद्दीक़ी
एक और मां ● विद्या बिंदु सिंह
ये घर ये लोग ● नसीम साकेती
लल्लू लाल कौ रुपैया ● विभांशु दिव्याल
शांतिधाम ● नीरजा द्विवेदी
मुन्नी ● ज्ञानेंद्र शर्मा
भगतन ● परवीन तल्हा
अरे तुम ! ● मंजुलता तिवारी
खंडहरों का साम्राज्य ● सुशील कुमार सिंह
ताई की बुनाई ● दीपक शर्मा
अपने विरुद्ध ● नवनीत मिश्र
अभिनेत्री ● विनोद भारद्वाज
कन्यादान ● शशि जैन
सुनवाई ● डा0 सबीहा अनवर
चक्रव्यूह ● उषा सिनहा
शिकार ● शक़ील सिद्दीक़ी
भरतनाट्यम ● शिवमूर्ति
गुरु ● आई बी सिंह
मुस्कान ● डाक्टर निर्मला सिंह ‘ निर्मल ‘
भैया साहब का अहाता ● बंधु कुशावर्ती
तेरे सुर और मेरे गीत ● डा0 मंजु शुक्ल
डॉक्टर लारेंजो ● योगीन्द्र द्विवेदी
नन्दू जिज्जी ● हरिचरन प्रकाश
विलोपन ● शैलेंद्र सागर
प्रजेंटेबिल ● डा0 निशा गहलौत
बदलाव के रंग ● डॉ अर्चना प्रकाश
अनोखी प्रेम कहानी ● निरुपमा मेहरोत्रा
आरण्या ● राकेश तिवारी
अंबिका ● सुधा शुक्ला
आऊंगा एक बार फिर ● सुधा आदेश
उस की दीवाली ● पूर्णिमा वर्मन
उस के हिस्से का समय ● प्रताप दीक्षित
बाघैन ● नवीन जोशी
पिल्ले ● सुधाकर अदीब
जीवन में घुन ● प्रतिमा भाटिया
पुलिस वाला ● प्रेमेंद्र श्रीवास्तव
पीठ पीछे की दुनिया ● नीलम चतुर्वेदी
अम्मी ● स्नेह लता
हारूंगी नहीं मैं ● अर्चना श्रीवास्तव
खोल ● अशोक चंद्र
गजाधर पाण्डे़ जिंदा हैं ? ● अखिलेश श्रीवास्तव चमन
पुनः ● राजा सिंह
सॉरी पापा ● राजेन्द्र वर्मा
गुड्डा भइया ● सुषमा गुप्ता
समय बे-समय ● देवेंद्र
एक जीनियस की विवादास्पद मौत ● दयानंद पांडेय
सिगेरां वाली ● राजवंत राज
फिरोज़ मंज़िल की रोमिला ● राजेश्वर वशिष्ठ
ललिया भौजी ● नमिता सचान सुंदर
रोटी का टुकड़ा ● अलका प्रमोद
बुत जागेंगे ● रिज़वाना सैफ
बिट्टो, अन्नू, राधा, बाबूजी और जाड़े के एक दिन की अधूरी कहानी ● कात्यायनी
मोतियाबिंद ● बी.आर.विप्लवी
मिलन ● संजीव जायसवाल ‘संजय’
चेक बाउंस ● रंजना गुप्ता
काका का लोन ● नीरजा हेमेंद्र
कहानी के अन्दर की कहानी ● डॉ अनिल मिश्र
तूफानी के बाद दुनिया ● सुभाष चन्द्र कुशवाहा
प्रतिध्वनि ● नीलम राकेश
पतली गली की ऐश्वर्या ● रश्मि बड़थ्वाल
अग्निगर्भा ● दिव्या शुक्ला
चिरई क जियरा उदास ● प्रज्ञा पांडेय
जहरा ● मोहसिन खान
हम होंगे कामयाब ● निवेदिताश्री
डबरे का पानी ● उषा राय
स्वप्नछंद ● गौतम चटर्जी
और बस रेत ● रजनी गुप्
आंगन के उस पार ● कुमकुम शर्मा
कबाड़ ● आलोक कुमार दुबे
चुंबकत्व ● शिशिर सिंह
सीक्रेट पार्टनर ● मीनू खरे
जीवन-सखी ● रेखा तनवीर पंकज
उफ़ उन की अदा ● आभा काला
दिद्दा अम्मू ● अनुजा
शोहरत की किरचें ● तरुण निशांत
मुस्तरी बेग़म ● शशि कांडपाल
कमल का पत्ता ● महेन्द्र भीष्म
शेष भाग आगामी अंक में ● राम नगीना मौर्य
शहादत ● मनसा पांडेय
किस्मत तेरे ढंग निराले ● सियाराम पांडेय ‘शांत ’
राजनीति ● पूनम तिवारी
अधूरा सपना ● रश्मिशील
पेइंग गेस्ट ● अमिता दुबे
धीरज ● प्रदीप कुमार शुक्ल
अम्मा ● इला सिंह
दूसरी भग्गो ● विनीता शुक्ला
वरासत ● दीपक श्रीवास्तव
दंगा भेजियो मौला ! ●अनिल यादव
क्या नाम दूँ ..! ● अजयश्री
श्यामली ● ज्योत्सना सिंह
विजेता ● अरुण सिंह
हार गया फौजी बेटा ● प्रदीप श्रीवास्तव
जॉब कार्ड ● दयाशंकर शुक्ल सागर
बॉडी मसाज ● वीणा वत्सल सिंह
ओ री राधा… ● सविता शर्मा नागर
तितलियों का शोर ● हरिओम
ढाल ● शालिनी सिंह
वैदेही की शक्तिपूजा ● रोशन प्रेमयोगी
मौत ज़िंदगी ● नीलेश मिसरा
लबड़थी ● शेषनाथ पांडेय
मृत्युभोज ● बालेंदु द्विवेदी
बेचन मामा ● सीमा मधुरिमा
बारिश के बाद ● डॉ सुरभि सिंह
पत्थर का कीड़ा ● डॉ अहमद अयाज़
नइहर के नेवता ● रचना त्रिपाठी
ग्रीन डॉट ● रिफ़त शाहीन
बद्धनवा नाऊ के लउंडा सलमनवा ● फ़रज़ाना महदी

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