एतिहासिक प्रमाण हैं भारत की हड़प्पा क़ालीन सभ्यता के समय जो शहर होते थे उनकी प्लानिंग बहुत शानदार होती थी. पूर शहर ब्लॉक्स पर आधारित होता था. ख़ूब चौड़ी मुख्य सड़कें जो नब्बे डिग्री के ऐंगल पर काटती थी. उनसे थोड़ी कम चौड़ी सड़कें जिनके दोनों ओर मकान होते थे. मकान एक मंज़िले या दुमंज़िले होते थे. हर मकान में लेटरीन बाथरूम होता था. पक्की नालियाँ, घर में भी और वह नालियाँ सड़क के दोनो ओर पक्की नालियों में मिलती थी. यह पक्की नालियाँ बड़े नालों में मिलती थी
शहर के बीचो बीच बाज़ार होती थी. बड़े सामुदायिक केंद्र अर्थात कन्वेंशन सेंटर होते थे जिनमे प्रदर्शनी लगती थी, उत्सव मनाए जाते थे, शहर के लोग एकत्रित होते थे, समारोह होते थे. सार्वजनिक स्विमिंग पूल होते थे जिनमे लोग स्विमिंग का आनंद लेते थे.
हमारे पूर्वजों के बनाए शहर आज की तारीख़ के भी आदर्श शहर माने जाएँगे. फिर बीच में मुग़ल क़ालीन असभ्यता का आगमन हुआ. जो रेगिस्तान में रहते थे जहाँ थोड़े बहुत कच्चे पक्के घर बना कबीलों में रह जाते थे. परिणाम यह हुआ कि तब भारत के शहर गंदे बदबू दार होने लगे. शहर से सामुदायिक केंद्र ग़ायब होने लगे, लोग अपने घरों के बाहर ही त्योहार मनाने लगे. समुदाय वाली भावना चली गई. महिलाएँ परदे में रहने लगी, स्विमिंग पूल आदि लक्शरी माने जाने लगे क्योंकि रेगिस्तान में पानी नहीं होता था. पतली गंदी संकरी बदबू दार गलियों वाले शहर जिनमे बस इन गलियों और मकानों के अतिरिक्त कुछ ना हो – शहर का विकास इस तरह से होने लगा.