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भारतीय कम्पनी ज़ेप्टो

by Nitin Tripathi
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करोना काल में दो ऊनीस वर्षीय भारतीय युवकों ने दस मिनट में ग्रोसरी डिलीवरी कॉन्सेप्ट पर एक कम्पनी ज़ेप्टो बना डाली. ज़ेप्टो को अब तक लगभग सात सौ करोड़ की फ़ंडिंग हो चुकी है और कम्पनी का वैल्यूएशन लगभग तीन सौ मिलियन डालर है.
पिछले दो तीन वर्षों में भारत ने टेक्नॉलजी के स्टार्ट अप क्षेत्र में बहुत तरक़्क़ी की. इस हद तक कि इस वर्ष 38 भारतीय कम्पनियाँ यूनिकॉर्न अर्थात् बिलियन डालर वैल्यूएशन लेवेल पर पहुँच गईं. अमेरिका में इस वर्ष 260 नई यूनिकॉर्न बनी, इसके पश्चात भारत विश्व में दूसरे नम्बर पर है इस साल सबसे ज़्यादा यूनिकॉर्न में. ख़ास बात यह कि लम्बे समय से चाइना दूसरे नम्बर पर रहा. करोना काल में विश्व के निवेशकों को समझ आया कि चाइना से बेहतर इन्वेस्टमेंट भारत में है.
अब आप देखिए इतनी कम्पनियाँ भारत सरकार स्वयं दसियो साल में न खड़ी कर पाती, जितनी इन नए उद्यमियों ने एक साल में खड़ी कर दी बग़ैर एक पैसा सरकार से लिए. सरकार ने वही किया जो सरकार का कार्य है – माहौल दिया कि उद्यमी व्यवसाय कर सकें. ऐसे नियम बनाए कि इन्वेस्टर्ज़ का भरोसा भारत पर बढ़ा. बाक़ी इसके पश्चात फ़्री इकॉनमी / मार्केट है अपने आप ग्रो हो जाती है.
वैसे अभी भी हम दसकों दूर हैं कि नया माइक्रसॉफ़्ट / गूगल/ फ़ेस बुक बना सकें. ऐसी सारी खोजें अमेरिका में ही होती हैं. इसकी इकमात्र वजह यही है कि भारत के शिक्षण संस्थान अभी बहुत पीछे हैं वैश्विक स्टैंडर्ड से. आप यदि इन यूनिकॉर्न के मालिकों पर रिसर्च करेंगे तो पाएँगे इनमे अधिसंख्य ऐसे हैं जिनकी कुछ शिक्षा विदेश में ज़रूर हुई है. पर अच्छी बात यह है कि अब भारत इस लायक़ बन रहा है कि विदेश से पढ़ाई कर लोग वापस भारत आकर वेल्थ क्रिएट कर रहे हैं, भारतीयों का जीवन सुगम बना रहे हैं और रोज़गार पैदा कर रहे हैं.

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