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खतरनाक कोविड-लहर

by Umrao Vivek Samajik Yayavar
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2020 के शुरुआती महीनों से हम भारतीय लोग स्कूल की साधारण स्तर की किताबों में कोरोना के बारे में लिखी लाइनों की फोटो वायरल करके यह दावा कर रहे थे कि जिस वायरस के बारे में दुनिया अब जान रही है उसके बारे में भारत में स्कूली किताबों तक में लिखा है। (वह अलग बात है कि हमें इतना भी तमीज नहीं कि हमें यह जानकारी होती कि कोरोना वायरस की खोज बहुत पहले हो चुकी थी, और कोविड-19 का नामकरण कोरोना वायरस फेमिली के तहत किया गया है)।
भारत में कई स्वयंभू लोग वायरस विशेषज्ञ बनकर यूट्यूब पर सेलिब्रिटी हो गए, यह बताते हुए कि कोविड-19 दो कौड़ी का वायरस है। होमियोपैथ व आयुर्वेद इत्यादि महान है एलोपैथ घटिया है, यह सब शुरू हो गया। एक रायता यह भी रहा कि हम भारत के लोगों का कोविड-19 कुछ नहीं बिगाड़ सकता, इम्युनिटी अद्वितीय है। यही सब करते हुए हम अपने अंदर कुंठित अहंकार का नशा भोगते रहे।
बहुत लोग जिन्हें हर बात में कारपोरेट या विदेशी षणयंत्र देखने का नशा होता है, वे अलग-अलग तरह के षणयंत्रों की थियरी लेकर आते रहे। बहुत लोग ऐसे भी थे जिन्हें WHO व दूसरे वैश्विक संस्थानों की कार्यप्रणाली का ककहरा भी नहीं आता, वे ऐसे दावों से बात करते थे जैसे WHO के लोगों से रोज चाय पर चर्चा हसी ठठ्ठा होता हो।
यथार्थ यह कि भारत में कोविड की टेस्टिंग जनवरी 2020 से लेकर आजतक कभी हुई ही नहीं, खानापूर्ति की जाती है। महीनों तक तो लोग तापमान मापने को ही कोविड टेस्टिंग मानते रहे। लेकिन देश के कई जिलों के जिलाधिकारियों/उप-जिलाधिकारियों ने थर्मल टेस्टिंग को कोविड-टेस्टिंग के रूप में प्रायोजित करके खुद को सेलिब्रिटी बनवा लिया पुरस्कार तक ले लिए। कोविड-फ्री जिले घोषित कर लिए।
प्रशासन का व्यवहार बर्बरता की हदों को पार करते हुए रहा। कोविड से त्रस्त लोगों के साथ खूंखार अपराधियों जैसा बर्ताव किया गया, शारीरिक मानसिक प्रताड़नाएं दी गईं। ऐसा कतई नहीं लगा कि प्रशासन में पढ़े लिखे लोग आते हैं, लगा ही नहीं कि रूटीन के बाहर चलताऊ तौर-तरीकों से इतर धेला भर भी दृष्टि व समझ है।
ऐसा ही बहुत कुछ रायता, बकैती, लफ्फाजी, असंवेदनशीलता जाने-अनजाने हममें से अधिकतर लोग अपनी-अपनी मानसिकता व सोच के स्तर से जमकर फैलाते रहे। नतीजा यह हुआ कि हममें से करोड़ों लोगों ने अपने प्रियजन 2021 की कोविड-लहर में खो दिए। बहुत लोग जो मृत्यु के मुंह से बच तो गए लेकिन कोविड उनके शरीरों में ऐसे-ऐसे स्थाई प्रभाव छोड़ गया कि लाखों लोग महीनों-महीनों बाद भी तकलीफ में जीने को अभिशप्त हैं।
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मेरे जैसे लोग संख्या में बहुत कम रहे, लेकिन शुरू से कहते रहे कि यह एक बेहद स्मार्ट वायरस है। जैसे हम विज्ञान में बहुत अधिक स्मार्ट हुए हैं, वैसे ही यह वायरस बहुत अधिक स्मार्ट है। इसको गंभीरता से लिया जाना चाहिए, लफ्फाजी व बकैती इत्यादि से नहीं। लेकिन अजानकारी व अज्ञानता का अहंकार का अपना एक अलग नशा होता है, व्यक्ति सोचने विचारने की शक्ति खो देता है। मेरे जैसे लोगों का उपहास उड़ाया गया।
यदि हम गंभीरता से देखने समझने का काम करते, यदि हम लफ्फाजी, बकैती व कुंठाओं से इतर इस वायरस की विभीषिका को स्वीकारते तो हम अपने प्रियजनों को मौत के मुंह में जाने से बचा सकते थे। लेकिन हम तो इतने असंवेदनशील व क्रूर हो चुके हैं कि अपने प्रियजनों को खोने के कुछ दिनों के बाद ही फिर से पुराने ढर्रे में ही लिप्त होकर जीवन जीने लगे। हमारा स्तर यह हो चुका है कि हमें अपने प्रियजनों की मौतें भी हमें अपनी सोच मानसिकता बदलने के लिए प्रेरित नहीं कर पाती हैं।
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**चलते-चलते**
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डेल्टा वैरिएंट ने पूरे देश को हिला दिया, वास्तविकता व प्रस्तुत किए गए आकड़ों में कई सौ गुना का अंतर रहा। हमने कुछ ही समय में अपने प्रियजनों की मौतों को भुला दिया और पुराने तरीके से ही ढर्रों में जुट गए, जबकि हम दावा करते हैं कि हमारी संस्कृति परिवार व समाज की संस्कृति है।
अब ओमिक्रान आया है, जो कोविड हो चुकने के बाद की शारीरिक व्यवस्था को बाईपास करते हुए लोगों को गंभीर बीमार कर जाता है। जिन लोगों को असली वाली वैक्सीन लगी हैं, उनको गंभीर बीमार नहीं करता है।
भारत में टेस्टिंग बहुत ही अधिक होने के कारण आकड़ों में केसों की संख्या बहुत कम रहती है जबकि वास्तविक स्थिति बहुत अधिक रहती है। आकड़े कुछ भी हों, लोग तो ओमिक्रान से संक्रमित हो ही रहे हैं। वैक्सिनेशन की स्थिति अच्छी नहीं है।
डेल्टा भारत के अंदर विकसित हुआ था, लोगों के शरीर का सिस्टम डेल्टा के लिए बन गया था। ओमिक्रान भारत के बाहर दूसरे कान्टीनेंट से आया है। भारत भर में लोगों को लक्षण, कम लक्षण, लक्षण इत्यादि के रूप में संक्रमित कर रहा है। चूंकि इससे मरने वालों की संख्या कम है इसलिए हम यह मान रहे हैं कि यह हमें प्रभावित नहीं कर रहा है, इसका पीक भी हमें नजर आए बिना चला जाएगा।
लेकिन जब यह वैरिएंट अपना आरएनए बदल कर नए वैरिएंट के रूप में विकसित होकर आएगा, तब फिर एक बार डेल्टा वायरस जैसी या अधिक कहर बरसाएगा। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग एक-डेढ़ वर्ष का समय लग सकता है। 2023 में एक खतरनाक कोविड-लहर आने की बड़ी संभावनाएं हैं।
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जब तक हम इस वायरस को एक शरीर से दूसरे शरीर में स्थानांतरित होने के अवसर उपलब्ध कराते रहेंगे, तब तक हमें इस वायरस से छुटकारा नहीं ही मिलना है। यह नए-नए रूप में आता रहेगा। कोई वैरिएंट कम खतरनाक तो कोई बहुत अधिक खतरनाक, कम खतरनाक वालों को ट्रांजीशन-अवस्था माना जाना चाहिए।
अभी तक का चरित्र तो यही है इस वायरस का। दुनिया को इस वायरस से जल्दी छुटकारा नहीं मिलने वाला है। हमें अपनी मानसिकता, सोच व जीवन-शैली बदलने के लिए बाध्य होना ही है। कम खोकर या बहुत अधिक खोकर, यह निर्णय हमें लेना है।
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विवेक उमराव
“सामाजिक यायावर”

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