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छठ पूजा में पंडे-पुरोहित

by Jalaj Kumar Mishra
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छठ में पंडे-पुरोहित की जरुरत नहीं होती है। बहुत सही बात है। अब ये बताइये कि कुछ ही दिन पहले जो भाई दूज (भातृ-द्वितीय या भरदुतिया) किया था, या करते आ रहे हैं, उसमें कौन से पुरोहित बुलाये जाते हैं? मंदिरों के आयोजन छोड़ दें तो नवरात्री पर घरों में कौन से पंडित बुलाये जाते हैं? मंदिरों या सार्वजनिक स्थलों पर किसी का एकाधिकार नहीं होता इसलिए वहाँ यजमान के साथ एक पुरोहित बैठता है। ऐसे ही दीपावली पर व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को छोड़ दें, तो कितने घरों में पंडित पूजा के लिए बुलाये जाते हैं? कोई अनुष्ठान करने के लिए पंडित रक्षाबंधन पर नहीं बुलाये जाते, होलिका दहन या होली पर भी नहीं बुलाये जाते। हिन्दुओं के अधिकांश आयोजन तो पंडितों के बिना ही होते हैं।
विवाह जैसे आयोजनों में भी देखेंगे तो पाएंगे कि मंत्रपाठ का जिम्मा भले पंडित का हो लेकिन सारे विधि-विधानों का जिम्मा तो किसी नाई और किसी घर की ही महिला के हाथ में होते हैं। वट-सावित्री अभी-अभी बीती है, करवाचौथ को भी अधिक समय नहीं हुआ। किसी में पंडित को बुलाकर पूजा करवाना याद आता है क्या? हिन्दुओं के तमाम आयोजन पंडितों के बिना ही होते हैं। विधियों को शास्त्रोक्त और शुद्ध रखने के लिए कभी-कभार पंडितों को बुला लिया जाए ऐसा हो सकता है। आयोजन अधिक वृहत हो, तो घर के लोग आने वाले अतिथियों-आगंतुकों को अधिक समय दे सकें इसके लिए पंडितों को बुलाया जाता है।
ये बिलकुल वैसा ही है जैसे आपके विवाह के आयोजनों में होने लगा है। थोड़े समय पहले तक गाँव में कोई टेंट हाउस तो होता नहीं था। पूरी बरात के लिए खाना पकाना हो तो अड़ोस-पड़ोस के घरों से बर्तन जुटते थे। शहर पलायन करके आ गए लोगों की इतनी जानपहचान ही नहीं होती कि बर्तन जुटाए जा सकें, इसलिए किराये पर बर्तन आने लगे। पहले लोग मानते थे की लड़की के विवाह की सूचना ही आमंत्रण है। बिना बुलाये ही लोग कुर्सियां सजाने से लेकर जूठी पत्तलें उठाने तक आ जुटते थे। आज संयुक्त परिवार तक तो है नहीं, चार लोगों के घर में उतने लोग इकठ्ठा ही नहीं होंगे इसलिए किसी कैटरर को बुलाया जाता है। वो खाना परोसने-खिलाने में जुटा होता है तो घर के लोग मेहमानों का स्वागत कर पाते हैं।
अब आप कहेंगे, नहीं-नहीं जी, हमारा तो मतलब था कि आडम्बर नहीं होता जी! बड़ी सीधी प्रक्रिया है जी! कोई भी कर सकता है जी! तो भइये ऐसा है कि इतना झूठ तो ना कहें! जैसे बिना नहाये हर कोई दूसरी किसी तथाकथित विधि-विधान वाली पूजा का सामान नहीं छू सकता, उससे थोड़ी बढ़ी-चढ़ी पाबन्दी तो छठ के लिए आये सामान पर लागू होती है। घर के जिस हिस्से में रखा होता है, वहाँ जाना बच्चों के लिए भी प्रतिबंधित होता है। जैसे कठिन उपवास छठ के लिए होते हैं, वैसा ही कठिन उपवास तो जिउतिया, वट-सावित्री जैसी बिना पंडित वाले व्रतों में भी होता है न?
पंडित जी वाली पूजा में जैसे दूब चाहिए, शंख चाहिए, वैसे ही यहाँ गुड़ के बदले चीनी डालकर काम तो चलाते नहीं। लौकी-कद्दू के बदले आलू-गोभी बनाने लगे हैं क्या? सूप और दौरी-छिट्टा, डगरा जैसे बांस के बने के बदले प्लास्टिक वाला प्रयोग में लाने लगे हैं? मुहूर्त अगर पंडित जी वाली पूजा में होता है तो छठ में भी सूर्योदय से पहले घाट पर जाने के बदले आठ बजे सोकर उठने के बाद दस बजे ऊँघते हुए घाट पर नहीं जाते हैं। सूर्यास्त के पहले पहुँचने के बदले आठ बजे ऑफिस का काम निपटाकर या दुकान बढ़ाने के बाद नहीं पहुँचते। मुहूर्त का ध्यान भी रखते हैं।
ज़ात-पांत नहीं पूछी जाती का बेकार का राग भी मत अलापिये। होली में आपपर कौन रंग डालेगा, कौन नहीं, ये अगर आप ज़ात पूछकर तय करते थे तो आप घनघोर असामाजिक तत्व हैं। बल्कि ऐसा करते आपको छोड़ देने के कारण सिर्फ आप नहीं आपका पूरा खानदान असामाजिक है। पंडाल लगाकर पूजा करना बहुत बाद में आई व्यवस्था है। इसलिए अगर सरस्वती पूजा, या दुर्गा पूजा जैसे अवसरों पर आपने ज़ात पूछकर किसी को पंडाल में आने से रोका होता तो आप ऐसे ही एससी/एसटी एक्ट में जेल में चक्की पीसिंग एंड पीसिंग कर रहे होते। तो वहाँ भी ज़ात-पांत तो होती नहीं।
छठ के बारे में बताना ही है तो ये बताइये कि जैसे हिन्दुओं के सभी त्यौहार सामाजिक रूप से मनाये जाते हैं, ये भी वैसा ही है। जैसे रावण दहन या होलिका दहन के लिए समाज इकठ्ठा होता है, रामलीला के आयोजनों में सभी आते हैं, वैसे ही यहाँ भी सभी सम्मिलित होते हैं। जैसे हिन्दुओं का कोई भी त्यौहार, कोई भी मंदिर, समाज के सभी वर्गों के लिए आय सुनिश्चित करने का साधन है, चाहे वो हलवाई की हो, फूल बेचने वाले की हो, बिलकुल वैसे ही यहाँ भी सूप बनाने वाले से लेकर कृषक तक सभी वर्गों के पास त्यौहार पर खर्च करने को कोई अतिरिक्त आय हो, इसका ध्यान रखा जाता है।
बाकी जैसे दूसरे पर्व त्योहारों में आप ब्राह्मणों को कोसते हैं, उसे दक्षिणा क्यों नहीं मिलनी चाहिए, इसके कारण बताते हैं, बिलकुल वैसे ही छठ के बहाने भी ब्राह्मण को आय न हो, उसे कोसा जा सके, इसके बहाने निकाले जाते हैं। इसमें भी आधुनिक काल के हिन्दुओं के त्योहारों से समानता है, वो भी देख लीजिये।

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