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विकास वैभव-आईपीएस

by Pranjay Kumar
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संभव है कि आपमें से अनेक मित्रगण श्री  Vikas Vaibhav, IPS जी की विशेषताओं से और निकट एवं पूर्व से परिचित हों। पर उनके पवित्र, महान एवं रचनात्मक अभियान लेट्स इंस्पायर_बिहार को और अधिक गति प्रदान करने हेतु उनका यह परिचय मैं प्रेषित कर रहा हूँ। विनम्र निवेदन है कि यदि आप श्री विकास वैभव जी की इस मुहिम से पहले से जुड़े हों या अब जुड़ना चाहते हों तो कृपया इस पोस्ट को साझा करें। इसे अधिकतम तक ले जाने में हमारी सहायता करें। स्वयं जुड़ें और अपने मित्रों_परिचितों को भी जोड़ें।

श्री विकास वैभव जी वरिष्ठ *आईपीएस* हैं। आप लंबे समय तक भागलपुर में *डीआईजी* के पद पर तैनात रहे, उससे पूर्व विभिन्न शहरों में वरीय पुलिस अधीक्षक के रूप में आपने अपराधमुक्त बिहार के लिए *’कर्त्तव्य सर्वोपरि’* का ध्येय लेकर अहर्निश कार्य किया, भ्रष्ट राजनेताओं-बाहुबलियों के लिए आप खौफ़ का पर्याय रहे तो आम सज्जन शक्तियों के लिए आश्वस्तिदायक। आप उन विरले पुलिस अधिकारी में गिने जाते हैं, जिनके स्थानांतरण पर पूरा-का-पूरा शहर सड़कों पर उतरकर सरकार से स्थानांतरण रोकने की अपील-आग्रह-आंदोलन करता है, आपकी कर्त्तव्यनिष्ठा ऐसी रही कि आप जिन शहरों में तैनात रहे, उनमें से कुछ के चौक-चौराहों तक का नामकरण स्थानीय आम लोगों ने आपके नाम पर कर दिया, नक्सल-आंदोलन पर अंकुश लगाने में आपको अभूतपूर्व सफलता मिली। बल्कि एक से अधिक बार आप पर नक्सल हमले की कोशिशें भी हुईं, पर आपके सद्प्रयासों एवं चुस्त प्रशासन के आगे अंततः उन्हें भी झुकना पड़ा।

पुरात्तत्व, इतिहास एवं दर्शन में आपकी गहरी रुचि है। न केवल रुचि है, बल्कि ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक धरोहरों के प्रति आम लोगों को जागरूक करने में भी आपको अभूतपूर्व सफलता मिली है। *एनआईए* एवं *एटीएस* में *वरिष्ठ अधिकारी* के रूप में कार्य करते हुए भी अनेक प्रकरणों को सुलझाने एवं उसके मूल तक जाकर सत्य उजागर करने का श्रेय आपको प्राप्त है। वर्तमान में संभवतः आप गृह-विभाग में सचिव के रूप में तैनात हैं।

इन दिनों आप *लेट्स इंस्पायर बिहार(आइए, मिलकर प्रेरित करें बिहार)* नामक मुहिम को एक महा-अभियान की तरह आगे बढ़ा रहे हैं। अब तक इस मुहिम से आप *11,000 प्रभावी एवं ऊर्जावान लोगों* को जोड़ चुके हैं। उनमें युवाओं, शिक्षकों, विविध क्षेत्रों के उच्च पदस्थ अधिकारियों, प्रोफेशनल्स से लेकर उद्यमियों तक लगभग हर क्षेत्र के प्रबुद्ध, प्रभावी, कुशल एवं सक्रिय लोगों की भागीदारी है।

आप यदि गहराई से चिंतन करें तो इस निष्कर्ष पर पहुँचेंगे कि भारत के पराभव एवं वर्तमान की भी अनेकानेक समस्याओं का मूल कारण आत्मविस्मृति, संस्कृति-शून्यता, स्वत्व-बोध का अभाव, परावलंबिता एवं परमुखापेक्षिता है। ठीक यही समस्या बिहार की है। यह मर्मांतक वेदना एवं गहरी चिंता का विषय है कि अतीत का गौरवशाली बिहार वर्तमान में जातिवाद के दलदल में आकंठ डूबा नज़र आता है, इतना कि कई बार अपनी-अपनी जाति के अपराधियों में नायकत्व ढूँढने और देखने लगता है। इसी चिंता, पीड़ा और वेदना से गुजरते हुए विकास जी ने यह चिंतन किया कि जिस बिहार के पास अतीत के इतने दिव्य, भव्य एवं गौरवशाली चित्र व स्वर्णिम अध्याय हों, उसकी ऐसी दुर्गति! अंततः वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि यह केवल इसलिए है, क्योंकि हममें स्व, स्वत्व और स्वाभिमान का बोध नहीं है। है तो कवेल मिथ्या आडंबर या अंधा अनुकरण। वर्तमान को यदि उसके स्व, स्वत्व और स्वाभिमान का वास्तविक बोध करा दिया जाय तो भविष्य की तस्वीर और तक़दीर दोनों बदली जा सकती है।

स्व, स्वत्व एवं स्वाभिमान का बोध क्षेत्रीय अस्मिता के अतिरेकी उभार या उबाल के लिए नहीं, अपितु इसलिए कि अतीत के गौरव-बोध से प्रेरित-परिचित-संचालित बिहार न केवल राष्ट्र बल्कि विश्व-मानवता के विकास में भी अपना अधिकतम योगदान एवं भागीदारी सुनिश्चित कर सकता है। बल्कि हम तो उस गौरवशाली परंपरा एवं संस्कृति के वाहक हैं, जो अखिल विश्व-ब्रह्मांड में, सृष्टि के अणु-रेणु में एक ही चेतना के दर्शन करती आई है। सनद रहे कि इस सत्य-सनातन-प्रवहमान सांस्कृतिक धारा में हमारा अस्तित्व बूँद के करोड़वें अंश जितना भी नहीं, पर यदि हम स्वयं को समाज-सागर में विलीन कर दें तो ‘सेतुबंध’ के ‘गिलहरी-सा’ हमारा अपना जीवन भी कृतकृत्य हो उठता है। जीवन की कृतार्थता अपनी सीमा के सतत बोध और असीम-अखंड-सनातन समाज-सागर में विलीन कर स्वयं को विस्तार देने में ही है। बल्कि यों कहें कि विस्तार ही जीवन है, संकीर्णता ही मृत्यु है। कुछ ऐसे ही भाव को लेकर श्री विकास वैभव जी आज बिहार के नगर-डगर की दूरी नाप रहे हैं, किशोरों-युवाओं से निरंतर संवाद कर रहे हैं, उन्हें याद दिला रहे हैं कि ‘वे क्या थे और क्या हो गए हैं?’ न केवल बिहार के नगर-डगर अपितु वे देश भर में प्रवास कर बिहार से बाहर काम कर रहे प्रदेशवासियों का भी सहयोग के लिए आह्वान कर रहे हैं। शिक्षा, समता एवं उद्यमिता के महान ध्येय को साकार करने का संकल्प लेकर वे चले हैं।

उनकी संकल्पशक्ति एवं इच्छाशक्ति से मैं उनके विद्यार्थी-काल से परिचित रहा हूँ। आईआईटी से जब वे मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे, तब भी उनके मन में चाणक्य-नीति से लेकर वेदों-उपनिषदों आदि में निहित महानतम ज्ञान को युवा-पीढ़ी के साथ साझा करने की भावनाएँ पलती थीं, तब भी सामाजिक सरोकारों के प्रति उनकी सजगता प्रेरित-प्रभावित करती थी। राष्ट्र के उत्थान-पतन के कारणों की गहन मीमांसा तब भी वे घंटों किया करते थे। मैं इन सबका कभी मौन साक्षी तो कभी सक्रिय भागीदार एवं संवाद का साथी हुआ करता था। मेरे अनेक निकटस्थ मित्र-परिचित प्रशासनिक सेवा में हैं। कुशल-क्षेम पूछने के क्रम में यदा-कदा उनसे बातचीत भी होती है। मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ कि विकास जी की सरोकारधर्मिता उन्हें उनमें सबसे विशिष्ट बनाती है। ‘लेट्स इंस्पायर बिहार’ नामक पवित्र एवं सामूहिक अभियान की सफलता के लिए आएँ, हम-आप सभी अपना-अपना गिलहरी-योगदान दें!

तय मानिए, हमारे-आपके इस गिलहरी-प्रयास से एक दिन बड़ा बदलाव संभव होगा। छोटे-छोटे सामूहिक प्रयास ही युगांतकारी बदलाव संभव बनाते हैं। राष्ट्र-यज्ञ की इस पवित्र अग्नि में हम-आप सभी समय और साधनों की आहुति देकर एक दिव्य आभा पैदा कर सकते हैं, जिसके प्रकाश में भविष्य का पथ आलोकित होगा। ईश्वर करें, श्री विकास वैभव जी का यह पहल-प्रयास, साधना-संकल्प सामूहिक साधना-संकल्प बने! याद रहे संवेदना की शुरुआत पड़ोस-परिवेश से होती है। आइए, विकास जी के स्वर में स्वर और क़दम-से-क़दम मिलाते हुए हम भी यह संकल्प दुहराएं:-

 

अंधकार को क्यों धिक्कारें।
अच्छा है, एक दीप जलाएँ।।
प्रणय कुमार
लेखक एवं शिक्षाविद

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