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शाहीनबाग का प्रयोग: जनून के जावेद खान के लिए दस्तक

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आज से चार वर्ष पूर्व एक लेख लिखा था, वह आज की दिल्ली और शाहीनबाग के संदर्भ में ज्यादा प्रसांगिक हो गया है। मूल लेख में वांछित परिवर्तन किया गया है। लेख का मूल श्रोत और आत्मा वही है बस शब्द और सन्दर्भ, वर्तमान के है। मेरा पूरा लेखन या फिर मेरा विचारों को लेकर किया गया मनन, पूरी तरह से या तो मेरी निजी जिंदगी के अनुभवों या फिर, इतिहास से जो कुछ मैने समझा है, उस पर आधारित होता है। मैं अपनी बातों को समझाने के लिए प्रायः इतिहास की शरण मे चला जाता हूँ और उनसे जो जीवन मे अनुभव हुये है, उसी को लिपिबद्ध कर देता हूँ।

पिछले कुछ महीनो से, सुबह जब मैं उठता था तो कभी कभी मेरी पत्नी मुझसे शिकायत करती थी की मैं रात को ठीक से सोता नही हूँ, सोते वक्त गले से आवाजे निकलती है और नींद में चीखता हूँ। मुझे हमेशा उसकी इन बातो पर झल्लाहट होती थी और मैं उसका मजाक बनाता था। मुझ को यह तो मालूम था की मैं नींद में खर्राटे लेता हूँ लेकिन रात को इस कदर अशांत सोता हूँ, इस पर विश्वास नही होता था। लेकिन पत्नी ने जब कई बार टोका तो मैं थोड़ा चौकन्ना हो। मेरे लिए उसका रात के 2 / 3 बजे, हिला कर जगाना या मेरी आवाज़ों को रिकॉर्ड करके, मुझे सुबह सुनाना, वाकई बड़ी शर्मिंदगी हो गयी थी। उसको रात के अँधेरे में मेरे चीखने की घुटी घुटी आवाज डराती थी और वह मेरे मानसिक स्वास्थ को लेकर भी परेशान हो उठी थी। मैं इस सबसे परेशान तो हो रहा था और कुछ कुछ कारण भी समझ में आरहे थे लेकिन जो मन मे उथल पुथल थी उसको कह नही पा रहा था।अब मैं उससे कैसे कहूँ की, मुझे रात को नींद में यह आभास होता है की जैसे कोई धुंध से लिपटा एक बिम्ब, मुझ पर भारी होता जारहा है, मुझे जकड़े जारहा है और यही मुझे डरा जाता है। मैंने अपनी हालत को समझने में कोई भूल नही की थी क्यों की मैंने मनोविज्ञान (ह्यूमन साइकॉलजी) पर बहुत पढ़ा है और उसे समझा हुआ है। मुझको इसकी अनुभूति तो थी कि कुछ तो है जो मेरे अचेतन मन पर सवार हो जाता है, कुछ तो है, जो मुझे निद्रा में दिखता है लेकिन उठने पर याद नही आता है। 

मैं अपने अनुत्तरित प्रश्नों की उधेड़बुन में ही उलझा हुआ था कि आज से चार दिन पहले, मुझे टीवी पर आरही श्याम बेनेगल की “जनून” देखने का मौका मिला। यह फिल्म रस्किन बांड के उपन्यास, ‘Flight of Pigeons’ पर आधारित है, जो 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि में, लखनऊ के नवाबो,जमींदारो और अवध के साथ भारत की अंग्रेजो से हुई हार की कहानी कहती है। इस फिल्म की कहानी के उत्तरार्ध में एक मोड़ आता है जहां अवध के सैनिक, रुहेलखंड में हुए युद्ध मे, अंग्रेजो से लड़ाई में हार कर, लखनऊ वापस लौटते है। हार कर लौटने वालों मे से एक सैनिक, सरफराज खान है, जिसे नसीरुद्दीन शाह ने निभाया है। वो घायल और हार कर, जब वापिस अपनी हवेली पहुंचता है, तो वहां अपने बहनोई जावेद खान, जिसे शशि कपूर ने निभाया है, को दीन दुनिया से बेखबर, अपनी आशिकी और कबूतरो के शौक में मशगूल देखता है। अंग्रेजो से दिल्ली हारने के दुख व पराजय की हीनता से भरा हुआ सरफराज खान, जब इस संकट की घड़ी में अपने समाज के अभिजात वर्ग की विलासिता, तटस्थता और स्वार्थपरायणता देखता है तो टूट जाता है। वह आपना आपा खो देता है। वो दर्बों से कबूतरो को निकाल कर फेंकता है और गुस्से में रोते हुए चीखता है,

“लानत है इन कबूतरो पर ! 

खबीस , मगरूर, साजिशी परिंदे!! 

इनकी मौजूदगी में हमारे सिपाहियों की मौत लिखी है! इब्नीस की औलाद!”

यह सब देख कर उसका बहनोई जावेद खान, गुस्से में आकर, सरफराज खान के हाथ पकड़ लेता है और कहता है, “रुक जाओ, नही तो मैं तुम्हे मार दूंगा!”

इस पर सरफराज बड़े कातर स्वर में, गुस्से से चिल्लाता है,

“इन्हे बचाने के लिए मुझ पर हाथ उठाएंगे!! 

अपने मुल्क के लिए नही?”

इन्ही खुदगर्जियों ने हमे दगा दिया है जावेद भाई!! 

हम दिल्ली हार गए है!! 

दगा…. दगा….. दगाबाज, खुदगर्ज बड़े बड़े पड़े है, इस मुल्क में! 

अहसनुल्ला,  जीनत महल सब के सब दगाबाज और आप? एक जनून की गिरफ्त में आकर, अपने आप को दगा दे रहे है!”

यह दृश्य देखा और इन शब्दों को सुना तो लगा मैं किसी तन्द्रा से जग गया हूँ। मुझे नींद में जो धुंध से लिप्त बिम्ब जकड़ लेता था, वह सामने दिखने लगा था। यह सरफराज खान ही है जो रातो में मेरे जेहन को कब्जिया लेता था। नींद में जो मेरी चीखे निकलती थी, वह भारत के जावेद खानों को देख कर निकली थी।

धर्मनिर्पेक्षिता, बौद्धिकता के अहंकार, सर्वश्रेष्ठता की हीनता, 

स्वार्थवादिता की प्राथमिकता व असफलता की  कुंठा के जनून में गिरफ्तार यह लोग, कब अपने को दगा देकर, अहसनुल्ला, जीनत महल बन कर दिल्ली का सौदा कर बैठे है, यह इन्हें पता ही नही चला है। अब हमे फिर से दिल्ली नही हारनी है। 

शाहीनबाग जिसे प्रधानमंत्री मोदी जी, भारत मे अराजकता फैलाने के लिए, कांग्रेस व आम आदमी पार्टी का राजनैतिक प्रयोग बता रहे है, वह एक राजनैतिक वक्तव्य है। उनका असली मन्तव्य भारत को यह बताना है कि धर्मनिर्पेक्षिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की ओट में, यह गज़वा ए हिन्द की मानसिकता वालों का पूरे भारत का इस्लामीकरण करने के प्रयास की सफल बनाने के लिए किया जारहा प्रयोग है। 

शाहीनबाग एक चेतावनी है। इस प्रयोग को रोकना और असफल करना है तो लोगो को अपनी विलासिता, तटस्थता और स्वार्थपरायणता को त्यागना होगा। हमे अपने घरों से बाहर निकल कर शाहीनबागों को उजाड़ना होगा। यदि आज भारत के जावेद खानों ने अपनी आशिकी और कबूतरो को नही छोड़ा तो फिर शाहीनबाग से एक जनून उठेगा और उनको ही खत्म कर देगा।

हमे दिल्ली नही हारनी है। 

दिल्ली ही भारत है, भारत ही हिन्दू है।

#pushkerawasthi

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