अमित सिंघल जी के इस लेख से मैं पूर्णतः सहमत हूँ। काल ने परिस्थितिवश, मुझे जिस स्थान पर नियत किया है वहाँ से वर्तमान में हो रही घटनाओं को देखने की दृष्टि और समझने की बौद्धिकता कुछ विशेष है। इसी नियति के कारण, मैंने राजनीतिक विषय पर लेखन के कार्य से अपने आपको कुछ समय से विमुख किया हुआ है। मेरा जब भी इष्ट मित्रों से केंद्र की मोदी सरकार, उत्तरप्रदेश की योगी सरकार और २४ कैरट के कट्टर झट्टर राष्ट्रवादियों व हिंदुओं द्वारा बात बात पर आलोचना और विलाप पर विमर्श होता है तो मैं यही कहता हूँ की भाजपा की सबसे बड़ी शक्ति, विपक्ष का मानसिक रूप से दिवालिया होना है तो विपक्ष का सबसे बड़ा अस्त्र, मोदी सरकार के यह २४ कैरेट वाले ज्ञानी आलोचक है। मेरा धरातल पर यही अनुभव रहा है २०१४ से पहले नेपथ्य में सिमटे रहे यह लोग, जिनकी न पहचान थी और न आवाज़ थी, वे आज इस बात का भी आत्मचिंतन नही कर रहे की वर्तमान में उनके स्वयं का अस्तित्व में आना, पल्लवित होना और फिर प्रतिस्थापित होने का कारक वे स्वयं नही बल्कि २०१४ में नरेंद्र मोदी जी द्वारा भाजपा की सरकार बना, प्रधानमंत्री बनना है। इन ज्ञानियों को यह समझ नही आता की विचारधारा की पुनर्स्थापना उनकी आलोचना से नही बल्कि दो पीढ़ियों तक सत्ता की निरंतरता में निहित है।
आत्मघाती समर्थक !
प्रधानमंत्री मोदी के कुछ समर्थक सरकार की आलोचना करते है कि सरकार अपने पक्ष में नैरेटिव स्थापित नहीं कर पायी। वे लिखते है सरकार को “ऐसे” अपने आपको डिफेंड करना चाहिए था; फलाने का उत्तर नहीं देना चाहिए; ढिकाने को “वैसे” घसीट देना चाहिए। यह मंत्री निकम्मा है; वह मंत्री बेकार है।