Home लेखक और लेखपुष्कर अवस्थी योगी जी, 24 जून की बैठक: सत्य और अपने अपने सत्य

योगी जी, 24 जून की बैठक: सत्य और अपने अपने सत्य

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पिछले काफी समय से एक प्रश्न मुझसे अक्सर किया जाता रहा है कि मैं वर्तमान में पूर्व की भांति अपना लेखन कार्य क्यों नही कर रहा हूँ? मैं इस प्रश्न का सबसे संतोषप्रद उत्तर यही देता रहा हूँ कि 2019 से घर परिवार की स्थितियां ऐसी बनी की पिता जी का स्वास्थ व उनकी सेवा ही मेरे जीवन का ध्येय बन गया था, वही मेरी प्राथमिकता थी। पिता जी के बैकुंठवास के बाद भी जीवन कुछ आपाधापी में रहा और इसके बाद भी जब भी कुछ लिखना चाहा तो कुछ व्यवहारिक कारणों से या तो लेख को अधूरा छोड़ना पड़ा या फिर लिख कर उसे हटा देना पड़ा। अब मेरे यह व्यवहारिक कारण, परिस्थितिवश है, जिस पर मेरा कोई वश नही है।

परिस्थियों ने बीते वर्षों में, काल ने मुझे अनायास एक ऐसे स्थान पर परिस्थापित कर दिया है, जहां से मैं सब कुछ, कुछ ज्यादा ही साफ देख सकता हूँ। सिर्फ यही नही बल्कि मैने स्वयं को नेपथ्य में हो रहे इतिहास के निर्माण के साक्षी के रूप में भी अपने आप को कई बार पाया है। लेकिन इस सबके साथ मेरी एक त्रासदी यह है कि मैं न सिर्फ एक मूक साक्षी हूँ बल्कि अपने आँकलानो को इतने प्रत्यक्ष रूप से सत्य होता हुआ देख रहा होता हूँ कि उसे लिपिबद्ध करना, अब मेरे लिए संभव ही नही रह गया है। मैं आज इस बात को इसलिये कह रहा हूँ क्योंकि मैं बहुत समय से यह देख रहा हूँ कि राष्ट्रवाद व हिंदुत्व के कई मुखर लोगो ने सत्य का अन्वेषण व उसकी मीमांसा करने की जगह, अपने अपने सत्यों को, सत्य के ऊपर प्रतिस्थापित करने को अपना ध्येय बना लिया है। मैं समझता हूँ कि विचारधारा के स्तर इस ध्येय का होना, अपने आप मे कोई नकारात्मकता नही है, लेकिन जब यही ध्येय, वैचारिक दम्भ से ग्रसित हो, सत्य की मीमांसा या उसका आंकलन करने लगता है तब अर्थ का अनर्थ हो जाता है। इससे सत्य तो परेशान नही होता लेकिन यह प्रयास, सत्य के जिज्ञासुओं को निश्चित रूप से दिगभ्रमित करता है। मेरे लिए यह कृत्य, असत्य का सृजन करने के पाप से कम नही है।

इस तरह की विवेचनायें, मिमांसाये व कथानक बनाने का कार्य, स्थापित मीडिया पर तो कांग्रेसी व वामपंथी तंत्र द्वारा वर्षों से किया जाता रहा है, जिसके परिणाम भी हमने देखे है। इसीके परिणामस्वरूप ही हमने, 2014 में एक युग परिवर्तन के सृजन का प्रत्यक्षदर्शी होने का सौभग्य प्राप्त किया है। मुझे लगता है कि राष्ट्रवाद व हिंदुत्व के प्रहरियों को इससे बचना चाहिए।

अब मैं आता हूँ इस बात पर की यह बाते मुझे आज क्यों कहनी पड़ रही है। पिछले एक माह में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी जी के भविष्य को लेकर काफी कुछ लोगो ने कहा है। एक तरफ जहां विपक्ष व कांग्रेसी इकोसिस्टम द्वारा कुछ ‘एक्सक्लूसिव’ बाते स्थापित मीडिया व सोशल मीडिया पर बताई गई वही पर राष्ट्रवादियों द्वारा भी कम बाते नही कही गयी। जिसको देखो वह मुंह उठाये, बन्द कमरों में हो रही बातों को अपने अपने व्लोग और पेजों पर जगह दे रहा था। ये सब राष्ट्रवादी अपने अपने स्तर पर उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री पद से योगी जी को हटाए जाने या उन्हें कमजोर करने के प्रयास में नायकों और खलनायकों की खोज कर रहे थे। ज्यादातर लोग तो बड़े निश्चयात्मकता से ‘सत्य’ सामने रख रहे थे। मैने इन लोगो द्वारा परोसे गये सत्य से सामान्यजन को दिगभ्रमित व विचलित होते देखा है। यह मेरे लिए यह घनघोर कष्टकारी था क्योंकि जिस ‘सत्य’ को मैं प्रत्यक्ष देख रहा था, वह इन लोगो के लेखन व व्लोग में नही था। यहां, उंगलियों में गिनती के कुछ लोग थे जो वस्तुस्थिति का सही आकलन कर पाए थे। मेरी चिंता यह है कि जब एक ही पक्ष में सत्य अलग अलग चश्मे से देखा जाता है तो इससे ही सेना का क्षय होता है।

इसी तरह का व्यवहार, प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा 24 जून 2021 को, जम्मू कश्मीर के राजनीतिज्ञों से बैठक करने का निर्णय लिए जाने के बाद सामने आया था। यह सबके लिए निश्चितरूप से एक कतुहल का विषय था कि इस बैठक में क्या होगा लेकिन ज्ञान इस बात पर बटने लगा कि इसको क्यों बुलाया? वहां(जम्मू) से क्यों नही बुलाया? मोदी जी ने कमजोरी में बैठक बुलाई? केंद्र सरकार मुफ़्ती अब्दुल्ला के आगे कहाँ कहाँ तक झुकेंगे? इन कश्मीरी नेताओ से बैठक करना, केंद्र सरकार की रीढ़ हड्डी कमजोर होने की निशानी है! जिस बैठक की कार्यसूची उसमे बुलाये गये लोगो तक नही मालूम थी, उस पर बड़े से बड़े नामवर लोगो ने अपने अपने आंकलन दे डाले थे!

अब जब बन्द कमरे में हुई वह बैठक समाप्त हो गयी है तब भी लोग इस पर अपनी अपनी विवेचनायें दे रहे है। मुझे यह सब सत्य की खोज की जगह, अपने अपने सत्य को गढ़ने की प्रक्रिया ज्यादा लग रही है। इस बैठक से निकल कर जिन भागियों ने पत्रकारों के प्रश्नों का उत्तर दिये उन्होंने भी सत्य के स्थान पर, अपनी लज्जा व हताशा को छुपाने के लिए अपने अपने सत्य को ही कहा। जो लोग बैठक से पहले कह रहे थे कि 5 अगस्त 2019 से पूर्व की स्थिति लाई जाए या लद्दाख फिर से जम्मू कश्मीर में मिलाया जाए, वो आखिर बैठक के बाद कह ही क्या सकते थे? मैं अपनी सूचना के आधार पर, यहां बड़े दृढ़ विश्वास से कह सकता हूँ कि इस बैठक में धारा 370 को लेकर न ही कोई बात हुई है और न ही इन मुफ़्ती अब्दुल्ला के मुंह से इसको लेकर कोई बोल ही फूटे थे।

मेरा प्रारंभ से यही आंकलन रहा है कि यह बैठक न भारतीय जनता के लिए थी और न ही कश्मीर की घाटी के राजनीतिज्ञों के लिए थी, यह बैठक, जो कभी न कभी होनी ही थी, वह विश्व के कूटनैतिक जगत के लिए थी। भारत की केंद्रीय सरकार ने जब 5 अगस्त 2019 को धर 370 समाप्त कर, जम्मू कश्मीर का विभाजन व राज्य का दर्जा समाप्त किया था तब यही आश्वासन दिया था कि स्थिति सामान्य होने के बाद जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा देते हुए, पुनः लोकतांत्रिक रूप से चुनाव कर विधानसभा को पुनर्जीवित कराया जाएगा। पूरा विश्व, जिसने भारत का धारा 370 हटाने पर विभिन्न वैश्विक मंच पर साथ दिया था, उनकी दृष्टि इसी पर थी कि भारत कब और कैसे जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र की पुनर्वापसी करेगा। यह 24 जून की बैठक उसी संदर्भ में भारत द्वारा अपने वचनों को पूर्ण करने का पहला चरण था। यह बैठक , कश्मीर की घाटी के नेताओ की बात सुनने का मंच नही बल्कि उनको भविष्य दर्शन कराने के लिए थी। इस बैठक में एक तरफ जहां भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर को पुनः राज्य का दर्जा देने व चुनाव कराने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया है, वही पर यह भी बता दिया है कि उस ओर बढ़ने का पहला चरण जम्मू कश्मीर की लोकसभा व विधानसभा क्षेत्रो के परिसमन कार्य का पूर्ण होना है। इसीके साथ यह भी बता दिया गया है कि जम्मू कश्मीर को नए राजनैतिक नेतृत्व की आवश्यकता है और यदि किसी राजनैतिक दल व उसके नेताओ को प्रसांगिक बने रहना है तो नए वातावरण व भारतीय संविधानानुसार, उसकी संहिता में परिस्थापित होना होगा।

मैने देखा है की कुछ लोग मोदी सरकार द्वारा इस बैठक के औचित्य के साथ उसके कालन पर भी प्रश्न उठा रहे है। ऐसे लोगो के लिए यह बतादूँ की इस बैठक का अब होना, उनके लिए भले ही कोई अर्थ न रखता हो लेकिन मोदी सरकार द्वारा भविष्य में उठाये जाने वाले कदमो के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। भारत के पड़ोस में पाकिस्तान अधिकृत जम्मू कश्मीर में वहां की विधानसभा के चुनाव आगामी माह में होने वाले है और उसको देखते हुए, भारत के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण था कि विश्व को जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र की वापसी के संदेश दिए जाएं। भारत, भले ही पाकिस्तान अधिकृत जम्मू कश्मीर के चुनावों को स्वीकार नही करता लेकिन विश्व , वहां हो रहे चुनाव पर सूक्षम दृष्टि रक्खेगा। इसके अतरिक्त, जैसा की मेरा आंकलन है, मोदी सरकार द्वारा पश्चिम बंगाल राज्य के पुनर्गठन किया जाने वाला है, ऐसे में यह बहुत महत्वपूर्ण है कि मोदी सरकार, जम्मू कश्मीर राज्य के पुनर्गठन को एक सफल प्रयोग के रूप में, भारतीय जनता के साथ साथ विश्व की शक्तियों के समक्ष रक्खे।

यहां जो लोग मेरी बार बार जम्मू कश्मीर को लेकर विश्व के परिदृश्य को महत्व देने से व्यथित होंगे, उनको सरल भाषा मे यही समझाऊंगा की पाकिस्तान अधिकृत जम्मू कश्मीर व गिलगित बाल्टिस्तान को पुनः भारतीय सीमाओं में लाने के किसी भी प्रयास की सफलता, विश्व द्वारा भारत के कथानक को स्वीकारे जाने में निहित है।

अंत मे इतना ही कहूंगा कि 24 जून 2021 कि बैठक की सफलता और असफलता को समझना है तो सभी भागियों की संयुक्त खिंची फोटो एकाग्र हो कर देख लीजिए, सबके ललाट, अपने अपने सत्य बता रहे है।

pushkerawasthi

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