Home लेखक और लेखपुष्कर अवस्थी पाकिस्तान: 10..9..8..7..6 …

पाकिस्तान: 10..9..8..7..6 …

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हम लोग वर्तमान में जिस काल से गुजर रहे है, वह न सिर्फ विषमता भरा हुआ है बल्कि पूरी तरह से अपूर्वानमेय है। एक तरफ हम अपने अगल बगल के वातावरण में वह सब घटित होता हुआ देख रहे है, जो कभी स्वप्न में भी नही सोचा था तो दूसरी तरफ इस विभीषिका मे, विश्व के कई देशों व उनके समाजों मे वह सब हो रहा है, जिसकी शायद कुछ पूर्व पहले तक कल्पना भी नही की जासकती थी।

ऐसा ही कुछ, हमारे पड़ोसी राष्ट्र पाकिस्तान में हो रहा है। कल, पाकिस्तान के एक प्रतिष्ठित व प्रभावी पत्रकार हामिद मीर ने, पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार, पाकिस्तान के सैनिक नेतृत्व, जिसे इस्टेबलिशमेंट भी कहते है, को सार्वजनिक रूप से धमकी दी है। यह एक अविश्वसनीय घटना है। हम लोग यह तो जानते ही है कि अपने जन्म से ही पाकिस्तान या तो सैनिक तानाशाहों द्वारा शासित हुआ है या फिर वहां लोकतंत्र के नाम पर पाकिस्तानी सेना द्वारा समर्थित राजनैतिक दलों का शासन रहा है। अब तो, इस पाकिस्तानी सेना के समर्थन से चलने वाले शासनतंत्र को ‘हाइब्रिड रेजीम’ का नाम भी दे दिया गया है। इस व्यवस्था में पाकिस्तान पर शासन राजनैतिक दल ही करते है लेकिन उसकी डोर पाकिस्तानी सेना के शीर्ष नेतृत्व के हाथों होती है। पाकिस्तान की सेना का सेनाध्यक्ष, पाकिस्तान का सबसे सशक्त व्यक्ति होता है, वह पाकिस्तान में प्रधानमंत्री बनाता भी है और उसे उखाड़ता भी है।

इस तरह की व्यवस्था वाले पाकिस्तान में, लोकतंत्र व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दोनो ही कुछ शर्तों के अधीन है। यह शर्ते, पाकिस्तान के संविधान के परे, कुछ अनकही के साथ जुड़ी हुई है। उसमे सबसे महत्वपूर्ण व अनिवार्य शर्त है कि कोई भी पत्रकार, पाकिस्तान की सेना के नेतृत्व और उसकी गुप्तचर संस्था आईएसआई को लेकर न आलोचना कर सकता है और न ही उसके कार्यकलापों पर अपनी लेखनी चला सकता है। यदि कोई करता है तो उसको इसके परिणाम भुगतने पड़ते है। आप यह कह सकते है कि पाकिस्तान का इस्टेबलिशमेंट, संविधान के ऊपर है।

इस सब के बाद भी, समय समय पर पाकिस्तान के कुछ पत्रकार व मानवतावादी, पाकिस्तान के इस अलोकतांत्रिक हाइब्रिड रिजीम व्यवस्था पर प्रश्न उठाते रहे है। जब यह होता है तो या तो उन्हें उस समाचारपत्र या टीवी चैनल से नौकरी से निकलवा दिया जाता है या फिर उन्हें अगवा कर, मार पीट कर समझा दिया जाता है। इसी लिए आज कल पाकिस्तान के कई नामी पत्रकार यूट्यूब पर व्लोग कर, वह सब कहते है, जो उन्हें पाकिस्तान की नियंत्रित मीडिया पर, उन्हें कहने का अधिकार नही है। वहा पर भी यह पत्रकार, सीधे नाम न लेकर इशारों में बात कहते है। यदि किसी पत्रकार ने किसी सेना के अधिकारी का नाम लेकर कोई भंडाफोड़ किया है तो फिर अगवा कर उसे यातना दी जाती है और भविष्य के लिए चेतावनी दे कर छोड़ दिया जाता है। यदि कोई पत्रकार उससे आगे बढ़ कर पाकिस्तानी सेना व आईएसआई की करतूतों को उजागर करता है तो उन्हें सीधे गोली मार दी जाती है।

पाकिस्तान में उसकी सेना व उसके अधीन आने वाले सभी अंग, ‘होली वर्जिन मेरी’ है, उस पर कोई दाग न लग सकता है और न ही किसी को उसके दाग दिखाने की अनुमति है। ऐसे में जब कोई उनके दाग दिखा देता है तो सेना और आईएसआई की तरफ से बड़ी निष्ठुर प्रतिक्रिया आती है। पूर्व में इसके कई उदाहरण जिसमे कुछ प्रतिष्ठित नाम या तो प्रताड़ित किये गए या फिर उनकी हत्या कर दी गयी थी। 2010 में प्रसिद्ध पत्रकार ‘उमर चीमा’ को अगवा किया गया और जब इसको लेकर अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिक्रिया आयी तो छोड़ दिया गया था। उसी काल में विख्यात पत्रकार ‘कामरान शफी’ को अगवा किया और भयानक यातना देने के बाद छोड़ दिया गया। अंग्रेज़ी के खोजी पत्रकार ‘ग़ुलाम हुसनैन’, जिन्होंने दाउद इब्राहिम के करांची में आईएसआई के संरक्षण में रहने का भंडाफोड़ किया था, उनको अगवा कर के यातना दी गयी थी। सेना के कटु आलोचक, पत्रकार सलीम शहजाद की तो 2011 में गोली मार कर हत्या ही कर दी गयी थी।

अब पाकिस्तान में इमरान खान के 2018 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से इस तरह की घटनाओं में वृद्धि देखी जारही है। उसका कारण शायद यह है कि पाकिस्तानी सेना द्वारा लायी गयी इमरान खान की ‘पीटीआई’ की सरकार पहली ऐसी सरकार है जिसने परंपरागत राजनैतिक नेताओ व उनके दलों, नवाज शरीफ की ‘पीएमएल (नून): और जरदारी बिलावल भुट्टो की ‘पीपल्स पार्टी’ को राजनैतिक परिदृश्य से हटाने के लिए, लायी गयी थी। इमरान खान की पीटीआई की स्थापना 1996 में पाकिस्तान की सेना के आशीर्वाद से की गई थी और खुद इमरान खान की राजनीति भूमि तैयार करने वाले आईएसआई के भूतपूर्व प्रमुख जनरल हामिद गुल थे।

2018 में सेना के अलोकत्रान्तिक हस्तक्षेप के आलोचक पत्रकार ‘ताहा सिद्दीकी’ को कार से उठाया गया लेकिन उनको जब कार से लेजाया जारहा तो भागने में सफल हो गए थे। लेकिन वही पर पनामा लीक में सेना की भूमिका की जांच कर रहे ‘अहमद नूरानी’ उतने भाग्यशाली नही रहे उन्हें अगवा किया गया और अधमरा कर छोड़ा गया था। जून 2018 में लाहौर में लोकतंत्र व मानवाधिकार की समर्थक एक बड़ी पत्रकार ‘गुल बुखारी’ को उठा लिया गया और उन्हें धमकाने के बाद छोड़ा गया था। फरवरी 2019 में प्रसिद्ध पत्रकार व व्लोगर ‘रिजवान राज़ी’ को कुछ लोगो ने उठा लिया था, उनको पहले यातना दी गयी और फर्जी केस भी ठोक दिया गया था। सेना के कटु आलोचक प्रसिद्ध पत्रकार व व्लोगर ‘मतिउल्लाह जान’ को बीच सड़क जुलाई 2020 में उठाया गया और जब सीसीटीवी में उठाने वालों का चेहरा सामने आगया तो उन्हें यातना और धमका कर छोड़ दिया गया था। मार्च में हिन्दू पत्रकार ‘अजय लालवानी’ को जो सिंध में हिन्दू लड़कियों के बलात अपहरण व धर्मांतरण कराने के विरोध में कट्टर मौलवियों के खिलाफ और इसमे शासन की मिलीभगत पर लिख रहे थे तो मार्च 2021 में गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी। अप्रैल 2021 में ही विद्रोही पत्रकार ‘अबसार आलम’ की भी गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी।

इसी में नवीनतम कड़ी ‘असद अली तूर’ की है जो सेना की पाकिस्तान की राजनीति व समाज मे भूमिका को लेकर तीव्र आलोचना करने वाले युवा पत्रकार व प्रसिद्ध व्लोगर है, उसे घर मे घुस कर अज्ञात लोगों ने सेना के विरुद्ध आवाज उठाने पर बुरी तरह मारा लेकिन वह भाग्य से बच गया है। इस घटना ने ही ‘हामिद मीर’ के सब्र का बांध को तोड़ दिया और असद तूर से जब वे मिलने आये तो टीवी कैमरे के सामने अपने आक्रोश को रोक नही पाए और सेना को चुनौती दे डाली है। उन्होंने पाकिस्तानी सेना के शीर्ष नेतृत्व को चेतावनी दी कि यदि वे यदि घर मे घुस कर मारेंगे तो वे भी सेना की ढकी छुपी बातों को उजागर करेंगे।

मैं हामिद मीर की इस अप्रत्याशित प्रतिक्रिया के कारणों को समझता हूँ क्योंकि वे स्वयं भी भुगतभोगी रहे है। 2012 में पाकिस्तानी सेना और अल कायदा के सम्बन्धों पर लिखने पर बम से उड़ाये जाने से बचे थे। उनकी कार में आधा किलो विस्फोटक सामग्री मिली थी जिसे समय से पहले ही डिफ्यूज कर दिया गया था। इस विस्फोटक को रखने की जिम्मेदारी तालिबान ने ली थी। उसके बाद 2014 में उनकी हत्या का प्रयास हुआ था और उन्हें 3 गोलियां मारी गयी थी लेकिन वे बच गए थे। उन्होंने अपनी हत्या के प्रयास के पीछे आईएसआई और उसके प्रमुख लेफ्टीनेंट जनरल ज़हीर उल इस्लाम का नाम लिया था।

मेरे लिए हामिद मीर द्वारा पाकिस्तान की सेना को इस तरह पत्रकारों की आवाज़ बन्द करने के प्रयास से पीछे हटने की चेतावनी देना बड़ी घटना है। मीर ने पाकिस्तानी सेना के गड़े मुर्दे उखाड़ने की धमकी देते हुए पूर्व पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष व राष्ट्रपति याह्या खा की कुख्यात प्रेमीका ‘जनरल रानी’ का नाम लेकर, अपने इरादों को भी स्पष्ट कर दिया है। साथ मे, उन्होंने यह भी खुलासा कर दिया है कि पाकिस्तानी इस्टेबलिशमेंट, पाकिस्तान की मीडिया के माध्यम से, भारत से पाकिस्तान की मित्रता व इसराइल को स्वीकार किये जाने को लेकर, पाकिस्तानी की जनता को समझाने के लिए, जो कथानक स्थापित करना चाहती है, वह अब उन्हें स्वीकार नही है। हाल ही में सेनाध्यक्ष कमर बाजवा ने 26 पत्रकारों से, जिसमे हामिद मीर भी थे, एक 6 घण्टे की मुलाकात की थी और इसमें, पाकिस्तान द्वारा भारत से मित्रता व इजराइल के अस्तित्व को स्वीकारने की आवश्यकता पर बल दिया था। उस वक्त यह आंकलन किया गया था कि पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष ने इन पत्रकारों को, जिनमे ज्यादातर इस्टेबलिशमेंट के ही पाले हुए या उनका समर्थन करने वाले थे, पाकिस्तान की जनता को इस नए बदलाव को स्वीकार किये जाने के लिए मानसिक रूप से तैयार कराने के लिए कहा गया है।

मैं समझता हूँ यह कल की घटना बहुत महत्वपूर्ण है। यह स्पष्ट संकेत दे रहा है कि दिवालिया पाकिस्तान व उसकी भ्रष्ट हो चुकी सेना, भारत से किसी भी तरह के युद्ध के लिए सक्षम नही रह गयी है। आज सेना उस जहर की फसल को जला देना चाहती है जो उन्ही ने ही पिछले 7 दशकों से तैयार की थी। लेकिन अब इसकी व्यवहारिकता पर प्रश्न खड़ा हो चुका है। पिछले 40 वर्ष में जिया उल हक के कट्टर इस्लाम की छाया में विच्छिप्ता तक भारत, इजराइल व हिंदुओं, यहूदियों से घृणा में पूरी तरह संक्रमित पाकिस्तानी समाज व उसकी जनता आज, पाकिस्तान की सेना की इस नई पहल को स्वीकार करने को ही तैयार नही है। इससे यही संकेत मिल रहे है कि पाकिस्तान में जो भी होगा, वह अब सामान्य नही होगा। पाकिस्तान की आम जनता मे कट्टर इस्लाम का ज़हर इस स्तर तक फैल चुका है और वे स्वयं में आत्मघाती समाज बन चुके है। मुझे पाकिस्तान के विघटन में जो कारण दिखते थे, उसमें इस आयाम ने अब परिपक्वता प्राप्त कर ली है। मुझे आज पाकिस्तान, आत्महत्या की राह पर बहुत आगे जाते दिख रहा है।

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