गुरुजनों का आदर

by Jalaj Kumar Mishra
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हमारे यहाँ एक‌‌ बात हरदम कहा जाता है कि जीवन में गुरुदेव सब कुछ होते हैं। इस देश में गुरुकुल‌‌ और विद्याश्रम‌‌ के खत्म‌ होने के बाद रही सही कसर मैकाले ने पुरी कर दी!‌मैकाले के बाद‌ भी जबतक मैकाले वाली पीढ़ी समाज में थी उनलोगों ने अपने गुरुजनों को‌ खूब आदर दिया और उनमें श्रद्धा रखी! अपने औलादों‌ को भी उस पीढ़ी ने सिखाया कि

धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः ।
तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते ॥

अर्थात धर्म को जाननेवाले, धर्म मुताबिक आचरण करनेवाले, धर्मपरायण, और सब शास्त्रों में से तत्त्वों का आदेश करनेवाले गुरु कहे जाते हैं ।

इसके बाद 1975 के बाद कांग्रेसी वामपंथी गठजोड़ में इस देश में सबसे ज्यादा मिसनरी स्कूल खुले और हिन्दू समाज बच्चों ने भी एक घर में फादर देखा और इससे अलग एक‌ विद्यालय नही स्कूल में फादर देखा ! विद्यालय इसलिए नही क्योंकि मिसनरी स्कुल विद्या‌ नही देते बल्कि आपको‌ अपने धर्म से विमुख करने का ज्ञान देना शुरु करते हैं। मिसनरी स्कुल धर्मपरिवर्तन के लिए चलाये जा रहे प्रकल्प का सुरक्षा कवच मात्र है! यह समाज में स्थापित एक विशुद्ध छल है। आपको पता नही लगता कि आप‌ने अपनी धर्मनिष्ठता कब उनके यहाँ गिरवी रख दी और सेक्युलर लबादा ओढ़े अपने असंख्य पीढ़ियों के त्याग,बलिदान और गौरव को धूमिल कर दिया।

अब विद्या के बाजारीकरण ने गुरु‌ के अर्थ को बदल‌ दिया। फिर भी आप‌ अगर महानगरीय मोह से दूर जाएंगे तो पाएंगे कि माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक तक गुरुजनों‌ का अपने शिष्यों से लगाव अद्भुत रहता हैं। शिष्य की प्रगति गुरुजी की अपनी प्रगति लगती है। उन्हे ऐसा लगता है जैसे उनका बोया हुआ फसल लहलहा रहा हैं।शिष्यों के पुत्रवत स्नेह और उनके प्रति निष्ठा अद्भुत होती हैं।

गुरुकुल की परम्परा वाले इस देश में जब गुरु पुर्णिमा की शिक्षक दिवस मनाने का प्रचलन चलाया गया उस समय हमलोगों को अपने जड़ो से काटने के दिशा में एक और प्रहार था। खैर कहा जाता है‌‌ कि गुरु बिना ज्ञान नही मिलता है। गुरु के बारे मे बताया गया है कि

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु ही शंकर है,गुरु ही साक्षात् परब्रह्म है । हम गुरुजी को प्रणाम करते है।

आधुनिक कालखंड में आप यह भी मान सकते है कि
प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा ।
शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः ॥

अर्थात प्रेरणा देने वाले, सूचना देने वाले, सच बताने वाले, रास्ता दिखाने वाले, शिक्षा देने वाले, और बोध कराने वाले ये सब गुरु के समान है मैं सौभाग्यशाली हूँ कि आज भी मुझे गुरुजनों का सहयोग और मार्गदर्शन प्राप्त होते रहता है। सनातन धर्म में विद्या देने वाले गुरु के अलावा कुल गुरु का स्थान भी सर्वोच्च है।आप सभी को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक बधाई और बहुत बहुत शुभकामनाएँ । मैं अपने गुरुदेव के चरणों का सादर वंदन करता

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