Home चलचित्र BycottShikara #स्टॉकहोम सिंड्रोम से ग्रसित कश्मीरी हिंदुओं का प्रोजेक्ट:शिकारा

BycottShikara #स्टॉकहोम सिंड्रोम से ग्रसित कश्मीरी हिंदुओं का प्रोजेक्ट:शिकारा

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मैने जिस दिन विधु विनोद चोपड़ा की आगामी फिल्म ‘शिकारा’ का ट्रेलर देखा था, उसी दिन ही मैने त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए लिखा था कि मैं, व्यक्तिगत रूप से, विधु विनोद चोपड़ा की बौद्धिक व सेक्युलर लिबरल पृष्ठभूमि के कारण इस फ़िल्म को लेकर सशंकित हूँ। हालांकि ‘शिकारा’ को लेकर सोशल मीडिया पर तमाम राष्ट्रवादियों और  हिंदुत्ववादियों की सकारात्मक प्रतिक्रियाएं और उत्साह देखा जारहा था। अब जैसे जैसे फ़िल्म के प्रदर्शित होने की तिथि पास आती जारही है, वैसे वैसे मेरी आशंकाओं को बल मिलता जारहा है और इसी के साथ ‘शिकारा’ को लेकर सारी दुविधायें भी समाप्त हो गयी है। मेरा दिमाग उसी वक्त ठनका था जब इस फ़िल्म की विधु चोपड़ा ने घोषणा की थी, तब उसका नाम ‘लव लेटर फ्रॉम कश्मीर’ रक्खा था।  मेरे अंदर से एक प्रश्न बार बार उठता था कि कोई कश्मीरी हिन्दू, कश्मीर से प्रेम पत्र, की परिकल्पना कैसे कर सकता है? बाद में 5 अगस्त 2019 को जब नरेंद्र मोदी जी की सरकार ने, जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटा दी, तब फ़िल्म का नाम बदल दिया गया था। अब प्रश्न यह है कि जिस व्यक्ति का घर इस्लामियों ने कश्मीर में जला दिया हो और जिसकी मां, विस्थापित हों कर, कभी भी वापस न जासकि हो, वह व्यक्ति ‘मिशन

कश्मीर’ बनाता है लेकिन कश्मीर की घाटी के इस्लामीकरण और हिन्दुओ के नरसंहार पर कुछ नही बोलता है? मुझे बाद में इस प्रश्न का उत्तर तब मिला जब उसने ‘पी के’ में हिंदुओं की भावनाओ का बिना संज्ञान उनके भगवानों का मजाक बनाया और बिना किसी कारण के एक भारतीय हिन्दू लड़की का पाकिस्तानी मुस्लिम से प्रेम व विवाह दिखाया था। 

मुझको यह सब कुछ यही बताता है कि विधु विनोद चोपड़ा न भारत के अंतःकरण का प्रतिनितित्व करता है और न ही कश्मीर के हिंदुओं का। हिंदुत्व और राष्ट्रवादिता से बौद्धिक द्वेष से पीड़ित यह विधु चोपड़ा, सिर्फ सेक्युलर लिबरल बीमारी से ग्रसित भारत के भृष्ट व दुष्चरित्र तथाकथित बुद्धजीवी अभिजात वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। चोपड़ा ने “शिकारा”, कश्मीर की घाटी में मुसलमानों द्वारा हिन्दुओ के साथ किये बलात्कार, नरसंहार और उनको 1990 में घाटी से विस्थापित किये जाने के सत्य को डॉक्यूमेंट करने के लिए नही बनाई है। यह फ़िल्म, भारतीय सेक्युलर इस्लामी वामी लिबरल गिरोह के द्वारा, कश्मीर की घाटी के इस्लामीकरण और मुसलमानों द्वारा किये गए नरसंहार के सत्य पर पर्दा डाल कर, हिन्दू मुस्लिम सोहार्थ, कश्मीरियत और हिंदुओं की विस्थापना के लिए सिर्फ सरकारें उत्तरदायी ठहराने के मिथ्या कथानक को स्थापित करने के लिए बनाई गई है।

यह ‘शिकारा’ किस के शिकार के लिए बनाई गई है वह वामपंथी लुच्चे रविश कुमार द्वारा इसके प्रचार के लिए लिखे लेख व उसके लिए पूरा प्रोग्राम करना बता दे रहा है। ‘शिकारा’, हिंदुत्व व राष्ट्रवादिता के सार्थको का मानसिक शिकार करने के लिए बनाई गई है। जिस तरह 1946 के डायरेक्ट एक्शन, नौखाली, मोपला में कट्टर मुस्लिमों द्वारा हिंदुओं के नरसंहार को गांधी जी और कांग्रेस ने सही कारणों से अपना मुंह छुपाया था, उसी तरह कश्मीर की घाटी में हिंदुओं के साथ हुये बलात्कार, नरसंहार और विस्थापना के मूल कारणों से मुहँ छुपाने के लिए ‘शिकारा’ का निर्माण किया गया है।

यह फ़िल्म किन कश्मीरी हिंदुओं ने बनाई है और किस सोंच के साथ बनाई है यह बात फ़िल्म के प्रचार के समय, उसके सेक्युलर लिबरल निर्माता निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा व सह लेखक राहुल पंडिता, जो नक्सली है, ने जो उद्गार व्यक्त किये है उससे आसानी से समझा जा सकता है। 

विधु चोपड़ा कहता है कि “यह सब(हिंदुओं का बलात्कर,नरसंहार और विस्थापना) हुये अब 30 वर्ष बीत चुके है, अब हम लोगो को एक दूसरे से माफी मांग कर आगे बढ़ जाना चाहिए। यह सब वैसा ही है जैसे दो दोस्तों(कश्मीरी हिन्दू और मुसलमान) के बीच छोटा सा झगड़ा हुआ लेकिन वे दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते है।” यह चोपड़ा कैसा कश्मीरी हिन्दू है जो मुसलमानों द्वारा उसके ही लोगो के किये गए नरसंहार को दोस्तों के बीच लड़ाई कह रहा है? यह दोस्तो के बीच कैसी लड़ाई है जिसमे एक दोस्त दूसरे दोस्त की स्त्रियों के साथ बलात्कार व परिवार की हत्याएं और विस्थापित होने को मजबूर करता है? आगे विधु चोपड़ा अपनी सेक्युलरता व लिबरल सोंच को बड़े गर्व से यह कहते हुए स्थापित करता है कि मेरी फिल्म पिछले दो वर्षों से कश्मीर में ही बन रही थी और मेरी फिल्म के आधे से ज्यादा सदस्य स्थानीय मुस्लिम है। 

‘शिकारा’ की पटकथा, विधु चोपड़ा के साथ माओवादी वामपंथी लेखक व पत्रकार राहुल पंडिता ने लिखी है। यह भी चोपड़ा की तरह कश्मीरी हिन्दू है और उसका परिवार भी 1990 के नरसंहार में विस्थापित हुआ है। राहुल पंडिता अन्य वामपंथियों की तरह कितना बड़ा दोगला है यह साक्षत्कार में कही इस बात से पता चलता है, जिसमे वह कहता है कि ” मेरे अपने कश्मीरी मुस्लिम मित्रो से मौन अनुबंध है की हम लोग 1990(मुसलमानों द्वारा हिंदुओं का बलात्कार, नरसंहार और विस्थापना) पर कोई बात नही करेंगे। हम लोग आज की चर्चा करते है अपनी भाषा में बात करते है।”

मैं समझता हूँ कि यह उद्गार किसी सामान्य व्यक्ति के नही हो सकते है, यह सेक्युलरता से विच्छिप्त व्यक्तित्व के उद्गार है। यह अपने कातिलों के साथ हमबिस्तर होने की विकृति सिर्फ अपने से ही हीनता और घृणा करने वाली प्रजाति में ही विकसित हो सकती है, जो यह लोग है। यह लोग चाहते है इन लोगो की तरह पूरा भारत भी सोचने लगे, इन लोगो की तरह शेष भारत का हिन्दू भी पूर्व की तरह, 1990 को कश्मीर की घाटी में हुए उसके नरसंहार को भूल जाये। यह कश्मीर के विस्थापित हिंदुओं के उस वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रहे है जो अपनी विस्थापना के लिए, कट्टर मुसलमान और जेहादी मानसिकता को भूल कर, सरकार को दोषी सिद्ध करना चाहते है। भारत का देशद्रोही मीडिया भी इन्ही लोगो को कश्मीरी हिंदुओं का वास्तविक प्रतिनिधि सिद्ध करने में लगी हुई है। 

यह वे लोग है जो ‘स्टॉकहोम सिंड्रोम’ से पीड़ित है। स्टॉकहोम सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति को कहते है जब पीड़ित, अपने प्रताड़ित करने वाले से सहानभूति करने लगता है, जब एक बंधक अपने अपहर्ता के प्रति प्रीत करने लगता है। मनोवैज्ञानिक इस सिंड्रोम को हताहति व्यक्तित्व, वर्ग या समुदाय द्वारा अपने पर अत्याचार करने वाले से अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये एक रणनीति की उपज के रूप में देखते हैं। इस सिंड्रोम का प्रभाव आंशिक से दीर्घकालीन होता है। 

विधु विनोद चोपड़ा की ‘शिकारा’ स्टॉकहोम सिंड्रोम की उपज है और अहिंसक, भीरू व नपुंसक हिन्दुओ को इसी सिंड्रोम की छत्रछाया में लाने का प्रयास है। हम लोगो को कश्मीरी हिंदुओं में स्पष्ट विभाजन करना होगा क्योंकि चोपड़ा, पंडिता ऐसे इस तरह के कई कश्मीरी हिन्दू है जो पिछले 3 दशकों से विक्टिम कार्ड खेल खेल कर, भारत के  भृष्ट व अमर्यादित अभिजात वर्ग का हिस्सा बन चुके है। हमे इन लोगो की तरह 1990 को न भूलना है और न ही क्षमा करना है। हमे पूर्व की तरफ नरसंहारों और प्रताड़ना को नही भूलना है और इस नए ‘शिकारा’ का शिकार नही होना है।

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