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स्पॉटलाइट, चर्च, बाल यौन शोषण और वर्तमान भारत: एक अंतर्कथा

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2015  में हॉलीवुड की एक फिल्म आयी थी ‘स्पॉटलाइट’, जिसे 2015 का सर्वश्रेष्ठ फिल्म का ऑस्कर अवार्ड भी मिला था। यह फिल्म सत्य घटना पर आधारित है और जब मैंने उसको पहली बार देखा था तब अंदर तक हिल गया था। टॉम मैकर्थी द्वारा निर्देशित यह फिल्म, ‘द बोस्टन ग्लोब’ अख़बार की इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट टीम ‘स्पॉटलाइट’ की कहानी कहती है जिसने 2002 में बोस्टन और उसके आस पास के इलाको में रोमन कैथोलिक प्रीस्टो(पादरियों) द्वारा बच्चों के यौन शोषण के मामलो को उजागर किया था।

इस फिल्म को अभी हाल में टीवी पर फिर से देखने का जब मौका लगा तो मुझे इस फिल्म को दो डायलोड बड़े सारगर्भित लगे, जो वर्तमान की स्थिति को बढ़िया तरीके से समझाते है। चलिए पहले फिल्म की कहानी और उसके पात्रो को जान लेते है क्योंकि इन दो डायलॉग के महत्व को समझने के लिए यह जरुरी है। बोस्टन, अमेरिका का वह शहर है जहाँ सबसे ज्यादा कैथोलिक पाए जाते है और जहाँ रोमन कैथोलिक चर्च का समाज और सामाजिक जीवन में विशेष प्रभाव है यही से  ‘द बोस्टन ग्लोब’, अखबार निकलता है जिसकी गिनती अमेरिका के मशहूर एवं प्रभावशाली अखबारों में की जाती है। इस अख़बार में एक नया सम्पादक, मार्टी बैरन आता है जो की एक ‘यहूदी’ है। 

मार्टी बैरन, अपनी पहली सम्पादकीय मीटिंग में स्पॉटलाइट टीम के पत्रकारों माइकल रेजेंदेस, वाल्टर “रोबी” रॉबिन्सन, साचा फीफर, बेन ब्रेडली और मैट करोल से पूछता है की क्या किसी के पास कल के लिखे, एलीन मैकनमारा के कॉलम पर कोई जानकारी है? इसमें लिखा था की एक जज ने बोस्टन के कार्डिनल और एक भूतपूर्व पादरी जॉन जॉगहन, जिस पर 100  बच्चो के साथ यौन शोषण करने का आरोप है, के खिलाफ दायर एक सिविल सूट में मुक़दमे के दस्तावेजो को सील यानि मोहर बंद कर दिया है। ऐलीन की शिकायत थी की यदि केस आउट ऑफ़ कोर्ट सेटल होजाता है तो इस पुरे मामले में कार्डिनल की सज़िशीय भूमिका कभी सामने नही आपायेगी। मार्टी बैरन बताता है की भूतपूर्व पादरी पर  पिछले 30 सालों में अपने 6 पैरिश(पादरी का क्षेत्र) में लगभग 100  बच्चो का यौन शोषण करने का आरोप है और उन बच्चों के वकील  मिशेल गरबेडियन का आरोप है की कार्डिनल बर्नार्ड लॉ को 15  साल से यह बात पता थी लेकिन उन्होंने पादरी जॉन जॉगहन के खिलाफ कार्यवाही करने की जगह उसका तबादला करते रहे है। 

स्पॉटलाइट टीम बैरन से कहती है की यदि इस पर इन्वेस्टीगेशन किया जायेगा तो कार्डिनल इसको अपने व कैथोलिक चर्च के खिलाफ इन्वेस्टीगेशन मानेंगे और पूरा कैथोलिक प्रधान तन्त्र व समाज  अख़बार के विरुद्ध हो जायेंगे। यहां यह भी बात आती है की चर्च ने अपने पर लगे इल्जामो को बेबुनियाद बताया है और यौनशोषण से पीड़ित बच्चो के वकील मिशेल गरबेडियन की प्रसिद्धि एक सनकी के रूप में ज्यादा है इसलिए उसके द्वारा लगे गए आरोपो पर विश्वास नही किया जासकता है। इस पर बैरन कहता है की यह एक संस्था की कारगुजारी का मामला है यह व्यक्तिगत मामला नही है। यह चर्च के खिलाफ नही बल्कि उसकी प्रणाली के खिलाफ है। वकील सनकी है या नही इससे भी फर्क नही पड़ता है, हमको यह देखना है की क्या चर्च ने , यौन शोषण के मामलो को जानबूझ कर दबाया है और दोषी पादरियों के खिलाफ कार्यवाही करने के बजाय उनको स्थान्तरित करने की नीति को अपनाये हुए है? 

इसके बाद स्पॉटलाइट की पूरी टीम पुरे मामले को इंवेस्टिगेट करती है और उनको तब बड़ा धक्का लगता है जब उनकी खोज इस नतीजे पर पहुंचती है की बोस्टन और उसके अगल बगल के इलाको में करीब 90 पादरी, जो की पुरे पादरी समाज के 6 % थे, ऐसे है जिन्होंने बच्चों का यौन शोषण किया था।  इन सभी मामलो में चर्च ने आरोपियों से आउट ऑफ़ कोर्ट सेटलमेंट कर के दबा दिया था। ‘द बोस्टन ग्लोब’, स्पॉटलाइट टीम की इस पूरी रिपोर्ट को, कैथोलिक चर्च और बोस्टन के तमाम प्रभावशाली लोगो के विरोध के बाद भी छाप देती है जिससे पुरे कैथोलिक समाज में भूचाल आजाता है। अपनी इस खोजी पत्रकारिता के लिए स्पॉटलाइट को उस वर्ष का पुलित्ज़र प्राइज मिला था। 

मैंने शुरू में जिन दो डायलॉग के बारे में लिखा है वह इस फिल्म में यौनशोषण से पीड़ित बच्चों के वकील मिशेल गरबेडियन अपनी स्पॉटलाइट के पत्रकार माइकल रेजेंदेस से वार्ता के दौरान बोलता है.  वह कहता है की – ‘It took an outsider at the Globe, a new Jewish editor to break a story.’ ‘“Sometimes it takes an outsider, someone with fresh eyes to see the truth.“ जिसका मतलब है की शक्तिशाली तन्त्र को वही तोड़ सकता है जो तन्त्र के प्रभाव से दूर हो। कभी कभी एक बाहरी आगंतुक ही सत्य को एक नई रौशनी में देख पाता है।

यह बात मोदी जी की काले धन पर विमुद्रीकरण का अस्त्र उठाये जाने को अच्छे से समझा देती है। यह काम मोदी जी के आलावा भारत में और कोई नही कर सकता था। यह सही है की मोदी जी इसी वातावरण से उभर कर राजनीती के इस शिखर में पहुंचे है लेकिन वह एक व्यक्ति के रूप में और सभी राजनैतिज्ञों में अपवाद स्वरूप है। उनका कोई नही है और वह किसी के नही है। वो दिल्ली में जरूर है लेकिन दिल्ली के सत्ता के तंत्र और उसकी व्यवस्थाओ के नही है। इसमें कोई शक नही है की ऐसा ही अपवाद स्वरूप व्यक्ति, भारत में रची बसी भृष्ट वास्तविकता से टक्कर लेकर भारत को महान बनने एक मौका दे सकता है।

उसी के आगे गरबेडियन कहता है की – “It takes a village to raise a child and it takes a village to abuse one.’

इसका मतलब है की एक बच्चे को बनाने में जहाँ पुरे समुदाय व समाज की भूमिका होती है वही उस बच्चे को बर्बाद करने में उसी समुदाय व समाज की भूमिका होती है। चर्च जिस की छत्र छाया में बच्चो का विकास होता है वही समुदाय उनके यौन शोषण में लिप्त होकर या फिर चुप होकर बच्चे के भविष्य को बर्बाद कर देता है। 

यह भारत के समाज को आइना दिखाने वाला एक कटु सत्य है। भारत की अगली पीढ़ी कैसे होगी यह आज का भारत तय करेगा। वह कल कालेधन और भ्रष्टाचार से मुक्त भारत का भारतीय बनेगा यह जिम्मेदारी सिर्फ मोदी जी अकेले की नही है, यह पुरे भारत की है। आज जिस तरह नोटबंदी को असफल कर के कालेधन को सफेद करने के प्रयास में भारत का राजनैतिज्ञ व समाज का एक वर्ग लगा हुआ है वह भारत की भावी पीढ़ी का यौनशोषण है, यह लोग वह 6 % पादरी है जिन्होंने बाल यौन शोषण किया था। मोदी ‘द बोस्टन ग्लोब’ के प्रधान सम्पादक मार्टी बैरन हो सकते है लेकिन ‘स्पॉटलाइट’ टीम के माइकल रेजेंदेस, वाल्टर “रोबी” रॉबिन्सन, साचा फीफर, बेन ब्रेडली और मैट करोल हमको आपको ही बनना है।  भारत में स्थापित 70 साल के तन्त्र ने, कालेधन को प्रदर्शित और उपभोग करने की छूट व उसे सार्वजानिक समाजिक प्रतिष्ठा दिला कर, बाल यौन शोषण मामलो को दबाने में संलिप्त कार्डिनल बर्नार्ड लॉ की भूमिका निभाई है, जिसने आज की पीढ़ी में कितने ही जॉन जॉगहन ऐसे बाल यौन शोषण करने वाले पादरियों को पल्लवित होने दिया है और इसका हमे एहसास ही नही है।  

आज हमारे पास उस तन्त्र को तोड़ कर नया बनने का मौका हाथ आया है। आज हमारे पास मौका है की हम कार्डिनल बर्नार्ड लॉ और जॉन जॉगहन ऐसे पादरियों को समाप्त कर अपने तटस्थ रहने का प्रयाश्चित कर लें और अपने बच्चो को कालेधन और उसकी संस्कृति से आज़ाद होने का मौका दे।  

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