Home विषयअपराध मथुरा के सीवर का पानी 20 करोड़ रुपए प्रति वर्ष के भाव में इंडियन आयल तेलशोधक कारखाने को बेच दिया

मथुरा के सीवर का पानी 20 करोड़ रुपए प्रति वर्ष के भाव में इंडियन आयल तेलशोधक कारखाने को बेच दिया

by अमित सिंघल
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सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने एक समारोह में बताया कि मथुरा स्थित इंडियन आयल तेलशोधक (refinery) कारखाना अपने संयंत्र चलाने के लिए पानी खरीदता था। जब मोदी सरकार को पता चला, तो उन्होंने पूछा कि अगर कोई कंपनी मथुरा के सीवर (गंदे नाले) का प्रतिदिन निकलने वाला 8 करोड़ लीटर पानी साफ़ करके उन्हें दे, तो वे कितना पैसा दे सकते है। इंडियन आयल तेलशोधक ने कहा कि वे 20 करोड़ रुपए प्रति वर्ष देने को तैयार है। फिर सरकार ने इस कार्य को एक निजी कंपनी त्रिवेणी इंजीनियरिंग को सौंप दिया जिससे नाले के पानी से भी लाभ उठा लिया गया; नाला भी साफ़, तथा फैक्ट्री के कार्य में ना लगने से पेयजल की भी बचत हो गयी।
गडकरी ने आगे कहा कि इंफ्रास्ट्रक्चर विकास (एयरपोर्ट, बंदरगाह, राजमार्ग, जलमार्ग, रेल, सुरंग, पुल इत्यादि) का विकास तेजी से हो रहा है। अकेले 2 लाख करोड़ रुपये की सुरंग बन रही है।
उन्होंने बताया कि चीन में लॉजिस्टिक्स कॉस्ट (माल को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना) 8-10 प्रतिशत है; अमेरिका-यूरोप में 12-13 प्रतिशत है, जबकि भारत में 14-16 प्रतिशत है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि भारत में अभी भी इंफ्रास्ट्रक्चर का समुचित विकास नहीं हुआ है। उदाहरण के लिए, मुंबई से दिल्ली सड़क यात्रा में दो दिन लगते है जो एक वर्ष में घटकर 12 घंटे में पूरा हो जाएगा। इससे पेट्रोल-डीजल भी बचेगा और ट्रक की ट्रिप भी दोगुनी हो जायेगी। ट्रक भी 40 टन का होगा जिससे भाड़े में भारी कमी आएगी।
जहाँ एक वज़न का माल एक समान दूरी पर रोड से भेजने में 10 रुपये लगता है, रेल से 6 रुपये, वहीँ जलमार्ग से माल भेजने पर केवल एक रूपए लगता है। अतः जलमार्ग तथा मल्टी-मोडल ट्रांसपोर्ट (हवाई, सड़क, रेल, जल मार्ग) के प्रयोग से लॉजिस्टिक्स कॉस्ट कम होगी जिससे एक्सपोर्ट बढ़ेगा।
गडकरी जी ने उदाहरण दिया कि भारत (महाराष्ट्र एवं कर्णाटक) में बनने वाली अगरबत्ती की बांस की पतली डंडी चीन एवं विएत नाम से आती थी, जब कि भारत के पूर्वोत्तर में बांस का प्रचुर उत्पादन होता है।
वे त्रिपुरा के मुख्यमंत्री के “पीछे” पड़ गए कि “तुम और कोई धंधा मत करो, बस अगरबत्ती की डंडियां बनाओ”। उन डंडियों को एक साथ 4000 टन के पैक में जलमार्ग से वाराणसी भेजो और वहां से जबलपुर द्वारा आगे भेजो जिससे लॉजिस्टिक्स कॉस्ट में एकदम से कमी आ गयी। परिणाम यह हुआ कि पूरे पूर्वोत्तर भारत में अगरबत्ती की डंडी बनाने की बड़ी-बड़ी फैक्ट्री खुल गयी, स्थानीय लोगो को रोजगार मिला, और बांस की पतली डंडी का चीन-विएत नाम से आयात बंद हो गया।
गडकरी जी बतलाते है कि सरकार की खाली भूमि पर वे मल्टी-मोडल ट्रांसपोर्ट केंद्र एवं लॉजिस्टिक्स पार्क बनवा रहे है। अगर उस भूमि का उपयोग नहीं करेंगे तो उस पर अतिक्रमण हो जाता है और झुग्गी-झोपड़ी बन जाती है जिसे सरकार फिर नियमित करती है, क्योकि सरकार को चुनाव जीतना होता है। वे हंसकर कहते है कि अगर सरकार चुनाव नहीं जीतती तो उन्हें (गडकरी जी) भाषण देने के लिए नहीं बुलाया जाता।
जब सरकार मल्टी-मोडल ट्रांसपोर्ट केंद्र एवं लॉजिस्टिक्स पार्क बनवाती है तो उसमे निवेश होता है, पास के क्षेत्रो में उद्योग (इंडस्ट्रियल क्लस्टर) लगते है और लोगो को रोजगार मिलता है। साथ ही भूमि की कीमत भी बढ़ जाती है।

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