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सर्वोच्च कमांडर को सैल्यूट करना सीखो कामरेड

दयानंद पांडेय

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महामहिम द्रौपदी मुर्मू को ले कर वामपंथी बुद्धिजीवियों में ख़ामोशी है। अद्भुत सन्नाटा है। मरघट सा सन्नाटा ! न विरोध , न समर्थन। न कवि की कविता फूट रही है , न व्यंग्यकार का व्यंग्य। जैसे लकवा मार गया है। कांग्रेस के अजॉय कुमार और राजद के तेजस्वी यादव जैसे दुर्योधन और दुशासनों ने द्रौपदी का चीर हरण करने की नाकाम कोशिश की। अब उन्हें न निगलते बन रहा है , न उगलते।

आई ए एस अफ़सरों को बेकार ही प्रतिभावान माना जाता है। राजनीति में आ कर इन की प्रतिभा कुत्तों जैसी हो जाती है। मणिशंकर अय्यर , अजीत जोगी से लगायत यशवंत सिनहा तक ने यह बारंबार साबित किया है। करते रहेंगे।

नरेंद्र मोदी ने इन सभी को कुत्ता बना दिया है। वंचितों और शोषितों की बात करने वाले वामपंथियों को अब से सही , अपनी बीमारी का पता लगाना चाहिए। किसी अच्छी पैथालाजी से जांच करवानी चाहिए। ताकि अपनी बीमारी की शिनाख़्त कर इलाज कर सकें।

ताकि समाज के आख़िरी पायदान पर खड़े , कतार के आख़िर में खड़े व्यक्ति को सम्मान देना सीख सकें। अपनी हिप्पोक्रेसी और अहंकार को कुचल कर स्वस्थ मानसिकता बना सकें। अपनी हिंसा , कुतर्क और तानाशाही से छुट्टी पा सकें। देश के सर्वोच्च पद पर बैठी स्त्री को स्वीकार कर सकें। दबी , कुचली स्त्री जो अब सेना की सर्वोच्च कमांडर है , उस सर्वोच्च कमांडर को सैल्यूट करना सीखो कामरेड ! देश ने नया इतिहास रचा है। इस सचाई को स्वीकार करो !

वामपंथी दलों में तो अभी तक किसी दलित , आदिवासी या स्त्री को सर्वोच्च पद कभी मिल नहीं सका। एकाध अपवाद को छोड़ कर ब्राह्मण ही वामपंथी दलों के सर्वोच्च नेता रहे हैं। इस लिए आदिवासी स्त्री को स्वीकार करने में कठिनाई हो रही होगी। इस कठिनाई को दूर कर लो कामरेड !

नवनिर्वाचित महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी को कोटिश: बधाई !

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