तुलसी बाबा ने वह सब लिख दिया है जिसके चलते जीवन को सरल और सुगम बनाया जा सके! आज मित्रता दिवस पर मुझे तुलसी बाबा द्वारा लिखित कुछ पंक्तियाँ याद आ रही है। अब देखिए ना बाबा लिखते है कि-
जे न मित्र दुख होहिं दुखारी।तिन्हहि विलोकत पातक भारी।
निज दुख गिरि सम रज करि जाना।मित्रक दुख रज मेरू समाना।
मतलब जो मित्र के दुख से दुखी नहीं होते उन्हें देखने से भी भारी पाप लगता है।अपने पहाड़ समान दुख को धूल के बराबर और मित्र के साधारण धूल समान दुख को सुमेरू पर्वत के समान समझना चाहिए। एक जगह और बाबा लिखते है कि
आगे कह मृदु वचन बनाई। पाछे अनहित मन कुटिलाई।
जाकर चित अहिगत सम भाई।अस कुमित्र परिहरेहि भलाई।
मतलब जो सामने बना बना कर मीठा बोलता है और पीछे मन में बुराई रखता है तथा जिसका मन साॅप की चाल के जैसा टेढ़ा है ऐसे खराब मित्र को त्यागने में हीं भलाई है।
उपरोक्त पंक्तियाँ आने वाले भविष्य में भी लोगों के मार्ग को प्रशस्त करती रहेंगी! हाँ एक और याद आ रहा है, रुकिए उसको भी साझा करता हूँ :-
देत लेत मन संक न धरई।बल अनुमान सदा हित करई।
विपति काल कर सतगुन नेहा।श्रुति कह संत मित्र गुन एहा।
कहने का मतलब है कि अगर मित्र लेन देन करने में शंका न करे।अपनी शक्ति अनुसार सदा मित्र की भलाई करे। ऐसा मित्र वेदों के हिसाब से संकट के समय सौ गुना स्नेह और प्रेम करता है।अच्छे मित्र का यही गुण है। इसी के साथ आप सभी को मित्रता दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ। हमारे भारतवर्ष में अनेको गौरवपूर्ण मित्रता के उदहारण है।
जितना मुश्किल मित्र बनाना है उतना कही ज्यादा किसी का मित्र बनना है। किसी के मन में इस भाव का भर देना कि उसके हर दुःख में आप उसके साथ चट्टान की भाँती खड़े रहेंगे। इस संबल का नाम ही मित्रता है।