आज दो अलग अलग विचारधारा के महत्वपूर्ण लोग इस दुनिया को छोड़ कर गये। एक थे छत्रपति शिवाजी महाराज के इतिहास को लोक तक पहुंचाने में अपना जीवन खपाने वाले,पद्मविभूषण और महाराष्ट्रभूषण पुरस्कार से सम्मानित माता सरस्वती के वरद पुत्र अमर इतिहासकार बाबा साहेब पुरंदरे (बलवंत मोरेश्वर पुरंदरे) जिनको मैं अंतिम प्रणाम निवेदित करता हूँ। और, दूसरी थी हिन्दी की प्रसिद्ध वामपंथी साहित्यकार मनु भंडारी जिन्होंने जीवन भर भारत के समाजिक समरसता को अपने साहित्यिक षड्यंत्रो से तार तार करने का प्रयास किया।
सोशल मिडिया पर मुझे कुछ ऐसे कंधे दिखाई दे रहें हैं जो गाहे बगाहे फायदा लेने के समय राष्ट्रवादी होने का ढोंग रचते हैं और उसके बाद नौकरी बजाते पाये जाते हैं अपने वामपंथी यार की! यह एकलौता वाक्या नही है। मुझे मनु भंडारी ने कोई लगाव नही हैं क्योंकि वह हिन्दी साहित्यकार नही मार्क्सवादी एजेन्डे की साहित्यकार थी। उसको हिन्दी साहित्यकार कहना हिन्दी के साथ छल और षड्यंत्र करना होगा।
अब आज नही तो कल हमे यह तय तो करना ही होगा कि हमारी लाइन क्या है! या तो हम धर्म के साथ हो सकते हैं या अधर्म के साथ हो सकते हैं! बीच का कोई रास्ता नही है। हमे अगर अपने बच्चों को एक स्वस्थ्य इकोसिस्टम देना है तब कम से कम अपने हाथों अपने दुश्मनों की तारीफ बन्द करनी होगी! नही तो यह गद्दारी कही जाएगी। यह प्रलाप की मौत के बाद सब एक जैसे हो जाते हैं का भी सर्वनाश करना होगा! मौत के बाद भी दुष्ट चरित्र दुष्ट ही होता है। मौत के बाद भी किसी दुष्ट वामपंथी का महिमामंडन करना अपने लोगों के साथ छल करना होगा!
आदत डालना मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नही! वे हमें किसी भी रुप में स्वीकार्य नही है यह समझना होगा। दुष्टों का आत्मपरिवर्तन नही होता है।
मुझे याद है कि एक बार गीतायन के लेखक आनंद कुमार से चर्चा हो रही थी और उन्होंने संदर्भ दिया था कि भगवान गीता श्रीकृष्ण के 16वें अध्याय के 19 वें श्लोक में कहते हैं कि
तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान्।
क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु।।
अर्थात मैं उन द्वेष करनेवाले, क्रूर स्वभाव वाले और संसार में महान् नीच, अपवित्र मनुष्यों को मैं बार-बार आसुरी योनियों में गिराता ही रहता हूँ। इसका सीधा मतलब है कि मनु भंडारी जैसे लोग फिर से हमारे दुश्मन बन कर ही यहाँ आएंगे उनके प्रति किसी भी प्रकार की कोई सहानुभूति नही होनी चाहिए!
मैं ईश्वर से निवेदन करूगाँ कि वे बाबा साहेब पुरंदरे जैसे सपूत माँ भारती की गोद में भेजते रहें।