जब देवबंद के मशहूर आलिम और पकिस्तान के पूर्व जस्टिस मौलाना तक़ी उस्मानी के पिता मुफ़्ती शफ़ी उस्मानी ने अपनी किताब* में क़ुरआन और हदीस के हवाले(उद्धरण) से ये साबित किया कि दस्तकार/शिल्पी/पेशावर/महनतकश मुसलमान मलेछ(रज़िल/अर्ज़ाल) और असभ्य(जल्फ़/अजलाफ) हैं और इस्लाम में इनकी हैसियत उच्व वर्ग/विदेशी/अरबी नस्ल के मुस्लिमो के सेवक तक ही है। तो इस के विरोध में इस्लाम और दस्तकार मुस्लिमो की रक्षा के लिए एक पसमांदा मौलाना “फ़तेह मुहम्मद खुर्शीद” ने देवबंद पहुँच कर भूख हड़ताल शुरू कर दिया और देवबंद ही में दारुल उलूम देवबंद के खिलाफ एक मदरसा अरबिया इस्लामिया के स्थापन का बिगुल फूंक दिया।ये घटना1934 ई० की है।
आज भी बातिल(झूठ) का स्थापना करने वाले मुफ़्ती शफ़ी उस्मानी देवबन्दी को दुनिया एक हक़परस्त और नबी के वारिस के तौर पर याद रखे हुए है जबकि हक़(सत्य) के लिए अपना सब कुछ लूटा देने वाले एक पसमांदा मौलाना “फ़तह मुहम्मद खुर्शीद” को दुनिया क्या, जिस इस्लाम और दस्तकार मुस्लिमो के लिए उन्होंने क़ुर्बानी दिया उसी इस्लाम के मानने वालो और दस्तकारो ने उन्हें फरामोश(भुला) कर दिया। अफ़सोस हज़ार अफ़सोस
तुम सुकरात और ज़हर के प्याले होंगे
सच जो बोलोगे तो ईसा की सज़ा पाओगे
*निहायात उल अरिब फ़ी ग़ायातुन नसब किताब का नाम अरबी में है लेकिन मैटर उर्दू ने है।