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केन्या द्वारा 12 टन की सहायता और ‘द गॉडफादर’ का एन्जो

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12 tons of aid from Kenya and Enzo from 'The Godfather'

कुछ समय से सोशल मीडिया पर मेरी उपस्थिति बहुत कम हो गयी है इसी लिए जब केन्या की जनता द्वारा भारत को भेजे गए 12 टन अनाज को लेकर आरही प्रतिक्रिया पर बड़ा आश्चर्य हुआ। मैं पहले तो पूरे विषयवस्तु को ही नही समझ पाया क्योंकि विभीषका में किसी भी तरह की दी गयी सहायता पर कोई कटाक्ष भी किया जासकता है वह मेरी बुद्धिकता के परे की चीज़ थी। इसके बाद जब ट्विटर पर पहुंचा तो पूरा मामला समझ मे आया तो पुनः एक बार फिर, भारत के मॉनसिक बौद्धिक दिव्यांगों की कुबुद्धि व अविवेक पर रोष आया और उससे उर्जित घृणा की ऊष्मा ने मुझे पीड़ित कर दिया।

मुझे यह सोंच कर वाकई बड़ा दुख व पीड़ा हुई कि हम लोग कितने निकृष्ट होगये है कि एक वह बड़ा वर्ग जो खुद बिना संरक्षण, सहायता और प्रश्रय के अपने को कायाहीन समझता है, वह वर्ग, एक छोटे से देश केन्या के योगदान पर कटाक्ष कर रहा है! वे न सिर्फ केन्या की जनता का बल्कि भारत का भी अपमान कर रहे है। उन्हें 12 टन अनाज दिखा है लेकिन उस एक एक दाने के पीछे का भाव नही देखा। मेरे लिए केन्या की जनता द्वारा भेजा गया एक एक अन्न का दाना, एक एक सुवर्ण मुद्रा से कम नही है। इसीके साथ मुझे यह भी समझ आया कि प्रगतिशीलता में, प्रगतिशील वर्ग इतना आदम हो गया है कि उसे छोटी छोटी बातों या घटनाओं का, जीवन पर पड़ने वाले अमिट प्रभावों के समाहित हों जाने की अनुभूति का उसने संज्ञान लेना बंद कर दिया है। इस विषय पर अमेरिका में 9/11 की घटना हो जाने से व्यथित केन्या के मसाई कबीले द्वारा अमेरिकी जनता को 12 गाय दान देने की घटना का स्मरण कराए जाने से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूँ।

केन्या द्वारा 12 टन अनाज भेजे जाने से अनुग्रहित भाव से उपजी इस घटना का पुनःस्मरण यदि पहले से ही लिपिबद्ध नही किया गया होता तो शायद मैं स्वयं इस प्रकरण को अपनी भाषा व भाव से लिखता। लेकिन केन्या की जनता द्वारा, भारत की जनता की विभीषका में खड़े रहने की भावना ने मुझे, कुछ और का भी अनुस्मरण करा दिया है।

मुझे विश्वास है आप लोगो मे से ज्यादातर लोगों ने फ्रांसिस कॉपपोल निर्देशित ‘The Godfather’ अवश्य देखी होगी और उसमे से बहुतायत लोगो ने मारियो पूजो लिखित इसी नाम के उपन्यास ‘दा गाड़फादर ‘ को पढ़ा भी होगा। मुझे बस, इसी के एक मिनिट के चरित्र का स्मरण हो आया है। इस फ़िल्म में यह चरित्र एन्जो अगुएल्लो, ‘एन्जो द बेकर’ थोड़े समय के लिए दिखता है। लेकिन उपन्यास में यह चरित्र थोड़ा बड़ा है लेकिन फ़िल्म में उसे रक्खा ही इसी लिए गया है, क्योंकि वह फ़िल्म में मुख्य चरित्र डॉन वीटो कॉर्लेओने और माइकल कॉर्लेओने के चरित्र स्थापन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। वह चरित्र, न सिर्फ डॉन वीटो कॉर्लेओने के चरित्र को प्रसार देता है बल्कि उसके छोटे पुत्र माइकल कॉर्लेओने के चरित्र के बदलाव को भी स्थापित करता है।

‘द गॉडफादर’ की कहानी में एक नाटकीय मोड़ तब आता है जब डॉन वीटो कॉर्लेओने को उसके विरोधियों द्वारा गोली मार दी जाती है और वह अस्पताल में गंभीर स्थिति में भर्ती होता है। डॉन को गोली लग जाने के कारण कॉर्लेओने परिवार की कमान उसका बड़ा बेटा सोनी संभाल लेता है और दुश्मनों के आक्रमणों से बचने के लिए वह व उसके आदमी भूमिगत हो जाते है। डॉन पर गोली चलवाने वाले हीरोइन के तस्कर सोलोज़ो को न्यूयॉर्क के अन्य माफिया परिवार का समर्थन प्राप्त होने की आशंका से, डॉन की अस्पताल में सुरक्षा को लेकर कॉर्लेओने परिवार चिंतित है। ऐसे में डॉन का छोटा पुत्र माइकल, जो की पहले अमेरिकी मेरीन्स में कप्तान था और पारिवार के अवैध व्यवसाय से विमुख है, वह देर से सूचना मिलने के कारण, देर रात घर पहुंचता है। वह, अपने बड़े भाई सोनी से कहता है कि डॉन को अस्पताल में असुरक्षित नही रक्खा जासकता है इसलिये वह अस्पताल पिता को देखने जाएगा। सोनी उसे हतोउत्साहित करते हुए कहता है की वह चिंता न करे उसने वहां डॉन की सुरक्षा के लिए सशस्त्र प्राइवेट सुरक्षाकर्मी लगा रक्खे है और उसे इसकी भी आशंका है कि यदि माइकल बाहर निकलेगा तो पर डॉन के विरोधियों के निशाने पर आ सकता है। माइकल यह बात न मानते हुए कहता है कि सभी को यह मालूम है कि वह कॉर्लेओने परिवार के धंधे में संलिप्त नही है, इसलिये उसे कोई तर्जन नही है।

देर रात माइकल जब अस्पताल पहुंचता है तो पाता है कि उसके पिता डॉन वीटो नितांत अकेले है और नर्स उसे बताती है कि कुछ समय पहले पुलिस ने आकर सभी सुरक्षा कर्मियों को वहां से हटवा दिया है। माइकल समझ जाता है कि सोलोज़ो ने न्यूयॉर्क के पुलिस कप्तान को मिला लिया है और डॉन पर दूसरी बार हमला करने के लिए, डॉन को अकेला कर दिया गया है। माइकल, सोनी को फोन करके बताता है कि यहां कोई भी नही है, वह जल्दी आदमी भेजे क्योंकि उसे अंदेशा है कि डॉन के शत्रु पिता की हत्या का प्रयास करने वाले है। इसी के साथ वह नर्स के साथ मिल कर डॉन को दूसरे कमरे में स्थान्तरित कर देता है।

माइकल को अस्पताल के गलियारे के सन्नाटे में पदचाप सुनाई पड़ती है और संभावित हत्यारे के आगमन की आशंका में चौकन्ना हो जाता है।

उस व्यक्ति से माइकल पूछता है कि ‘तुम कौन हो?’ वह कहता है, ‘एन्जो, एन्जो द बेकर(बेकरिवाला)। तुम्हे मेरा स्मरण नही?’स्मरण करते माइकल कहता है ‘एन्जो?”हां, एन्जो’इस पर माइकल कहता है, ‘एन्जो, तुम यहां से चले जाओ क्योंकि यहां बखेड़ा होने वाला है।’

इस पर एन्जो प्रतिउत्तर देता है, ‘यदि यहां बखेड़ा होने वाला है तो मैं तुम्हारे पिता के लिए, तुम्हारी सहायता करने के लिए यहीं पर ही तुम्हारे साथ रहूंगा।’

माइकल उसकी बात मान लेता है और दोनो अस्पताल के मुख्यद्वार पर पहरा देने के लिए खड़े हो जाते है। उसी वक्त एक कार आती है जो अस्पताल के मुख्यद्वार पर आकर धीमी होती है लेकिन इन दोनों को कोट की जेब मे हाथ डाले खड़ा देख कर, गाड़ी तेजी से आगे निकल जाती है। उस गाड़ी में डॉन की हत्या करने आये सोलोज़ो व उसके आदमी थे, जो वहां पर माइकल और एन्जो की अप्रत्याशित उपस्थिति को देख असहज हो, वहां से भाग जाते है।

हत्या करने आये सोलोज़ो और उसके आदमियों के जाने के बाद, एन्जो अपने कोट की जेब से सिगरेट निकाल कर अपने मुंह मे लगाता है। वह जब लाइटर से सिगरेट को जलाना चाहता है तो उसके हाथ डर से इतना कांप रहे होते है कि वह लाइटर भी नही जला पाता है। ऐसे में माइकल उस लाइटर को जला कर उसकी सिगरेट जलाता है।

अब यदि एन्जो के चरित्र को देखे तो यह साफ पता चलता है कि वह अमेरिकी समाज का, अपराध जगत व उसके अवैध व्यवसाय और लड़ाई झगड़े से दूर रहने वाला व्यक्ति है। लेकिन इसके बाद भी माफिया गैंग वॉर के खून खराबे से दूर रहने वाला यह निहत्था एन्जो, अपनी स्वेच्छा से, डॉन वीटो कॉर्लेओने के जीवन की रक्षा के लिए माइकल के साथ अस्पताल में पहरेदारी देता है।

अब प्रश्न आता है कि एन्जो ने अपने प्राणों को दांव पर क्यों लगाया और माइकल, जो सर्वशक्तिशाली डॉन कॉर्लेओने का बेटा है और कॉर्लेओने परिवार के सशस्त्र आदमी उसके पास पहुंचने वाले थे, उसके लिए एन्जो की वहां उपस्थिति क्यों इतनी महत्वपूर्ण थी?

वस्तुतः एन्जो का वहां, माइकल के मना करने के बाद भी खड़ा रहना, डॉन कॉर्लेओने द्वारा उस पर किये गए उपकार का सम्मान करना था। एन्जो, इटली का एक सिसिलियन सैनिक था जिसे द्वितीय विश्वयुद्ध में इटली में युद्धबंदी बनाया गया था और फिर उसे अमेरिका के युद्धप्रयासों में श्रमिक के रूप में योगदान देने के लिए अमेरिका भेजा गया था। एन्जो को नाज़ोरिने, जिसकी एक बेकरी की दुकान थी, अपने यहां काम पर रख लेता है। द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जब सारे युद्धबंदी वापस निर्वासित किये जारहे थे तब, नाज़ोरिने को पता चलता है कि उसकी पुत्री कैथरीन, एन्जो से प्रेम करती है और वह उससे गर्भवती भी है। ऐसे में नाज़ोरिने, अपने युवावस्था के मित्र डॉन वीटो कॉर्लेओने से विनती करता है कि एन्जो को वो अपने प्रभाव से अमेरिका में ही किसी तरह रुकवा दे। डॉन वीटो, एन्जो को रुकवा लेता है और अब एन्जो, नाज़ोरिने की बेकरी का मालिक है। एन्जो, डॉन वीटो द्वारा किये गए उपकार से अनुग्रहित, डॉन के संकटकाल में खड़ा हो, अपने भावों को प्रदर्शित कर रहा था।

माइकल के लिए एन्जो की उपस्थिति इसलिये महत्वपूर्ण थी क्योंकि वह उस समय जब अपने पिता के प्राणों की रक्षा के लिए संघर्षरत था, तब वह नितांत अकेला था। उस समय उसके पिता डॉन वीटो के प्राणों का बीच सिर्फ वह और एन्जो ही खड़े थे। डॉन वीटो की हत्या का प्रयास करने आये सोलोज़ो और उसके आदमी का मनोबल, दो व्यक्तियों को पहरेदारी करता देख टूट गया था और उन्हें भागना पड़ा था।

जैसे कुछ भारतीयों ने केन्या द्वारा 12 टन अनाज भेजे जाने पर उसका उपहास उड़ाया है, वैसे माइकल और कॉर्लेओने परिवार ने एन्जो के छोटे से प्रयास का कोई उपहास नही उड़ाया बल्कि उसके सद्प्रयास को अभिस्वीकार किया।

यह दुःखद है कि भारतीय समाज पिछले कुछ दशकों में नैतिक रूप से इतना रुग्ण हो चुका है की वह किसी के द्वारा किये गए सहयोग को संख्या व द्रव्यों में तौलने लगा है। शायद इसी लिए, ऐसे लोगो को विदेश से मिली सहायता पर पोषित होने पर उन्हें कोई हीनता की अनुभूति नही होती है। इसलिए विदेश से आये निर्देशो पर अपने ही देश भारत का उपहास करने व उसे नीचा दिखाने में उन्हें कोई लज्जा नही आती और न ही उसके लिए उन्हें कोई अपराधबोध होता है।

पुष्कर अवस्थी

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