जातिवादी संविधान

by Jalaj Kumar Mishra
526 views
 ज्ञात सभ्यताओं में सबसे पुरानी सत्य सनातन के रक्षक और उपासक के पीढ़ी का वर्तमान हूँ। असंख्य अत्याचार और दमन के बाद भी अपना धर्म नही छोड़ने वाली असंख्य पीढ़ियों का प्रतिनिधित्वकर्ता हूँ।
मुझे इसको कहने को कोई शर्म नही,‌कोई ग्लानी नही है कि मैं उस जाति का प्रतिनिधित्वकर्ता हूँ जिसने धर्म के पथ पर चलते हुए कभी दूसरों को कोई कष्ट नही दिया। सनातन सृष्टिकर्ता ने जो अधिकार हमारी जाति को दिए उसको हमारी जाति ने निष्ठा पुर्वक निर्वहन किया और आज भी करती आ रही हैं।
आज मैं अपनी जाति के गौरव और श्लाका पुरुषों के गौरव गाथा का गुणगान नही करने वाला हूँ। हमने सिर्फ त्याग सिखा हैं। हमारे पुर्वजों ने कभी अपना महिमामंडन नही किया। जो भी अनुसंधान भारत या विश्व में दिख रहे है आज उसके पिछे कही न कही हमारे ही परिवार के किसी सदस्यों का योगदान और ऊर्जा है ऐसा हमारा मानना है। हमलोगों ने बहुत कुछ देकर उतना ही लेना सिखा है जिससे अपना जीवन चल जाये!
हम जब कहते है कि धर्म की जय हो तो हमारे साथ ईश्वर होते हैं। विश्व के कल्याण की भावना और निष्ठा हमारे रगों में है। हम‌ उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते है जिसने कभी किसी का बुरा सोचा ही नही!
पहले हमको अपनी जाति नही बोलनी पड़ती थी लेकिन भारत के लोकतांत्रिक जातिवादी संविधान ने हमसे यह कहलवाना शुरु किया और हमने कहना शुरु किया। हमारा इतिहास ज्ञात है और इसपर हम सभी को गर्व हैं।
सर्वेजना सुखिनो भवन्तु हो चाहे वसुधैव कुटुम्बकम हो यह हमारा विश्वास है। हमने अपने धर्म की रक्षा के लिए बलिदान होना सिखा है। हमने हर युग में सत्य को‌ धारण किया है। हमारी विचारधारा कभी संकुचित नही रही, हमने विधर्मीयों को‌ छोड़ सबको गले लगाया है। हमने ज्ञान को अपना पुरुषार्थ बनाया और उसको लोक कल्याण में लगाया है। बात भक्ति की हो या कौशल विकास की, चाहे बात हो यज्ञ कर्म के निर्वहन की हम‌लोगों ने हरदम अपनी क्षमता से अधिक का अपना योगदान दिया है।
लाख कष्टदायक पल हो फिर भी हमने कभी धर्मपथ नही छोड़ा क्योंकि हम‌ जानते है “धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षित:” इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस नश्वर संसार में अगर कुछ टिकाऊ हैं तो वह धर्म हैं। गिरिधारी जब यह कहते कि धर्म को मारने वाले को धर्म खुद नाश कर देता हैं। इसके साथ वह कहते है कि अगर आप धर्म की रक्षा के लिए खड़े होते हैं तब धर्म आपकी रक्षा करता हैं।धर्म हर कालखंड में अजेय हैं।उससे परास्त करने का दुस्साहस बहुतों ने किया और माटी में मिल गये। यही कारण है कि सदियों से हमे झुकाने के अनेक प्रयत्न हुए लेकिन हमारे पुर्वजों ने झुकना स्वीकार नही किया और अपने धर्म को बचाये रखा ! आप हमे रुढ़िवादी कह सकते है! आप हमे अवैज्ञानिक कह सकते हैं क्योंकि आपने स्वाध्याय छोड़ सुनना जो शुरु कर दिया है। लेकिन हम रुढ़िवादी बन कर खुश हैं। हमे रक्तशुद्धता पर यकीं है। हमे हमारे परशुराम पर यकीं है,प्रभु श्रीराम पर यकीन है, केशव पर यकीन है।
हम यह मानते है कि स्वामी विवेकानन्द ने जो कहा था कि “हिन्दुओ सबसे बड़ा पाप है खुद को कमजोर समझना, तुम कमजोर नही सनातन की महान परम्परा के अंग हो।” यह कथन एकदम‌ सटीक और सत्य है।
ॐ सह नाववतु ।
सह नौ भुनक्तु ।
सहवीर्यं करवावहै ।
तेजस्वि नावधीतमस्तु ।
मा विद्विषावहै ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।

Related Articles

Leave a Comment