पुण्यपथ के समर्पण में सर्वेश तिवारी ‘श्रीमुख’ लिखते हैं कि यह किताब उन सभी पाकिस्तानी हिन्दुओं को समर्पित है, जो उन्नीस सौ सैंतालिस की आजादी में गुलाम हो गये। पर याद रहे सभ्यताओं की लड़ाईयाँ दिन,महीनों, वर्षों में नही सदियों में पूरी होती है। आज नही तो कल, कल नही तो परसो…सिंधु के जल में भी सूर्य उदय होंगे।
उपन्यास की कहानी ऐसी है कि हँसते हुए आप कैसे आँखों मे आँसू ले बैठते हैं, पता ही नही चलता हैं। यह उपन्यास अपने कालखंड से न्याय करता है। वर्तमान के षड्यंत्रों के चक्रव्यूह को भेदता है।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख उन चंद लेखकों में से एक हैं जिन्होंने कभी राष्ट्रवाद की डोर नहीं छोड़ी। उनका पहला उपन्यास “परत” लव जिहाद की परतों को उधेड़ता उस विषय पर लिखा गया हिन्दी का इकलौता उपन्यास है, जिसे पाठकों ने खूब सराहा है और यह किताब आज भी बेस्ट सेलर है। इस उपन्यास के सैकड़ों वन लाइनर्स रोज ही सोशल मीडिया में कोट होते रहते हैं।
पुण्यपथ उनका दूसरा उपन्यास है, जो पाकिस्तानी हिन्दुओं की पीड़ा को केंद्र में रख कर लिखा गया है। पाकिस्तानी अल्पसंख्यको के पलायन के कारणों की पड़ताल करते सर्वेश भारत में रह रहे पाकिस्तानी हिन्दुओं की दुर्दशा का वर्णन करते हैं और भारत सरकार के नागरिकता संशोधन बिल की आवश्यकता का समर्थन करते हैं। साथ ही साथ वे CAA के विरुद्ध आंदोलन कर रही शक्तियों के षड्यंत्र को भी उजागर करते हैं।