Home हमारे लेखकजलज कुमार मिश्रा सावन की एक साँझ और गाँव

सावन की एक साँझ और गाँव

by Jalaj Kumar Mishra
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सावन अब समाप्ति के कगार पर खड़ा है। सुर्य का अस्त की तरफ पाव बढ़ चले थे, लालिमा लिए आसमान की छटा गाँव के श्रृंगार को मादकता दे रही है। क्षितिज पर एक ओर चाँद और एक ओर सूरज दोनों का अस्तित्व एक साथ दिख रहा है। ।पक्षियों का झुण्ड अपने अपने आशियाँने के तरफ उड़ चला है। इनका कोलाहल अपने आप मे संगीत के तरह ही होता है । जिसके द्वारा प्राप्त मस्ती के सागर मे आप सकूँ के गोते लगा सकते है । अपनी आँखे बन्द कर के इनके करलव को महसूस करने पर गजब कि आनंद की अनुभूती होती है। गाँव के पास में एक सरकारी स्कूल है जिसके मैदान मे बाजार लगा हुआ है जिसमें हरी ताजी सब्जियों का अम्बार है। यह बजार सप्ताह मे दो दिन बुधवार और रविवार को लगता है । गाँव मे हर घर मे फ्रीज या रेफ्रीजरेटर नही होता क्योंकि वहाँ ताजी सब्जियाँ असानी से उपलब्ध है। पहले बाजार के बगल मे माल्टा के नाम पर स्प्रिट वाली मदिरा बेचने का काम होता था। अब वह बन्द हो चुका है। बाजार से कुछ दुर पर कुछ लोग ताड़ (नीरा) का जुस अपने मिट्टी के बर्तनों मे लेकर बैठै है ।उनके पास भी अपने ग्राहक है जो अपनी दिन भर की थकान इस को ग्रहण कर मिटाना चाहते है। बिजली का पोल यह बताने के लिए काफी है कि बिजली का गाँव मे पदार्पण हो चुका है।दिन अब लद चुका है साँझ की दस्तक हो चुकी है ।बजार पार कर के जैसे ही मै आगे बढ़ा तो देखा की गृहणियाँ अपने अपने आंगन मे तुलसी का गीत गाते हुए साँझ के नाम पर लक्ष्मी को समर्पित करते हुए दीप प्रज्जवलन कर रही है । तुलसी कि गीतों की मधुर ध्वनियां जब श्रवणपटल पर पड़ती है यकीन किजिए रोम रोम पुलकित हो उठता है । शहरों मे सूर्योदय और सूर्यास्त देखना भी किस्मत वालों को नसीब होता है ।

अब सूर्यास्त हो चुका था जुगनूओं की टीमटीमाहट प्रकृति के सिद्धहस्त कलात्मकता का परिचय दे रहे हैं।घरों से लालटेन, लैम्प और ढिबरी गायब हो गई हैं और उनके जगह पर इनवर्टर और अन्य बैटरी द्वारा संचालित उपकरण आ चुके थे।बच्चों का खेल कुद जारी है जिस दौर मे टीवी पर कार्टून को ही बच्चों का मनोरंजन मान लिया गया हो अगर उस दौर मे अगर बुढ़ी कबड्डी, कबड्डी, बासाटिका, दोल्हापाती,लुकाछिपी,गोली,पीटो अगर कही दिख जाए तो लगता है गाँव अभी जिन्दा है। गाँव का राष्ट्रीय खेल ताश होता है जिसमें प्रमुख रुप से 28,29 ,दहलजीत और काॅल ब्रेक खेला जाता है ।अब ताश का दल उठ चुका है, बच्चे माटी से अपने संबंधों को प्रगाढ़ किए हुए आ रहे हैं। लोटा लेकर खेतों मे जाने का क्रम अब समाप्ति की ओर बढ़ रहा है लेकिन फिर भी कुछ लोग आदत से मजबूर स्वच्छ भारत अभियान की ऐसी तैसी करते दिखाई दे रहे हैं।

गाँव की महिलाओं की कलाइयों पर हरे रंग की चूड़ियाँ और हर घर के आंगन में महावीर हनुमान का ध्वज सनातन संस्कृति के अमरत्व की गवाही दे रही हैं।बजार से लौटते डाकबाबू से रमेश पुछते हुए दिखा कि हमारी राखी वाली डाक दिल्ली से अभी आयी है कि नही! सुरेश पाण्डेय के दरवाजे नगाड़े और तासे की थाप पर लाठी भाजने का हर शाम कार्यक्रम रखा जाता है जो सावन से शुरु होकर‌ जन्माष्टमी के मेले तक चलता है।कुछ नवयुवक हाथों में लाठी लिए एकत्रित हो रहे हैं। गाँव में शहरों पर व्यंग मारना आम बात है। रामचन्द्र प्रसाद जो अब अस्सी के दहलीज पर है माधव से पुछते हैं कि क्या करते हो बेटा आजकल शहर में तुम !थोड़ी संकोच लिए‌ माधव कहते हैं कुछ खास नही काका दिन भर सपने तोड़ता हूँ और रात में फिर बुनता हूँ। सबकुछ समेट कर गाँव क्यों नही आ जाते हो! इतना असान कहाँ है काका कहते हुए माधव आगे बढ़ जाता है।

घर के पास वाली पुलिया, बारिस की पानी से लबालब है और मेढ़क के साथ साथ झींगूरों की आवाज भी कानों तक पहुँचने लगी है।कुछ घरों से लजीज व्यंजनों की खुशबू मन और मस्तिष्क में पहुँच रही है। यहाँ अब घरों सें धुआँ नही निकलता सब‌ भोजन रसोई गैस पर बन रही है। अब मै अपने घर तक पहुँच गया हूँ। पास में दादी अपने पोती को लोरी सुना रही है साथ मे कुछ और बच्चों का झुण्ड उन्हें कहानी सुनाने के लिए उकसा रहा है। बस बस बस अब गोलु और सोनू आपस मे लड़ना शुरु कर दिए …. बदलते दौर के गाँव में अभी तक ना बचपन बदला हैं और ना ही सावन के रंग..!

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