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आपका दीर्घकालिक लक्ष्य क्या है?

by अमित सिंघल
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आपका दीर्घकालिक लक्ष्य क्या है? और उस लक्ष्य को प्राप्त करने की रणनीति क्या है?

 

इस सप्ताह दो परस्पर विरोधी बाते सुनाई दी।
प्रथम, समाचार पढ़ा कि विपक्ष के 13 नेताओ – जिसमे तीन मुख्यमंत्री ममता, स्टालिन, सोरेन; साथ ही सोनिया, पवार भी सम्मिलित है – ने एक वक्तव्य में प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी पर प्रश्न उठाते हुए कहा कि जिस तरह समाज का ध्रुवीकरण करने के लिए सत्ता से जुड़े लोगों की ओर से भोजन, पोशाक, त्योहार और भाषा आदि से संबंधित मुद्दों को उछाला जा रहा है, वह समाज के लिए ठीक नहीं है। इस संदर्भ में सोनिया का एक लेख भी इंडियन एक्सप्रेस में छाप चुका है।
दूसरी ओर प्रधानमंत्री मोदी के समर्थक भी आलोचना कर रहे है कि केंद्र ने बंगाल में “हम” मरते रहे; लोग हिन्दू त्योहारों पर पत्थर फेंकते रहे; और आपका पूरा नेतृत्व हमें लावारिस छोड़ कर चुप रहा। हम अपनी जान की कीमत पर हमको वोट नहीं देंगे।
अब दोनों पक्ष तो सही नहीं हो सकते।
ध्यान देने की बात यह है कि इन विपक्षी नेताओ ने पत्थरबाजों की आलोचना नहीं की; बंगाल में चुनावी हिंसा की आलोचना नहीं की; टुकड़े-टुकड़े गैंग की आलोचना नहीं की।
विपक्ष के समर्थको ने बंगाल में अपने ही 10-12 लोगो को जिन्दा जला दिए जाने के बाद भी तृणमूल को वोट दिया। कभी भी अपने नेतृत्व से प्रश्न नहीं पूछा। कभी भी विकास, रोजगार या सुरक्षा की मांग नहीं की। यही स्थिति यूपी की थी। पता होते हुए भी कि अखिलेश सरकार में अराजकता एवं भ्रष्टाचार व्याप्त था, कुछ समुदायों का लगभग सौ प्रतिशत वोट सपा को गया।
हम इस प्रश्न पर विचार करना ही नहीं चाहते: आप पार्टी को दिल्ली में 90% सीटों पर एवं पंजाब में लगभग 80% सीटों पर जीत किसके वोट से मिली? ममता को 48% वोट किसने दिया? कांग्रेस को राजस्थान में कौन लाया? महाराष्ट्र में कांग्रेस एवं पवार पार्टी को सौ सीट भाजपा-शिव सेना गठबंधन के बाद भी कैसे मिल गयी? यूपी मे अखिलेश को एक समुदाय का 90 प्रतिशत वोट, यादव समाज का 80% एवं सरकारी कर्मियों का 50% से अधिक वोट कैसे मिला?
फिर आप यह भी मानते है कि फलाना जिस जगह पर दस प्रतिशत के नीचे है, तब तक अन्य धर्मो का सम्मान करता है। लेकिन जहाँ उसकी संख्या बल अधिक हुई, वही पर वह संगठित होकर हिंसा फैलाना शुरू कर देता है।
इसके विपरीत मोदी समर्थक है जो कभी किसी की खैर मनाने के लिए; किसी का घमंड तोड़ने के लिए; कुछ यूनिट बिजली फ्री की पाने के लिए; यहाँ तक की मोदी की अकल ठिकाने लगाने के लिए उन लोगो को वोट दे आते है जिनसे उनका वैचारिक मतभेद है; जिनके बारे में पता है कि वे भारतीय संस्कृति एवं धर्म के विरोधियों का तुष्टिकरण करेंगे; उन्हें प्रोत्साहन देंगे।
यही नहीं, जब अन्य दलों के समर्थको को अपनी ओर खींचना है तब आप अपने शब्दों से वर्तमान समर्थको को भड़का रहे है। होना यह चाहिए कि आप अपने शब्दों का प्रयोग भाजपा को अपने दम पर किसी भी चुनाव में कम से कम 48 प्रतिशत वोट दिलवाने के लिए करे।
आपको स्वयं संगठित होना है एवं अन्य लोगो को भी संगठित करना है। लेकिन आप सोशल मीडिया का प्रयोग समर्थको को दूर भगाने के लिए कर रहे है।
अन्य लोगो के पास पचासो देश है; आप के पास केवल एक।
अन्य लोगो के पास अखिलेश, केजरीवाल, सोनिया, पवार, स्टालिन, सोरेन, ओवैसी, लालू पुत्र है; जिसे चाहे वोट दे क्योकि उन्हें पता है कि यह सभी आपकी संस्कृति एवं धर्म का मजाक उड़ाएंगे; प्रभु श्रीराम को काल्पनिक बोल देंगे। लेकिन आप के पास ले-देकर एक मोदी एवं उनकी टीम है; और आप अपने नेतृत्व को ही कमजोर करने में जुटे है।
आप आलोचना कीजिए; लेकिन उनकी जो हिंसा फैला रहे है; जो सनातनी संस्कृति पर पत्थर फेकने वालो पर चुप्पी साध जाते है।
आपको विपक्षी नेताओ पर दबाव बनाना है कि वे आपके मुद्दे का समर्थन, आपकी भावनाओ का सम्मान करने को विवश हो जाए।
अगर मोदी समर्थको की सोशल मीडिया पोस्ट देखे तो लगता है कि उन्होंने विपक्ष के इन 13 नेताओ के एकतरफा वक्तव्य का संज्ञान ही नहीं लिया। एक तरह से उनके लिए मैदान खाली छोड़ दिया।
मुझे आपका वोट नहीं; आपके शब्दों को देखना है। क्योकि आपके शब्द समर्थको को भड़का सकते है; जबकि आपको अपने शब्दों से अन्य लोगो को मोदी समर्थन में खींचना है।

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