महाभारत काल के कुछ बाद ही मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि पर श्री कृष्णजी के पड़पोते बज्रनाभ ने विशाल मंदिर बनवाया था। ये वो स्थल है जहां कान्हा का जन्म हुआ था – कारागार में । कई शताब्दियों तक ये मंदिर स्थापित रहा – 400 AD में महाराज विक्रमादित्य ने इस मंदिर का जीर्णोउद्धार करवाया।
चन्द्रगुप्त काल में भी इस मंदिर की शोभा और परंपरा बनी रही और मेंटेनेंस होती रही। इस अद्भुत मंदिर के दर्शन हमारे पुरखो ने किये – उनका जीवन धन्य हुआ। १०१७ में महमूद गज़नी ने मथुरा आक्रमण में सबसे पहले ये मंदिर लूटा और विध्वंस किया – ब्रज इतिहास सीरीज में उसका वर्णन दिया है। महमूद / उसके दरबारियों ने इस मंदिर का वर्णन भी अपनी किताबो में भी किया है। ११५० में इस मंदिर को पुनः बनवाया जज्जा जी नामक एक नागरिक ने जब मथुरा में राजा विजयपालदेव का शासन था। इस वाले मंदिर में चैतन्य महाप्रभु , वल्लभाचार्य जैसे संत आये थे। १६वि शताब्दी में ये मंदिर सिकंदर लोदी ने फिर विध्वंस करवाया और लूटा।
अगला मंदिर यहाँ बुंदेला राजा बीर सिंह देव जी ने करवाया १६१८ में जब जहांगीर मुग़ल बादशाह था। गौर तलब है – अकबर के राज्य के समय इस मंदिर को पुनः निर्माण की अनुमति नहीं मिली थी। जहांगीर ने केवल फरमान जारी किया कि मंदिर बुंदेला राजा बनवा सकते है। बुंदेला राजा ने जहांगीर का साथ दिया था जब उसने अकबर के विरुद्ध विद्रोह किया था और अबुल फज़ल को खुदा के पास पहुंचाया। इस बात से खुश हो कर जहांगीर ने राजा जी को परमिशन दी मंदिर बनाने की। तेंतीस लाख से बना ये मंदिर भी एक अपने आप में अद्भुत मंदिर था जिसकी पुष्टि तावेर्निएर , मनूची और बेर्नियर ने भी की है – बाकायदा इस मंदिर की डिटेल लिख कर। इन तीनो ने ये मंदिर तब देखा था जब औरंगजेब ने इसका विध्वंस नहीं करवाया था १६६९ से पहले ।
औरंगजेब ने इस मंदिर का विध्वंस करवाया – स्वर्ण चांदी और रत्न लूट कर ले गया और विग्रह , मंदिर की सब मुर्तिया आगरा की बेगम साहिबा मस्जिद उर्फ़ जहाँआरा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबा दी। मंदिर के स्थान पर शाही ईदगाह , मस्जिद बनवायी और मथुरा का नाम भी बदला था। ईस्ट इंडिया कंपनी के कब्ज़े में आने से पहले ये जगह मराठा साम्राज्य के दौरान पुनःस्थापित हो सकती थी लेकिन दैवयोग नहीं बना। खैर ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस जगह की नीलामी करवाई जिसे काशी के राजा पटनीमल ने कंपनी से तेरह एकड़ ये जगह खरीदी। अनेको कोर्ट कचहरी के केस के बाद ये मौजूदा मंदिर बना – आज़ादी के बाद। ये है एक संक्षेप इतिहास मंदिर का।
इस सीरीज में ये कवर करूँगा – प्रूफ / साक्ष्य के साथ :
– जहांगीर काल में ये मंदिर बुंदेला राजा ने बनवाया।
– तावेर्निएर , मनूची और बेर्नियर के विवरण
– औरंगजेब ने ये मंदिर १६६९ में तोडा । विग्रह तोड़े और मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दफनाए गए।
– मथुरा के फौजदार अब्द अल नबी खान और जामा मस्जिद / जाट विद्रोह
बाकी पहले और बाद का इतिहास कवर नहीं करूँगा क्यूंकि वो सब पब्लिक डोमेन में पहले से है।
अंत में – क्या आपको ज्ञात है कृष्ण जन्मभूमि विवाद पर 1786 में एक समिति बनी थी मथुरा के अग्रिम नागरिको द्वारा। १५ सितम्बर १९८६ में टाइम्स ऑफ़ इंडिया में एक लेख छापा गया था फ्रंट पेज पर। लेकिन इस खबर के प्रतिउत्तर में दिल्ली के12 प्रोफेसर ने एक लम्बा खत और ऑब्जेक्शन जताया था इस मूवमेंट के विरुद्ध – जो इसी अख़बार में छपा २ अक्टूबर 1796 को । इन बारह प्रोफेसर के नाम इस प्रकार है :
रोमिला थापर
-मुज़फ्फर आलम
– बिपिन चंद्र
-चम्पक लक्ष्मी
-S भट्टाचार्य
– हरबंस मुखिया
– सुविरा जायसवाल
– S रत्नाकर
– MK पलत
-सतीश सबरवाल
-S गोपाल
-मृदुला मुख़र्जी
आगे भी जारी रहेगा ………….