Home आर ऐ -ऍम यादव ( राज्याध्यक्ष) गंभीर मुद्दों की चर्चा
गंभीर मुद्दों की चर्चा भी अगर किसी मज़ाक या चुटकुले के साथ की जाए तो अधिक याद रहती है ऐसा मेरा अनुभव रहा है, तो आज एक गंभीर मुद्दे को रख रहा हूँ। इसलिए शुरुआत एक पुराने चुटकुले से करते हैं।
एक सिनेमा का डोरकीपर, न रहकर एक व्यक्ति को टोकता है। कहता है, भाई पिछले पंद्रह दिन में तूने कम से कम तीस बार ये फिल्म देखी है, और ये भी देख रहा हूँ कि इंटरवल के आधे घंटे बाद तू निकल लेता है। बात क्या है बता तो सही ।
दर्शक जरा सा झेंपता है। बताता है कि इंटरवल के सत्ताईस मिनट बाद एक सीन है जहां हीरोइन खुले में नहाने बैठती है। अब वो अपनी साड़ी हटाने को है तो रेलगाड़ी पास होती है। गाड़ी निकल जाती है तब वो कपड़े पहने हुए है।
हंसी दबाकर डोरकीपर पूछता है, तो भाई, इसमें रोज आकर देखने की क्या बात है ?
दर्शक बताता है कि यार, इंडियन रेलवे है, मुझे पूरा विश्वास है कि गाड़ी एक न एक दिन तो लेट होगी ही।
अब गंभीर मुद्दे की ओर। क्या हम इस देश के हिन्दू उसे दर्शक की तरह नहीं बरत रहे ?
शोभायात्राओं पर हर साल पथराव, उससे भी अधिक गंभीर हमले जिसके बाद हम ही अपने एरिया छोड़कर भागते हैं। रह भी लेते हैं तो भागने की फिराक में। अगले के जुलूस आए तो खुले आम शस्त्र लहराते, प्रक्षोभक नारे लगाते हुए, और जुलूस एरिया से पार होने तक हर कोई दुबककर नज़रे छुपाकर रहता है कि कहीं उसके नजर में दिखता क्रोध ही सब के विनाश का निमित्त न बन जाए।
क्या सोचते हैं ? गांधीजी कह गए थे कि थप्पड़ मरनेवाले के सामने दूसरा गाल आगे करो, एक न एक दिन तुम जीतोगे ? ट्रेन एक न एक दिन जरूर लेट आएगी?
गांधीजी ने कब किसी से थप्पड़ खाया था क्या ? पड़ने चाहिए थे थप्पड़, कम से कम भुक्तभोगी हिंदुओं से ही पड़ते। परिजन खोए हुई कोई बुढिया ही चप्पलों से मारती, बहु बेटी के साथ दुर्व्यवहार का साक्षी कोई बूढ़ा ही सलीके से एक लाठी जड़ देता।
विंस्टन चर्चिल का वाक्य प्रसिद्ध है – व्हाइल द हिन्दू ईलेबोरेट्स हिज आर्गूमेन्ट, द मोस्लेम शार्पन्स हिज सोर्ड – जहां हिन्दू अपने तर्कों को धारदार बनाता है, तुरुक अपनी तलवार को धार चढ़ाता है। यही हमारा हजार वर्षों का अनुभव है।
फिर भी ट्रेन लेट होने का भरोसा है ?
ऐसा नहीं कि समस्या का समाधान नहीं होता, लेकिन आप को तो पता ही होगा कि ऑपरेशन करना होता है तो रोगी की तैयारी करवाई जाती है।
बाकी, ट्रेन लेट होगी या मिस होगी, सोचिए जरा।

Related Articles

Leave a Comment