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पोंपेई द्वीप का प्राचीन शहर

by रंजना सिंह
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हवाई से 4000 किलोमीटर दूर प्रशांत महासागर में एक सुनसान सा द्वीप है, पोंपेई द्वीप। इस द्वीप पर एक वीरान इलाके में एक प्राचीन शहर नॉनमडाल के खण्डहर मौजूद हैं। नॉनमडाल सैकड़ो सैलून तक राजा शारानुआ और उनके वंशजो की राजधानी रही थी। सैकड़ो किलोमीटर दूर से लाए गए ज्वालामुखीय लावे की भारी भरकम चट्टानों से बनी इस शहर की इमारतों के हर एक पत्थर का वजन 5 से 50 टन तक है।
इस प्राचीन शहर की इमारतों में इस्तेमाल किए गए कुल पत्थरों का वजन साढ़े सात लाख टन से भी ज्यादा था। इतिहासकारों का मानना है कि अगर प्रति वर्ष 2000 पत्थर भी ढोए जाएं तो आज की आधुनिक टेक्नोलॉजी की सहायता से भी इस शहर को बनाने के 300 साल लगेंगे। लेकिन स्थानीय कबीलों में रहने वाले आदिवासियों का कहना है कि उनके पुरखे उन्हें कहानियां सुनाते थे कि ये पत्थर दूर दराज के जवालामुखियों से हवा में उड़ा कर लाए गए थे और इन इमारतों को बनाने में एक महीने से भी कम वक्त लगा था।
हालांकि ज्यादातर प्राचीन इमारतों के साथ ऐसी कहानियां जुड़ी होती है कि इसका निर्माण एक रात में हुआ था। अगर ऐसी कहानियों को नकार दें, तब भी ये सवाल रह जाता है कि उस पुरातन काल मे ऐसी कौन सी टेक्नोलॉजी थी, जिसकी मदद से इतने वजनी पत्थर उठाकर भवन निर्माण किए गए। और ये इकलौती जगह नहीं है, जहाँ निर्माण कार्य मे इतने वजनी पत्थरों का प्रयोग इतनी कुशलता से किया गया।
लेबनान के 9000 साल पुराने विश्व प्रसिद्ध ब्रहस्पति मन्दिर के निर्माण में दुनिया के सबसे भारी पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था, जिनमे 3 पत्थर ऐसे है जिनमें प्रत्येक पत्थर का वजन एक लाख किलो है।बुलेविया के रेगिस्तानी पठार में बनी 2000 साल से भी ज्यादा पुरानी पत्थर की रहस्यमय सरंचना पूमा पूंकू के निर्माण में 100 टन वजनी पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था।
पूमा पूंकू के निर्माण को लेकर भी सेम कहानी है। स्थानीय निवासी कहते है कि पूमा पूंकू को सिर्फ एक रात में बनाया गया था और इन पत्थरों को हज़ारो किलोमीटर दूर से हवा में उड़ा कर लाया गया था। दक्षिण इंग्लैंड के मैदान में विशालकाय पत्थरो से बनी एक और रहस्यमय सरंचना स्टोनहेंज के निर्माण को लेकर भी स्थानीय मिथक यही कहते है कि इन पत्थरों को हवा में उड़ा कर लाया गया था।
गीज़ा के ग्रेट पिरामिड को बनाने में 23 लाख से भी ज्यादा चूना पत्थरों का इस्तेमाल किया गया। हर एक पत्थर का वजन ढाई टन से ज्यादा है। ये पिरामिड क्यों बनाए गए थे, इससे ज्यादा रहस्यमय सवाल ये है कि इन्हें कैसे बनाया गया था। मिश्र के प्राचीन ग्रन्थों में भी वही बात दोहराई गई है। इस बात का साफ साफ उल्लेख है कि ये विशालकाय पत्थर हवा में उड़ा कर गीज़ा के पठार तक लाए गए थे।
सन 1963 में गुजरात सरकार, एस्कवेशन डेक्कन कॉलेज पुणे और डिपार्टमेंट ऑफ आर्कियोलॉजी ने मिलकर समुद्र की गहराई में एक ऐतिहासिक नगरी द्वारिका को खोज निकाला। एक दशक बाद ही आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की अंडर वाटर आर्कियोलॉजी विंग को समुंदर में 3000 साल पुराने बर्तन, तांबे के सिक्के और चूना पत्थरों के बड़े बड़े स्ट्रक्चर मिले जो भगवान कृष्ण की राजधानी द्वारिका नगरी के थे।
भारतीय मिथक कहते है कि द्वारिका को कला और निर्माण के देवता विश्वकर्मा ने सिर्फ एक रात में बनाया था, वो भी पत्थरों को हाथ के इशारे से हवा में उड़ाकर। हवा में पत्थर को उड़ाना, वो भी उस पुरातन समय मे जब अति पढ़े लिखे और कूल डूडस के हिसाब से लोगों को खाने और पहनने तक की तमीज नहीं थी? चलिए इन सब मिथकों को मात्र कपोल कल्पना मान लेते है।
मान लेते हैं कि इस तरह की कोई टेक्नोलॉजी अतीत में नहीं थी फिर सवाल ये उठता है कि एक दूसरे से हज़ारों किलोमीटर दूर बसी अलग अलग संस्कृतियो में अलग अलग समय पर निर्मित हुई इन विशाल और भारी भरकम चट्टानों से बनाए गए स्ट्रक्चर को लेकर एक ही जैसी कहनियाँ क्यों प्रचलित है? इन मिथकों को नकारने की हमारे पास एक ही वजह है, हमारा सर्वश्रेष्ठ होने का घमंड। लेकिन ऐसी टेक्निक थी, ये मानने की वजहें अनेक है।
छठी सदी ईसा पूर्व महान गणितज्ञ और पश्चिमी संगीत के जनक पाइथागोरस ने पूरे मिश्र के पुजारियों, प्राचीन धार्मिक किताबों का अध्ययन करने के बाद ये दावा किया था कि ‘आवाज़’ इंसानो के लिए स्वर्ग मे जाने का रास्ता बना सकती है। पांचवी सदी ईसा पूर्व में यूनानी ईतिहासकर हिरोडोटस ने अपनी किताब में लिखा था कि प्राचीन मिस्र निवासियों को उनके देवताओं ने ये ज्ञान दिया था कि भारी पत्थरों को हवा में कैसे उड़ाना है।
आखिर वो ज्ञान था? वो ज्ञान था, एक ऐसी टेक्निक से जिसे आज हम एंटी ग्रेविनेशनल टेक्निक कहते है। इस टेक्निक में पत्थरों को भारहीन बनाने के लिए उसके वजन के बराबर आवाज़ की फ्रीक्वेंसी पैदा की जाती है। एन्टीग्रेविटी को समझने से पहले ग्रेविटी क्या है, ये समझिए।
ग्रेविटी की खोज 1687 में न्यूटन ने की थी। उससे पहले क्या ग्रेविटी नहीं थी? थी, लेकिन हम मानते नहीं थे। न्यूटन ने इसके होने पर मोहर लगाई। ग्रेविटी एक एलेक्ट्रिक फ़ˈनॉमिनन्‌ है यानी विद्युतीय घटना। दरअसल ग्रेविटी की वजह है मैग्नेटिक फील्ड और
मैग्नेटिक फील्ड इलेक्ट्रिसिटी पैदा करता है। न्यूटन को मैग्नेटिज़्म के बारे में कुछ नहीं पता था। इसे साबित किया, चार्ल्स ऑगस्टस ने।
अब विज्ञान द्वारा ही ये साबित हो चुका है कि ब्रह्मण्ड की हर चीज़ में मैग्नेटिक प्रोपर्टी होती है। मैग्नेटिज़्म भी दो तरह का होता है, पैरामैग्नेटिज़्म और डायामैग्नेटिज़्म। पैरामैग्नेटिक प्रोपर्टी वाली चीजें मैग्नेटिक फील्ड की ओर आकर्षित होती है और डायामैग्नेटिक प्रोपर्टी वाली चीजें दूर भागती हैं। सुपर कंडक्टर डायामैग्नेटिज़्म का सबसे अच्छा यंत्र माना जाता है। यह ठंडा होकर मैग्नेटिक फील्ड के ऊपर हवा उड़ता रहता है या एक जगह हवा में स्थिर रहता है। इस प्रक्रिया को ‘क्वांटम लॉकिंग’ कहा जाता है।
ऐसे ही साउंड के दम पर भी चीजों को हवा में उड़ाया जा सकता है। आवाज के दम पर पत्थर उड़ाने को ध्वनिक उत्तोलन (Acoustic levitation) कहते हैं। 17 जनवरी 2017 को ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी, इंग्लैंड के वैज्ञानिकों ने एक डिवाइस बनाई थी, जिसका नाम रखा गया ‘पोर्टेबल ट्रैक्टर बीम’। इस डिवाइस में छोटे छोटे स्पीकर लगे थे और उनसे निकलने वाली आवाज़ की फ्रीक्वेंसी के दम पर छोटे छोटे पत्थरों को हवा में उड़ाया गया।
दरअसल साउंड से टॉरॉयडल फील्ड (toroidal field) पैदा होता है। टॉरॉयडल फील्ड से मैग्नेटिक फील्ड बनता है और मैग्नेटिक फील्ड से इलेक्ट्रिसिटी पैदा होती है। अर्थात साउंड, मैग्नेटिज़्म, इलेक्ट्रिसिटी और ग्रेविटी आपस मे जुड़े हुए है। अब यहाँ दिलचस्प बात ये है कि पूमा पूंकू के निर्माण में जिन पत्थरों का प्रयोग किया गया है, उनमें भी काफी ज्यादा इलेक्ट्रो मैग्नेटिज़्म है।
वैज्ञानिक मानते है कि एंटी ग्रेविटी या साउंड से चीजों को गुरुत्वाकर्षण के विपरीत हवा में उडाने की इस टेक्नॉलजी के हम बिल्कुल शुरुआती दौर में है, हमने इसे अभी बस समझना शुरू ही किया है। यानि जो टेक्नोलॉजी हज़ारो साल पहले इस धरती पर मौजूद थी, उसके बारे में अभी वैज्ञानिकों को भी घण्टा नहीं पता है, लेकिन 60- 65 साल पहले मोदी जी के घर मे रहने वाले अब्बास के बारे में फेसबुकियों को सब कुछ जानना है। जा बे क्युटिये अपना काम कर।

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