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भारत में मेन स्ट्रीम मीडिया

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भारत में जब से मेन स्ट्रीम मीडिया पर लेफ्ट लिबरल लीगियों का कब्जा हुआ है और उनके कर्ता धरताओं ने 21वी शताब्दी के इंटरनेट युग में सोशल मीडिया को अपने कथानक को गढ़ने का मंच बनाया है तब से हमे अक्सर जो पढ़ाया, कान में सुनाया और दिखाया जाता रहा है भारत का असत्य रहा है। इसका दुष्परिणाम यह हुआ है की भारतीय समाज, विशेषतः हिंदुओ ने अपनी भावनाओं में बहकर, तार्किक होने की क्षमता का ह्रास किया। इसका परिणाम यह हुआ की जो पढ़ाया गया, सुनाया गया और दिखाया गया उसी को ध्रुव सत्य मानते हुए, अपने ही लिए न सिर्फ आत्मघाती निर्णय लिए बल्कि अपने ही देश भारत की विघटनकारी शक्तियों के साथ वे कब लेट गए, इसका भान भी नही हुआ।
वर्तमान में इसका सबसे बड़ा उदाहरण, मोदी सरकार की अभूतपूर्व कृषि कानून के विरोध में प्रायोजित किया गया किसान आंदोलन रहा है। यह किसान आंदोलन बहुत पहले से ही पंजाब के आढ़तियों के नेतृत्व में था जिसे खालिस्तानियों द्वारा निर्देशित किया जा रहा था लेकिन पूरे मीडिया ने इसे भूमिपुत्र किसानों का आंदोलन बनाए रक्खा और उन्हें बेचारा वा शोषित प्रदर्शित करता रहा। भारत जो एक कृषि प्रधान राष्ट्र है, वहां अच्छे अच्छे पढ़े लिखे वर्ग को इस छद्म आंदोलन से सहानभूति अर्जित कराई गई और जिन लोगो ने किसानों के भेष में खालिस्तानियों के होने की बात की, उन्हे ही प्रताड़ित किया गया वा आलोचना का पत्र बनाया गया। किसान प्रेम में लोगो की आंखों में इतना पर्दा पड़ गया की कृषि कानूनों के विरोध में किसानों द्वारा 26 जनवरी 2021 के दिन निकाली गई ट्रैक्टर परेड के दौरान लाल किले पर व दिल्ली के अंदर हुई हिंसा और भारत की राष्ट्रीय पताका की अस्मिता को कलंकित करने के प्रयास को जब इन मीडिया वालो ने इसे किसानों के विरोध करने की अभिव्यक्ति की संज्ञा प्रदान की तो उसे भी स्वीकार कर लिया। किसान आंदोलन को, खालिस्तानियों द्वारा भारत को जलाने और रक्तरंजित करने के लिए खड़ा किया गया था यह सत्य भारत का एक बड़ा वर्ग स्वीकार करने को ही तैयार नहीं था। 26 जनवरी को दिल्ली में हिंसा और लाल किले में राष्टीय ध्वज का को अपमान हुआ था उसका आरोपित पंजाबी फिल्मों का एक अभिनेता दीपू सिद्धू था और उसे किसानों का समर्थक बताते हुए, उसका पक्ष लेने, भारत का पूरा लिबरल सेक्युलर बुद्धजीवी वर्ग सामने आगया था।
इस दीपू सिद्धू का सत्य जो भारत का लेफ्ट लिबरल लीगियों का मीडिया और बुद्धजीवी वर्ग उसके जीवित होते हुए छुपाता रहा वह अंततः उसकी मृत्यु से हार गया है। अभी पिछले दिनों एक सड़क दुर्घटना में दीपू सिद्धू की मृत्यु हो गई तो उसकी अंत्येष्टि में, उसके शरीर को जहां अग्नि ने भस्म कर दिया वहीं उसकी जलती चिता के आस पास के नारों ने छद्म किसान के आवरण को उतार इसके असली खालिस्तानी चेहरे को दिखा दिया है।
मैं समझता हूं की भारत वा उसके सनातन धर्म की निरंतरता के लिए लीगियों के विध्वंस से ज्यादा सनातन के उस वर्ग का अन्मूलन अतिआवश्यक है, जो भारत में पलते विघटनकारी तत्वों को भावनात्मक वा वैचारिक समर्थन देते है।

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