Home विषयइतिहास भारत_का_विस्तार
जब से मैंने पुराणों का वैज्ञानिक रीति से वर्तमान भूगोल के आलोक में अध्ययन शुरू किया तभी मुझे भान हुआ कि वर्तमान भारत की सीमाओं में आर्यावर्त को बांधकर भारत के पुरा इतिहास को नहीं जाना जा सकता।
साथ ही केवल पौराणिक साहित्य के अतिरेकपूर्ण विवरण और केवल पुरातत्व के आधार पर भारत के इतिहास को निर्धारित नहीं किया जा सकता।
यही कारण है कि मैंने पुरातत्व व पौराणिक विवरण, दोंनों में समन्वय के आधार पर प्राचीनतम इतिहास का खाका अपनी पुस्तक में खींचा जिसकी सीमाएं दक्षिण में सिंहल और उत्तर में समरकंद तक और पूर्व में इंडोनेशिया से पश्चिम में अनातोलिया अर्थात तुर्की व यूनान तक जाती हैं।
इसमें देव, असुर, यक्ष जैसी स्थायी सभ्यताएं हैं तो नाग, वानर, ऋक्ष, गंधर्व जैसी टोटम आधारित सभ्यताएं भी।
अब भारत के इतिहास को उसकी वरर्तमान सीमा और वर्तमान कालावधि में सीमित नहीं किया जा सकता है।
प्राचीन युग में भारत का पौराणिक इतिहास पूरे सभ्य विश्व का इतिहास है और पुस्तक
#इंदु_से_सिंधु में आर्कियोलॉजी व पौराणिक विवरणों के तार्किक अनुसंधान से उसी विशाल परिदृश्य को प्रस्तुत करने का प्रयास किया था।
इस पुस्तक का मूल उद्देश्य #कुर्गन_परिकल्पना को चुनौती देना था जो आर्य संस्कृति के केंद्र को पश्चिम में दक्षिणी यूक्रेन में सिद्ध करके ‘आर्य आक्रमण सिद्धांत’ को नए तरीके से लागू करने का प्रयास कर रहे हैं परंतु जन्मनाजाहिल गोपालगंजी गिरोह की क्षुद्रता ने इसमें तगड़ा विघ्न डाल दिया।
Note:- चित्र में कुर्गन परिकल्पना को नक्शे में प्रस्तुत किया गया है जिसमें आर्यों को बाहरी बताया गया है।

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