कानून की किताब पढ़ कर फैसले लिखने वाले बड़े मीलार्ड किताब में लिखा सच बोल कर सुना देने को आग लगाना कहते हैं!
हुजूर फिर कानूनी किताबें पढ़ कर आप क्या करते हैं!
देश के सर्वोच्च आर्डर-आर्डर हैं आप… साफ करिये न इसे भी कि अगर कानून पढ़ कर सच्चे फैसले आप देते हैं, तो किताब पढ़ कर बोली गयी बात असत्य कैसे? और बोली गयी बात असत्य है तो आपके कानूनी फैसले सही कैसे?
आपकी संवैधानिक-नैतिक और न्याय के प्रति जिम्मेदारी है कि आप सत्य का स्थापन करें। आपको ‘उम्र’दार किताबी बात सत्य है या असत्य इस पर फैसला देने की राह पर जाना चाहिए न कि अभिव्यक्ति की आज़ादी की हत्या करने की।
गलत बात पर अपराधी न ठहराइये साहेब… ठहराते हैं तो अपराध की ‘उम्र’ बताना भी आपकी जिम्मेदारी हुई।
एक आईना पेश किया जाय क्या बड़े हजूर आपके सम्मुख….!