देवेंद्र की किताब ‘अनसंग हीरोज’ पर उठे बवाल ने मेरे मन को करीब चार साल पुरानी समय-यात्रा करवा दी है. ये बवाल उस छोटे कंकर जैसा है, जो झील के शांत जल में तनिक हलचल मचाता है. वैसी एक छिटपुट हलचल मैं इस पूरे प्रकरण में महसूस करता हूँ.
यद्यपि इस किताब को पाँच-छः बार पढ़ने के पश्चात् इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि ये कुत्सित किताब धर्म की हानि नहीं कर सकेगी. चार्वाक, बुद्ध और महावीर जैसे प्रखर मेधा वाले वेदविरोधियों की सुनामी में भी धर्म अक्षुण्ण रहा है, तब देवेंद्र तो मात्र एक बुलबुला है. कुछ भी नहीं कर सकेगा! किन्तु देवेंद्र दिलीप सी मंडल को आमंत्रित कर सबको नंगा करने की धमकी दे सकता है. क्योंकि उसे भ्रम है कि अब ऐसा कोई नहीं, जो उसका वैचारिक शिकार कर सके.
हिन्दू राष्ट्रवादियों को ‘सर्वेश गिरोह’ से उम्मीदें हैं. ऐसा आदमी जिसके भीतर स्वयं के देहभार को संभालने भर को रीढ़ नहीं है. वो देवेंद्र जैसे ज़िद्दी आदमी का सामना कैसे करेगा? सर्वेश केवल खींसें निपोर सकता है. अपने मित्रों को कार्यक्रम में बुला कर उनके साथ द्रुपद-द्रोण-कृत्य कर सकता है. और फिर सोशल मीडिया पर उनकी छवि को खराब कर अपनी सीढ़ी बना सकता है. दो कौड़ी की दो किताब छपवा सकता है.
किन्तु देवेंद्र का सामना करने का जो स्वप्न लोगों ने उससे पाल रक्खा है, सर्वेश के लिए वो असंभव है!
ये प्रकरण हॉफ की याद दिलाता है, सात भागों में आने वाली पुस्तक शृंखला ‘द न्यू वर्ल्ड’ के लेखक, माइकल हॉफ. अपने सातवें भाग ‘दोज हू रिमेन’ में हॉफ कहते हैं : “दुष्कर समय की कोख से सामर्थ्यवान जन्मते हैं. सामर्थ्यवान अपने श्रम से समय को सरल बनाते हैं. सरल समय की कोख से कमज़ोर जन्मते हैं और फिर कमज़ोर समय को पुनश्च दुष्कर बना देते हैं!”
यहाँ जिस कठिन समय की बात मैं कर रहा हूँ, वो दौर सुशोभित और विजय ठकुराय जैसे नास्तिक वामपंथियों का दौर था. तब देवेंद्र इनका पिछलग्गू था. ख़ैर, नियमानुसार सामर्थ्यवान लोग उभरे, इन तीनों की वैचारिकी का क्रूर शिकार किया गया. किन्तु सर्वेश ने उन सामर्थ्यवान लोगों की छवि ख़राब कर के राष्ट्रवादी भावनाओं को अपने लिए भुना लिया.
ऐसे में, क्या ग़लत जो हिन्दू राष्ट्रवादी सर्वेश से देवेंद्र की मुखालफत का स्वप्न पाले बैठे हैं?
देवेंद्र ने जिस तरह की खिलवाड़ का प्रदर्शन किया है, उसमें एक विजयी भाव है. इस विजयी भाव को नष्ट करने के लिए एक ऐसा क्रूर और हिंसक विचारधारा वाला वैदिक आर्य चाहिए, जिसमें उच्च स्तर की प्रीडेटर इंस्टिंक्ट हो, जो आदिवृक की भाँति अकेला ही ‘अनसंग हीरोज’ के पूरे कलेवर को नोंच डाले.मुझे प्रतीक्षा है कि शीघ्र ही वो आदिवृक जागृत हो!
यह उपन्यास इंदु से सिंधु तक नामक पुस्तक से लिया गया है जिसके लेखक माननीय देवेंद्र सिकरवार जी है