जानते हैं प्रह्लाद, मिहिरभोज, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी में क्या समानता थी?
उनके पिता भले ही महान न रहे हों लेकिन इन सबकी मातायें महान तेजस्वनि थीं।
जीवविज्ञान बताता है कि हमारे शरीर की कोशिकाओं में केन्द्रक का डीएनए भले ही माता पिता से तेईस-तेईस की संख्या में प्राप्त हुआ हो लेकिन हमारी कर्मक्षमता का डीएनए हमें माता से ही प्राप्त होता है।
जी हाँ,हमारे शरीर की ऊर्जा का स्रोत माता द्वारा प्राप्त अतिरिक्त डीएनए होता है जो हमें माइटोकॉन्ड्रिया के डीएनए के रूप में मिलता है।
हालांकि मानव पर इसका विशद अध्ययन नहीं किया गया है लेकिन मेरी स्थापना है कि यह मातृत्व का डीएनए ही है जिसका हम पर अतिरिक्त प्रभाव पड़ता है।
कम से कम इस देश का इतिहास तो यही बताता है और शायद इसीलिए हमारे ऋषियों ने स्त्रियों को पूजा तो उनके आचरण को नियंत्रित रखने का विधान भी किया।
शायद इसीलिए पद्मिनियों ने जौहर किया पर आन न दी कि आने वाली नस्लें शुद्ध रहें और उनका सिर गर्व से उठा रहे।
लेकिन पवित्र यज्ञकुंड के सामने मटकते हुए उसका मखौल उड़ाती इन मादाओं को देखकर पता लग जाता है कि क्यों अब प्रताप, शिवा और भगत जैसे नारशार्दूल हिंदू जाति में पैदा होना बंद हो गए हैं?
मैं तो इन्हें वेश्या भी नहीं कह सकता क्योंकि वे बेचारी तो हालात की मारी होती हैं पर इन निकृष्ट लड़कियों को क्या कहा जाए तो उस पवित्र अग्नि का जानते बुझते अपमान कर रही हैं जो कभी सीता और पद्मिनियों के स्पर्श से पवित्र हुई थी।
शेरनियों के गर्भ से शेर जन्म लेते हैं, इन मानव शरीर धारी गर्दभियों के गर्भ से मानव शरीर धारी खच्चर ही जन्म लेंगे।
कृष्ण तो आने को तैयार हैं पर देवकी तो मिले उस तेज को धारण करने को,
इसीलिये अब कृष्ण न आयेंगे फिर से इस धरा पर।

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