Home विषयमुद्दा उल्लू को कबूतर कैसे कह दूं.?
कौन कितना बड़ा राजनीतिक मौसम विज्ञानी.?😊
उल्लेखनीय है कि 1989 से 2019 तक देश में 9 लोकसभा चुनाव हुए, 9 सरकारें गठित हुईं। राम विलास पासवान ने 8 चुनाव जीते और 13 दिन की अटल सरकार तथा राव सरकार को छोड़कर हमेशा सत्ताधारी दल/गठबंधन के सदस्य रहे। 6 सरकारों में मंत्री रहे। राजनीतिक संभावनाएं भांप लेने और उसके अनुसार चुनावी पाला बदल लेने की अपनी बेजोड़, बेशर्म मौकापरस्ती के हुनर के कारण रामविलास पासवान को राजनीतिक मौसम विज्ञानी कहा जाता था। यह सही भी था।
लेकिन कल की गयी राजनीतिक उछलकूद के कारण स्वामी प्रसाद मौर्य को राजनीतिक मौसम विज्ञानी कह कर उत्तरप्रदेश में सपा की सरकार बनने का ढपोरशंख बजाने में जुट गए न्यूजचैनलों के ढपोरशंखी एंकर एडिटर रिपोर्टरों को क्या कहा जाए.?
ये वही स्वामी प्रसाद मौर्य है जो 2009, 2012, फिर 2014 तक हुए तीन चुनावों में लगातार हुई बसपा की भयंकर चुनावी दुर्गति को नहीं भांप पाया था। 2016 में भी बसपा से भागकर वो भाजपा में इसलिए गया था क्योंकि उस समय अगर वो भागने में जरा सी भी देर कर देता तो बसपा से विधि विधान के साथ उसे खदेड़ने की जोरदार तैयारी मायावती ने कर ली थी। मायावती के निजी अंगरक्षकों की फौज और उसके द्वारा किसी नेता को खदेड़ने के विधि विधान की रोचक रोमांचक विस्तृत जानकारी लखनऊ की मीडिया और राजनीतिक गलियारों के जानकारों को बहुत अच्छे से है
अब यह भी जान लीजिए कि 2016 में भाजपा ने इसे इसलिए लिया था क्योंकि जिस रायबरेली जिले के डलमऊ ऊंचाहार इलाके का यह है। वहां भाजपा की राजनीतिक ताकत और संगठन लगभग नगण्य ही था। आज भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। इसलिए 2016 में भाजपा के लिए तो यह काम का आदमी ही था। बस ये समझ लीजिए कि “ना उनको और, ना हमको ठौर” की कहावत चरितार्थ करते हुए भाजपा में इसका जाना और भाजपा द्वारा इसे दल में लाना, दोनों की ही मजबूरी थी। कुछ तुम समझे, कुछ हम समझे के सिद्धांतानुसार हुई राजनीतिक सौदेबाजी के बावजूद स्वामीप्रसाद मौर्य 2017 की प्रचंड भाजपा लहर में भी अपने तथाकथित गढ़ ऊंचाहार में अपने लड़के को भी चुनाव नहीं जितवा पाया था।
अब यह भी जान लीजिए कि राजनीतिक अपरिपक्वता का रिकॉर्ड लगातार बनाते जा रहे अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य को पार्टी में लाकर “आ बैल मुझे मार” की कहावत ही चरितार्थ की है। रायबरेली जनपद के जिस डलमऊ ऊंचाहार क्षेत्र पर अपने प्रभाव का दावा स्वामी प्रसाद मौर्य करता रहा है। उन क्षेत्रों में सपा का संगठन पहले से ही बहुत मजबूत है। वहां जनाधार वाले नेताओं की एक बड़ी संख्या सपा के पास पहले से ही है। उन सभी नेताओं का स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ 36 का आंकड़ा रहा है। स्वामी प्रसाद को पार्टी में लाने के बाद उन नेताओं की भवें निश्चित रूप से टेढ़ी हो गयी होंगी। भाजपा को अगले कुछ दिनों में इसका लाभ भी मिल सकता है।
स्वामी प्रसाद मौर्य को राजनीतिक मौसम विज्ञानी बता कर उत्तरप्रदेश में सपा की सरकार बनने का ढपोरशंख बजाने में जुट गए न्यूजचैनलों के ढपोरशंखी अगर “उल्लू को कबूतर” समझ रहे हैं तो समझने दीजिए। आप उनके जाल में मत फंसिए।

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