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कभी भारत में जिहादियों के हौसले बुलंद थे

by Nitin Tripathi
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1990-2010 के दौरान भारत में जिहादियों के हौसले बुलंद थे. जहां कहीं जब कहीं उनका मन होता था पटाखों की तरह बम फोड़ते रहते थे. आस पास बम फूटना उतना ही कामन था जितना सामान्य चोरी/ ठगी होना. लखनऊ, फ़ैज़ाबाद रामपुर इंटीरियर तक में बम फूटते रहते थे. यहाँ तक कि दिल्ली रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़ने में डर रहता था, हर तीसरे चौथे महीने बम फूटते ही रहते थे.
आतंकियों की मदद के लिए पूरा ईको सिस्टम था. प्रथम तो गिरफ़्तारी नहीं होती थी. क्योंकि पुलिस पर प्रेसर था जितने मुस्लिम आतंकी गिरफ़्तार किए हैं, उतनी ही मात्रा में कैसे भी हिंदू भी गिरफ़्तार करो और भारतीय पुलिस तो इस मामले में दक्ष है ही. गिरफ़्तारी हो गई तो आतंकी के ख़िलाफ़ चार्ज शीट हल्की बनाई जाती थी. चार्ज शीट बन गई तो सरकारी वकील ईको सिस्टम के हिस्से थे ही. और सबसे अंत में जूडिसियारी तो थी ही आतंकियों के साथ. रात रात को अदालत खोलते थे.
इस कार्टेल / ईको सिस्टम को भांग किया मोदी / शाह की जोड़ी ने गुजरात में. एंकाउंटर आरम्भ हुवे. आतंकी / आरंकियों के गुनाह गार मिलें सीधे उन्हें हूरों तक पहुँचा दो. इन ताबड़तोड़ एंकाउंटर से मोदी जी की छवि नो नॉन्सेन्स अड्मिनिस्ट्रेटर की बनी. हिंदुवों का एक वर्ग उनका फ़ैन बना पर साथ ही सेक्युलर तबका और मुस्लिम उनके दुश्मन. इसकी क़ीमत भी मोदी जी ने चुकाई, अमित शाह खुद जेल गए. दसियों ias / ips गुजरात के जेल गए. आतंकियों को सजा देने में हील हवाली करने वाली अदालत ने उन्हें मारने वाले पुलिस / मंत्री को जेल भेजने में देरी न दिखाई.
पर मौत से सबको डर लगता है. मोदी जी प्रधान मंत्री बने तो यह एंकाउंटर स्कीम चालू रही. काशमीर में छाँट छाँट कर मारा गया आतंकियों को. नतीजा यह रहा कि अब देश में इस तरह से बम फटने बंद हो गए. समय के साथ जिहादियों ने दूसरा हथियार ढूँढ लिया – पत्थर बाज़ी. अब पत्थर फेकने पर गोली तो नहीं मार दी जाएगी, ज़्यादा से ज़्यादा मुक़दमा होगा और उन्हें जेल का डर नहीं.
ऐसे में लम्बे समय बाद पत्थर का विकल्प सामने आया है बुलडोज़र. बुलडोज़र टेक्नीक बहुत कारगर है. एक बार पत्थर बाजों के घरों / दुकानों पर बुलडोज़र चल जाता है तो दूर दूर तक संदेश जाता है, उनकी हिम्मत नहीं पड़ती. ऐसे भी यह फट्टू हैं सामने वाला ताकतवर हो तो. इनसे डरे तो डराएँगे पर अगर लट्ठ चला दिया तो तुरंत विक्टिम बन जाएँगे. योगी जी के बुलडोज़र ने up में अमन चैन ला दिया. सारे जिहादी बिल में दुबके पड़े हैं.
up में बुलडोज़र की अपार सफलता के बाद इसका सफल प्रयोग मध्य प्रदेश आदि में भी हुआ. आज दिल्ली में भी अंततः बुलडोज़र के दर्शन हुवे. यद्यपि अदालत ने दख़लंदाज़ी की, इसके बावजूद जो थोड़ा बहुत बुल डोजर चला, इससे संदेश पहुँच गया. आपके कोई मित्र हों पत्थर बाज़ समूह के, बात करिएगा सब खूब गालियाँ देते मिलेंगे मोदी शाह योगी को. पर यही कहते मिलेंगे कि पाँच साल बाद देखेंगे. बुलडोज़र का ख़ौफ़ क़ायम हो गया है और यह डर बना रहना चाहिए.
पत्थर फेंकने वालों पर योगी जी का बुलडोज़र और बम फेकने वालों पर अमित अंकल की एंकाउंटर स्कीम इकमात्र कारगर तरीक़ा है जिहादियों से निपटने का.

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