आप सभी ने कन्तरा मूवी देखी होगी. आदिवासियों के देवता और उनकी परंपराओं पर एक शानदार फ़िल्म है.पर ऐसा नहीं है कि ऐसे देवता और परम्परायें आदिवासियों में ही होती हों.
हमारे क्षेत्र में पितर देव होते हैं. पितर अर्थात् पूर्वज. इनकी पूजा सामान्यतः सब कोई नहीं करता है. पीढ़ी दर पीढ़ी यह अबसे बड़ी बहू या सबसे छोटी बहू को पास होते रहते हैं. साल में दो बार चैत्र और कुंवार के महीने में इनकी पूजा होती है, घर में आई नई फसल से. जो परिवार शहर / मेट्रो चले गये तो अब वहाँ फसल नहीं होती पर पूजा होती ही हैं साल में दो बार.
घर में कोई भी मांगलिंक कार्यक्रम हो, कार्यक्रम से एक दिन पूर्व एक सेरेमनी में इन्हें प्रॉपर धरती पर बुलाया जाता है. कार्यक्रम में इनकी उपस्थिति रहती है और कार्यक्रम समाप्त होने के पश्चात वापस इन्हें इनके लोक भेज दिया जाता है.
बड़े बड़े क़िस्से कहानियाँ चलती हैं पितर देव के. किसी के पितर देव सीधे होते हैं तो किसी के क्रोधी. कोई आते हैं तो अपने साथ आँधी तूफ़ान लेकर आते हैं तो कोई बारिश लेकर आते हैं. इन्हें प्रशन्न कर रखा जाता है और यह धरती पर अपने ख़ानदान के लोगों कि आव भगत से प्रशन्न हो आशीर्वाद देते हैं.
यदि यह नाराज़ हो जाते हैं तो पितृ दोष लगता है. आज के समय में काफ़ी सारे लोग पितरों को भुला चुके हैं तो पितृ दोष से पीड़ित लोगों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है.