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खामोश_मोदी

by रंजना सिंह
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धरा पर ख़ामोश कुछ भी नहीं है जो ख़ामोश है वह परिस्थितियों के कारण ख़ामोश है। हकीकत में खामोशी कभी भी चुप नहीं रहती, कभी ग़ौर से सुनना बहुत किस्से सुनाती है। कोई यूँ ही ख़ामोश नहीं रहता। जो ख़ामोश है उसकी तलाश जारी है।
किसी के शब्द है – ‘कहता है की खामोशियाँ खामोश होती हैं कभी ख़ामोशियों को खामोशी से सुनो, शायद खामोशियाँ वो कह दें जिनकी लफ़्ज़ों में तलाश होती है’।
देखने वालों को लग सकता है कि वह ख़ामोश है तो कुछ नहीं चाहता है पर वह चाहता है। उसने इसलिए अपनी गतिविधियों को विराम दे दिया है कि वह जो नहीं पा सका है उसे प्राप्त करने के लिए बल इकट्ठा कर सके ।
राजनेता के रूप में मोदी ने अपेक्षाओं और संभावनाओं का इतना विशाल पर्वत खड़ा कर दिया है कि इस देश का जनमानस अब उनसे हर बात पर अपने स्वादानुसार सख्त और समुचित कार्यवाही की अपेक्षा रख उनकी खामोशी पर अधीर हो जाता है।
देश की हर मौजूं समस्या के बाद मोदी पर भरोसा रखने वालों का एक बड़ा वर्ग ये सोच कर तो आश्वस्त रहता है कि मोदी है तो सब ठीक ही होगा लेकिन कुछ ढुलमुल हैं जो कुलबुलाते रहते है कि मोदी क्या करेंगे या मोदी कुछ कर क्यों नहीं रहे। यही अधीरता खामोशी को नाकारापन समझती है।
बाकी तो देश में निकृष्ट विपक्ष है ही जो हर मुद्दे को हवा दे सत्ता की गंध सूंघते हुए हुंआ हुंआ करता ही रहता कि मोदी अक्षम है, मोदी नकारा है इसलिए मोदी खामोश है लेकिन उनकी सियासत को करीब से देखने वाले लोगों को मोदी की इस चुप्पी में कुछ भी नया नहीं लगता है।
मोदी जी की खामोशी की दास्तां जरा लंबी है फिर भी पढ़िए……
◆सत्ता के आगम की सारी व्यवस्था के बाद जब गुजरात से 1995 में मोदी की विदाई हुई थी तब भी खामोश ही थे।
◆जिम्मेदारियों के अनुरूप दल का प्रभाव बढ़ाते हुई पंजाब हरियाणा व उत्तरी राज्यों दल का संगठन खड़ा होने के बाद धीरे से फिर गुजरात सीएम के तौर पर वापसी करने तक भी खामोश ही रहे।
◆खून पसीने से सींचे हुए गुजरात में पार्टी के अंदर के अपने साथियों की पंच मंडली के विरोध से निबटने तक भी खामोश ही रहे।
◆अपने खिलाफ साजिश करने वाले अभिन्न मित्रो का बिना नाम लिए, बगैर हल्ला मचाए स्वयं को सियासी रूप से स्थापित करने का सबसे मुश्किल पहला चुनाव जीता फिर भी खामोश रहे।
◆जीत की खुशी से पहले ही गुजरात में गोधरा कांड हो गया और उसके अगले दिन गुजरात के कई हिस्सों में भड़के दंगे पूरे देश और दुनिया में गुजरात दंगे के तौर स्थापित कर मोदी की छवि फासिस्ट की बना दी गई तो भी खामोश ही रहे।
◆ गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में भीअमेरिका ने वीजा देने से मना किया, तब भी रहे खामोश ही रहे और प्रधानमंत्री के रूप में अमेरिका के राष्ट्रपति के

अभिनंदन

पर भी खामोश ही रहे।

◆ सत्ता के इशारे पर देश की सर्वोच्च अदालत ने एसआईटी गठित कर जाकिया जाफरी की याचिका में लगे आरोपों की जांच कराई। इस दौरान खुद गुजरात पुलिस के कई अधिकारी खुलेआम मुख्यमंत्री मोदी की मुखालफत किये प्रताड़ित हुए लेकिन तब भी खामोशी ही रखी।
◆यूपीए के दोनों काल मे लगातार मोदी को अंदर करने की साजिश हुई पिंजरे के तोते ने एक राज्य के मुख्यमंत्री को घंटो टार्चर किया तब भी खामोश ही रहे।
◆यूपीए काल मे पिंजरे वाला तोता सीबीआई ने मोदी को फंसाने के लिए अपने राजनीतिक आकाओं की शह पर गुजरात के तत्कालीन गृह राज्य मंत्री अमित शाह को इशरत जहां मुठभेड़ केस का आरोपी बनाते हुए चार्जशीट किया, सरेंडर के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। साबरमती सेंट्रल जेल में उन्हें कई महीने गुजारने पड़े। अमित शाह के जरिये मोदी को भी इस मामले में फंसाने के सीबीआई के दस्तावेज लीक हुए। सब कुछ सार्वजनिक हुआ तब भी मोदी खामोश थे।
◆आडवाणी जी की पूरी टीम ने पार्टी मंच पर मोदी की पीएम उम्मीदवारी का विरोध किया तब भी खामोश रहे।
◆प्रधानमंत्री बनते ही शादी से लेकर पढ़ाई तक को मुद्दे बना चरित्र हरण का प्रयास हुआ तब भी खामोश ही रहे।
◆नोटबंदी को लेकर देश मे विरोधियों द्वारा मोदी के खिलाफ माहौल बना तब भी खामोश रहे।
◆जीएसटी लागू करने को लेकर भी बहुत लोग गालियों दिए फिर भी मोदी खामोश रहे।
◆कश्मीर में धारा 370 को खत्म करने को लेकर भी विपक्ष के निशाने पर रहे फिर भी खामोश ही रहे।
◆सीएए को लेकर अंतराष्ट्रीय साजिशें हुई शाहीन बाग हुआ दिल्ली दंगे हुए तब भी मोदी सार्वजनिक तौर पर खामोश ही रहे।
◆हिन्दू हैं,500 वर्षों बाद अयोध्या धाम में प्रभु श्रीराम मंदिर के शिलान्यास की घड़ी आयी उसमें पहुंचे तो लोगों ने गालियां दीं तब भी खामोश ही रहे।
◆कोरोना की महाआपदा में जब लॉकडाउन किया तो क्यों किया और जब राज्यों पर जिम्मेदारी डाली, तो लॉकडाउन क्यों नहीं कर रहे ? इन आरोपो पर भी मोदी खामोशी ही रहे।
◆मोदी कोरोना को लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया के निशाने पर हैं फिर भी खामोश है।
◆ अब पश्चिम बंगाल में पार्टी कार्यकर्ताओं पर हमले हो रहे तब मोदी खामोश हैं।
बोले कब जब गुजरात दंगों से लेकर मुठभेड़ के आरोपों पर अदालत का फैसला आया। सीबीआई मसले पर जब क्लीन चिट मिली तो सिर्फ दो शब्द कहे #सत्यमेव_जयते और एक ब्लॉग लिख खामोशी तोड़ी।
हर समय में खामोश रहने वाले मोदी सिर्फ चुनावी सभाओं में हमलावर हो जबाब देते है यही उनकी यूएसपी है।
दरअसल ये पहली बार नहीं है, जब मोदी के राजनीतिक भविष्य पर सवाल उठे हैं, उनकी राजनीति को खत्म होता हुआ मान लिया गया है, उनको भयावह आलोचना का सामना करना पड़ा है या फिर उन पर पूरी तरह फेल होने का आरोप लगा। अगर मोदी के कैरियर को ध्यान से देखें, तो नियमित अंतराल पर मोदी के साथ ऐसा होते रहा है और जब भी ऐसा मौका आया है, मोदी ने खामोशी ही रखी।
वैईसे मोदी को जानने वाले शुरू से जानते है कि बहुत गंभीर मुद्दे पर जिसका जनाक्रोश असीमित होता है उसपर मोदी चुप ही रहते है और चुप रहते है तो निश्चित ही कुछ बड़ा करते हैं।
खामोशी कमजोरी नहीं, मोदी का सबसे बड़ा अस्त्र है और मोदी को अच्छी तरह से पता है कि काम बोलता है और ये जनता है, जो सब कुछ जानती है।
कहते हैं जब तूफ़ान आने वाला होता है तो देर पहले हवाएँ ख़ामोश हो जाती हैं। जब समुद्र में ज्वार आने वाला होता है तो कुछ देर पहले समुद्र में खामोशी छा जाती है। इससे साफ़ है कि खामोशियाँ कुछ तलाश करने के लिए ख़ामोश हैं वरना तो बोलना सबको आता है।
आप का भरोसा मोदी के लिए बड़ी चीज है लेकिन मोदी जी का फलसफा बोलता है कि ..
मेरी खामोशी में सन्नाटा भी है शोर भी है,
तूने देखा ही नहीं आँखों में कुछ और भी है।

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