Home अमित सिंघल चार राज्यों में जहाँ पूर्व में भाजपा की सरकार थी

चार राज्यों में जहाँ पूर्व में भाजपा की सरकार थी

by अमित सिंघल
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चार राज्यों में जहाँ पूर्व में भाजपा की सरकार थी, वहाँ अपने बूते पर पुनः चुनाव जीतकर सत्ता में वापस आने के गूढ़ मायने हैं।

सर्वप्रथम, यह स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी एवं उनकी टीम ने भारत में एक नयी राजनीति को खड़ा कर दिया है, जिसके अंतर्गत समस्त जनता को सीधे लाभ पहुंचाना है। एक तरह निर्धनों एवं महिलाओं को पहली बार कैश, खाद्यान्न, बैंक अकाउंट, घर, शौचालय, बिजली, नल से जल, गैस, स्वास्थ्य, सुरक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं मिल रही है; ना कि स्लोगन एवं नारो का लॉलीपॉप। पहली बार बहुसंख्यक जनता (निर्धन एवं महिलाओं) को पता चल रहा है कि बिना किसी भ्रष्टाचार एवं पहचान (जाति-धर्म) के आधार पर भी सरकार काम कर सकती है और अंतिम पंक्ति में बैठे व्यक्ति को लाभ पंहुचा सकती है।
मुझे याद है कि वर्ष 2019 का चुनाव जीतने के बाद एनडीए के नए सांसदों को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि “अब देश में सिर्फ दो जातियां बचेगी और देश सिर्फ इन दो जातियों पर केंद्रित होने वाला है। ये दो जातियां हैं – गरीब और दूसरी जाति है देश को गरीबी से मुक्त कराने के लिए कुछ न कुछ योगदान देने वालों की। इन दोनों जातियों को सशक्त करना है ताकि देश से गरीबी का कलंक मिट सके।”
यह एक महत्वपूर्ण वक्तव्य था।
ध्यान दीजिये। प्रधानमंत्री ने गरीब और अमीर, या निर्धन और धनी नहीं कहा। बल्कि उन्होंने धनाढ्य वर्ग को देश को गरीबी से मुक्त कराने वाली “जाति” के रूप में परिभाषित कर दिया।
इस वर्गीकरण के दूरगामी परिणाम निकल रहे हैं। क्योकि, एक तरह से प्रधानमंत्री मोदी ने जाति का आधार आर्थिक बना दिया है, न कि किसी वर्ण-विशेष में जन्म को।
इसके विपरीत अखिलेश क्या कर रहे थे? वर्ष 2012 में मुलायम की समाजवादी पार्टी लगभग 29% वोट के साथ सत्ता में आ गयी थे जो उनके कोर समूह – MY – का प्रतिशत भी है। मुलायम ने सत्ता अखिलेश को सौंप दी; अर्थात अखिलेश ने कभी भी सत्ता के लिए संघर्ष ही नहीं किया था। लगभग इसी वोट प्रतिशत के साथ मायावती वर्ष 2007 में सत्ता में आयी थी। एक तरह से 30-33 प्रतिशत वोट यूपी में सत्ता के लिए पर्याप्त था।
लेकिन बीजेपी ने लगभग 40% वोट शेयर के साथ 2017 में यूपी में बहुमत प्राप्त कर लिया था। तभी अखिलेश को संभल जाना चाहिए था।
अखिलेश का गेम प्लान था अपने 29% कोर वोट के ऊपर जयंत सिंह, राजभर, मौर्या इत्यादि के वोट बैंक जोड़ लेना; साथ ही आशा करना कि सरकारी नौकरी, कोरोना, मंहगाई इत्यादि के कारण कुछ लोग बीजेपी से अलग हो जाएंगे।
लेकिन हुआ उल्टा। प्रतीत होता है कि भाजपा ने यूपी में अपना वोट शेयर 2 प्रतिशत और बढ़ा लिया।
दूसरे शब्दों में, जातीय एवं धार्मिक गणित को बीजेपी ने दो जातियों – गरीब और देश को गरीबी से मुक्त कराने वाले लोगो – के गठबंधन से ध्वस्त कर दिया। पहली बार पूर्वाग्रह से ग्रसित राजनीतिक विश्लेषक भी स्वीकार कर रहे है कि मोदी-योगी ने निर्धनों एवं महिलाओं को एक नयी कॉन्स्टिट्युन्सी बना दिया है।
द्वितीय, नेतृत्व महत्वपूर्ण होता है। प्रधानमंत्री मोदी का नेतृत्व प्रभावशाली रहा है – चाहे कोरोना हो, या कोरोना से उत्पन्न आर्थिक संकट; या फिर आतंकी हमला हो, या 370 हटाना। यहाँ तक कि कृषि कानूनों को वापस लेने को लेकर उनका मजाक उड़ाया गया; लेकिन जनता में एक अलग ही सन्देश गया कि नेतृत्व विनम्र है; अपनी अकड़ में नहीं रहता है।
तृतीय, परिवारवादी नेतृत्व ध्वस्त हो गया है। चाहे प्रियंका-राहुल-सोनिया हो, या फिर मुलायम-अखिलेश, या बादल खानदान हो – सभी को भारी हार का सामना करना पड़ा है। इसके दूरगामी परिणाम महाराष्ट्र, तमिलनाडु एवं तेलंगाना में भी निकलेंगे जहाँ अगले चुनावो में परिवारवादी दल समाप्त हो जाएंगे।
चतुर्थ, वातानुकूलित कमरों में बैठकर रणनीति बनाने वाले कुर्सीतोड़ “विशेषज्ञ” साइडलाइन हो गए है। योगेंद्र यादव ने आज स्वीकार किया कि “हमने स्विंग गेंदबाजी के अनुरूप पिच को तैयार किया था। लेकिन हम वहां नहीं जा सकते और आपकी (विपक्ष की) तरफ से भी गेंदबाजी नहीं कर सकते थे”। दूसरे शब्दों में, फर्जी किसान आंदोलन, CAA की आड़ में धरना-प्रदर्शन के द्वारा विपक्ष कोई राष्ट्रव्यापी आंदोलन नहीं खड़ा कर सकता; ना ही चुनाव जीतने की आशा कर सकता है।
पंचम, भाजपा का वोट शेयर धीरे-धीरे बढ़ता ही जा रहा है। पश्चिम बंगाल में भाजपा ने अपना वोट 10 प्रतिशत से बढ़कर 38 प्रतिशत कर लिया है और पार्टी को जीत के लिए केवल पांच प्रतिशत वोट और बढ़ाना है। अगली बार छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखंड, महाराष्ट्र, तेलंगाना जैसे राज्यों में भाजपा सरकार बनाने की मजबूत स्थिति में है।
अंत में, प्रधानमंत्री मोदी ने 2019 की जीत के बाद यह भी कहा था कि 2014 से पहले का चुनाव कॉन्ट्रैक्ट टाइप बन गया था, जिसमें लोग 5 साल के लिए सिर्फ किसी को चुन लेते थे और अगर वह ठीक काम नहीं करता तो उसे हटा देते थे। लेकिन सत्ता कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं है, ये हमारी संयुक्त जिम्मेवारी है। सबका साथ, सबका विकास और अब सबका विश्वास ये हमारा मंत्र है।
फिर प्रधानमंत्री ने कहा कि जो हमारे साथ थे, हम उनके लिए भी हैं और जो भविष्य में हमारे साथ चलने वाले हैं, हम उनके लिए भी हैं। यानि कि प्रधानमंत्री जी ने देश की जनता को समर्थन और विरोध के दायरे से परे कर दिया है और यह विश्वास व्यक्त किया कि जो आज विरोध में खड़े है, वे भविष्य में उनको समर्थन देंगे।
यही नया भारत है।

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