Home लेखक और लेखअजीत सिंह छात्रों का नौकरी के लिए ट्रेन को आग लगाना

छात्रों का नौकरी के लिए ट्रेन को आग लगाना

by Ajit Singh
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छात्रों का नौकरी के लिए ट्रेन को आग लगाना, और किसानों का एमएसपी के लिए देश को आग लगाना…दोनों की जस्टिफिकेशन इस सिद्धांत पर आश्रित है कि हमें नौकरी देना सरकार का काम है, और हमारी फसल खरीदना सरकार का काम है. और सरकार यह नहीं करेगी तो हम आग लगा देंगे. पिछली 26 जनवरी को एक ने उत्पात फैलाया, इस 26 जनवरी को दूसरे ने.
ना तो युवाओं को नौकरी देना सरकार का काम है ना ही किसान की फसल खरीदना सरकार का काम है. मेरी फसल वह खरीदेगा जिसको भूख लगेगी, नौकरी वह देगा जिसको मेरे स्किल की जरूरत होगी. अगर मेरे पास स्किल होगा तो किसी ना किसी को जरूरत होगी ही. नौकरी एक अनुग्रह क्यों है और कब है? तभी ना जब नौकरी में मुझे मेरी योग्यता से अधिक मिल रही हो. अगर स्किल होता तो यही सोचता, तुमने नौकरी ना दी… तुम्हारा नुकसान हुआ. जितना तुम मुझे देते हो, मेरी उत्पादकता उससे अधिक है…तुम्हारा नुकसान है, मेरा क्या?
नौकरी के लिए तड़पता नौजवान यह नहीं समझता कि उसे नौकरी के लिए सरकार का मुँह इसलिए देखना पड़ रहा है क्योंकि उसने उद्यमियों को अपना शत्रु घोषित कर रखा है जो उसके लिए प्रोडक्टिव रोजगार का सृजन करेगा. एमएसपी माँगता किसान यह नहीं समझता कि उसे फसल को बेचने के लिए सरकार का मुँह इसलिये देखना पड़ता है क्योंकि उसने बाजार को, व्यापारी को अपना शत्रु घोषित कर रखा है जो उसे यह बता सकता है कि जनता को किस चीज की फसल की जरूरत है, किस चीज की खेती करने पर उसे अधिक मूल्य मिलेगा.
समाजवाद ने तरह तरह के पैरासाइट पाल रखे हैं. हर 26 जनवरी को कोई ना कोई पैरासाइट अपने पैरासिटिज्म के अधिकार के लिए देश में आग लगाएगा. और हर 26 जनवरी को समाजवाद का मारा राष्ट्रवादी, सरकार की हृदयहीनता और असंवेदनशीलता को कोसेगा.

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