#जयपुर_डायलॉग हिंदू-विमर्श को न केवल देश के भीतर, बल्कि विदेशों में भी गति दे रहा है। जब मैं कहता हूँ #हिंदू_विमर्श तो उसका अभिप्राय #विश्व विमर्श से है। चूँकि कुछ लोगों को हिंदू शब्द से आपत्ति है, इसलिए मुझे यह और अधिक प्रिय है।
आज तक किसी कार्यक्रम में भाग लेने से पूर्व मैं बहुत सहज रहा हूँ, आज थोड़ा दबाव में हूँ। क्योंकि कार्यक्रम में मेरे साथ जो दो और को-पैनलिस्ट हैं, वे मुझे बहुत प्रिय हैं, और दुर्भाग्य से मुझे उनका प्रतिवाद करने की अपेक्षा से बुलाया गया है। समकालीन विद्वानों में मैं जिन-जिनका सर्वाधिक आदर करता रहा हूँ, उनमें से एक श्री #शंकर_शरण जी हैं, दूसरे कोएनराड एल्स्ट को मैंने अधिक नहीं पढ़ा है। दोनों इन दिनों संघ-भाजपा के प्रबल विरोधी हैं। इनके विरोध का आधार राजनीतिक नहीं है, न ये विरोधी खेमे के हैं। इनका विरोध इस आधार पर है कि संघ-भाजपा ने हिंदू-समाज के लिए अपेक्षा से बहुत कम किया। अब ऐसे स्टैंड का विरोध या काउंटर या प्रतिवाद चुनौतीपूर्ण तो है ही। और यदि सामने वाले व्यक्ति के प्रति आपके मन में श्रद्धा हो तो और चुनौतीपूर्ण।
आज जयपुर डायलॉग का पाँचवां और अंतिम दिन है। इसके सभी सत्र जबरदस्त ज्ञानवर्द्धक रहे। आज आप भी जुड़ें और देखें कि अपनों से हार जाना भी कितनी सुखद व आनंददायी अनुभूति हो सकती है!
”संघ-भाजपा” हिंदुओं के लिए कुछ नहीं करती, कार्यकर्त्ताओं की घनघोर उपेक्षा करती है, सत्ता में आने के बाद काँग्रेस की ही लाइन पर चलती है, इससे कोई बहुत प्रतिभाशाली या बौद्धिक व्यक्ति लंबे समय तक जुड़कर चल नहीं सकता, इसके पास संविधान से ‘सेकुलर’ शब्द हटाने के अवसर 1977 में थे, 1989 में हिंदुओं के कश्मीर से पलायन के समय केंद्र में भाजपा गठबंधन सरकार का हिस्सा थी, उसने नेहरू की फिलॉसफी या विदेश-नीति को ही आगे बढ़ाया, गाँधी-गाँधी काँग्रेसियों से भी अधिक रटती है”- को-पैनलिस्ट- श्री शंकर शरण जी एवं श्री कोएनराड एल्स्ट

