नेटफ्लिक्स पर इतनी गंदगी बिखरी पड़ी है जिसका हिसाब नहीं है. आपको अगर हिंदी फिल्मों और वेब सीरीज में परिवार तोड़ने वाली कामुकता और विवाहेतर यौन सम्बन्ध दिखाई देते हैं तो यह कुछ भी नहीं हैं. अगर आपको हॉलीवुड अधिक बड़ा कूड़ेदान लगता है तो वह भी छोटा है. असली गंदगी यूरोपियन फिल्मों में बिखरी पड़ी है.
कल एक फ्रेंच फ़िल्म देखी जो 1960-70 के दशक की पेरिस की एक प्रसिद्ध वेश्या मैडम क्लाउड की बायोपिक थी. वेश्यावृत्ति का महिमामंडन तो खैर हिंदी सिनेमा में भी खूब दिखाई देता है, और अगर एक तवायफ कहानी में कहीं होती है तो उसका चरित्र सबसे उज्ज्वल और धवल होता है. पर उसके नीचे लगातार कई स्पेनिश और पोलिश फिल्मों के suggestion थे जिनकी थीम भाई-बहन के बीच यौन सम्बन्ध थी. सचमुच इन वामपंथियों की घिनौनी हरकतों का कोई अन्त नहीं है.
हम जरा ही पीछे पीछे चल रहे हैं. इस कल्चरल मर्क्सिज्म की धारा यूरोप से शुरू होती है, वहाँ से यह अमेरिका और फिर वहाँ से अमेरिकी कल्चरल सॉफ्ट पॉवर के सहारे पूरी दुनिया में फैल जाती है. 90 के दशक की फिल्मों “दायरा” (ट्रांस-सेक्सुअल) और “फायर” (लेस्बियन) के बाद यह थीम थोड़ी थमी हुई है. अभी फेमिनिज्म और वुमन एम्पावरमेंट पर काफी बैकलॉग है, वहाँ काम चल रहा है. वह बैकलॉग क्लियर होते ही ट्रान्स और गे-थीम्स पर काम शुरू होगा… एक दशक के अंदर नेटफ्लिक्स की कृपा से हिंदी सिनेमा में यह भाई-बहन के यौन संबंधों की थीम इंट्रोड्यूस हो