पहली और महत्वपूर्ण बात यह कि विकास की तमाम बातों , दावों , वादों , किसान आंदोलन , मंहगाई , बेरोजगारी , परशुराम की मूर्ति और पिछड़ी जाति के ख़ूबसूरत कार्ड के बावजूद उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव हिंदू , मुसलमान के बीच हो गया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह हिंदू-मुसलमान का खेल खुल्ल्मखुल्ला दिखाई देने लगा है। भाजपा की यह पसंदीदा बिसात है। पर शुरुआत अखिलेश ने अपने लवंडपने में जिन्ना के मार्फ़त की थी। कल अमित शाह ने यह कह कर इस पर मुहर लगा दिया है कि जाट और मुगलों की लड़ाई 650 साल पुरानी है। फिर जिन लोगों को लगता है कि उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में मुख्य मुक़ाबला भाजपा और सपा में है , वह लोग ग़लत सोचते हैं। मुक़ाबला तो दरअसल बसपा और सपा में है। कि नंबर दो पर कौन , नंबर तीन पर कौन। दूसरा मुक़ाबला कांग्रेस और ओवैसी में है कि नंबर चार पर कौन , नंबर पांच पर कौन।
आप पूछेंगे फिर भाजपा ? तो भाजपा से किसी का कोई मुक़ाबला नहीं है। भाजपा न सिर्फ़ नंबर एक पर है बल्कि उस के आसपास भी कोई नहीं है। न्यूज़ चैनलों पर प्रसारित सर्वे पर बिलकुल मत जाइए। और जान लीजिए यह भी कि सपा लाख मंकी एफर्ट कर ले , रहेगी डबल डिजिट में ही। बसपा भी डबल डिजिट में। गोरखपुर में तो चंद्रशेखर रावण जैसों सभी की एकमुश्त ज़मानत ज़ब्त होने जा रही है। कांग्रेस और ओवैसी अगर खाता खोल लें तो बहुत है। ज़्यादा से ज़्यादा दो से पांच सीट में दोनों सिमट जाएंगे। ज़मीनी हक़ीक़त यही है। मानना हो मान लीजिए , न मानना हो मत मानिए।
पर मेरा यह लिखा कहीं लिख कर रख ज़रुर लीजिए। कहीं सेव कर लीजिए। स्क्रीन शॉट ले लीजिए। ताकि सनद रहे और वक़्त ज़रुरत काम आए। अगर मैं ग़लत साबित हुआ तो मुझे आइना दिखाने के भी काम आए। अखिलेश यादव के मीडिया मैनेजमेंट पर न जाइए। अखिलेश के पास पैसा बहुत है। पर पैसा रखने और खर्च करने की बुद्धि नहीं। कभी टाइल और टोटी में दीखता है , कभी इत्र की गमक में। क्यों कि अकड़ और हेकड़ी भी बहुत है। अभी से वह अफ़सरों से लगायत पत्रकारों तक को धमका रहे हैं। यह कह कर कि वह सब का नाम नोट कर रहे हैं। सरकार बनने पर सब को देख लेंगे। पत्रकारों को तो प्रेस कांफ्रेंस में ही हड़का ले रहे हैं। अखिलेश की चंपूगिरी में अभ्यस्त टू बी एच के जैसे पत्रकारों की प्रसिद्धि अलग है। सेक्यूलर पत्रकारों को अखिलेश की मिजाजपुर्सी में रहना ही है। इस के लिए अभिशप्त हैं यह लोग। तिस पर कोढ़ में खाज यह कि हताशा में गोदी मीडिया बुदबुदाने वाले लोग भी हैं। लेकिन अखिलेश यादव के इत्र की गमक में मत बहकिए। कन्नौज के नोट अभी बहुत हैं। करोड़ों नहीं , अरबों में।