अब हमलोगों ने प्रतिउत्तर देना सिख लिया हैं। दुष्टों के साथ सदाचार की कल्पना करना ही मुर्खता है।यह तो तय है कि सबका हिसाब यही होना है। कर्मो का फल अवश्य मिलना है यही अंतिम सनातन सत्य है। वह दौर अब हिन्द महासागर में विलिन होने के लिए तैयार खड़ा है जब तथाकथित पेड बुद्धिजीवियों के मन में जो आये हाँक देते थे और वहीं अगले दिन विमर्श का विषय बन जाता था।
अब गोली दोषी हो या बोली जो दोषी होगा उसके बारे में बोला जाएगा और डंके कि चोट पर यह माना भी जाएगा। तथाकथित सेक्युलर रोग से पीड़ित होने के चक्कर में इस देश ने बहुत कुछ खोया है। इस देश को अब और कुछ नही खोना है इसलिए लोगों ने सेक्युलरिज्म के कोढ़ को अपने शरीर से काट कर फेकना शुरु कर दिया है।
अब लोगों ने यह समझना शुरू कर दिया है कि विचारधारा के नाम पर आप कुछ भी अकबक नही बक (बोल) सकते हैं। अगर आप बाज नही आएंगे तब पब्लिक आपका सामुहिक ईलाज करने के लिए बाध्य हो जाएगा। हिन्दुओं को अब यह समझ आने लगा है कि उनका रक्षक कौन है और भक्षक कौन है। अगर आप भारत रत्न पंडित अटल बिहारी वाजपेयी और राष्ट्रवादी अमर पत्रकार रोहित सरदाना केमृत्यु का जश्न मनाएंगे तो यकीन मानिए दानिश मरे या मंगेश आपको भी सुनना होगा! नैतिकता समय और कालखंड तय करता हैं।
मानस में तुलसी बाबा ने जो लिखा कि
पर द्रोही पर दार रत पर धन पर अपबाद।
ते नर पाँवर पापमय देह धरें मनुजाद॥
अर्थात वे दूसरों से द्रोह करते हैं और पराई स्त्री, पराए धन तथा पराई निंदा में आसक्त रहते हैं। वैसे पापमय आदमी मनुष्य नर-शरीर धारण किए हुए राक्षस ही हैं। यह पंक्तियाँ आज के कालखंड में वामपंथी विचारधारा के लोगों पर कितनी सटीक बैठती है। वह तो अच्छा हुआ कि समय इनको दंड दे रहा हैं लेकिन वह दिन भी दूर नही जब एक आम हिन्दू भी इनको इनको दंड देने के लिए इनके सामने खड़ा होगा।
इस विश्वास के साथ कि दुष्टों और खलों के साथ कोई सहानुभूति नही होनी चाहिए और जो हमारा नही है इसका सीधा संबंध है कि बिना किसी लाग लपेट के वह हमारा नही है।
मौत तो सनातन में वैसी भी मुक्ति है। कर्म अगर धर्म वाले हो तो मरना भी शान से और जीना भी गर्व और गौरव की अनुभूति लिए हुए होनी चाहिए।
हिन्दुओं में एकजुटता प्रगाढ़ हो और धर्म की जय हो!
इसी कामना के साथ …!