मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि 2014 में सत्ता बदलने के बाद जो सबसे उपेक्षित क्षेत्र रहा, वह शिक्षा है। सत्ता बदलने के बाद भी शिक्षा-मंत्रालय की रीति-नीति, दिशा-दशा पूर्ववत रही। अधिकांश संस्थाओं-समितियों में वे लोग बने रहे जो पूर्व के शासन में भी मलाईदार पदों पर थे।
गुलाटी खाने और सत्ता बदलते ही पाला बदलने की कला में सिद्धहस्त कलाबाजों की वर्तमान सरकार में भी पौ-बारह है। शिक्षा-मंत्रालय कुंभकर्णी मुद्रा में तो है ही, उससे अधिक चिंताजनक स्थिति यह है कि यदि आप वामपंथी हैं, कांगी हैं, या औपनिवेशिक मानसिकता के हैं तो शीर्ष पदों पर अवश्य नियुक्ति पा जाएँगें! यदि मेरे जैसा आम व्यक्ति यह देख पा रहा है, पहचान पा रहा है, फिर व्यापक तंत्र वाली सरकार यह कैसे देख-समझ नहीं पा रही है?
यदि रीति-नीति, दिशा-दशा, पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तकों के स्तर पर आवश्यक एवं वांछित बदलाव नहीं किए गए तो पीढ़ियाँ हमारे नाम पर धिक्कारेंगीं। अंग्रेजों और अंग्रेजों के बाद उनके मानस-पुत्रों यानी कांगी-वामी तथाकथित शिक्षाविदों का वर्चस्व आज भी शिक्षण-तंत्र पर होना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण, चिंताजनक एवं आपत्तिजनक है।
#दैनिक_जागरण में आज इसी विषय पर मेरा आलेख है। यदि आप असहमत हों तो असहमति के बिंदु रखें और यदि सहमत हो तो कृपा कर #साझा करें। ताकि #तंत्र के #अंधे_गूंगे_बहरे #कानों_आँखों तक वास्तविक दृश्य और निर्भीक आवाज पहुँचे।![🙏](https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/td9/1.5/16/1f64f.png)
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