Home राजनीति समाजवादी पार्टी समर्थकों/शुभचिंतकों को डा० ओमशंकर जैसे सामाजिक-न्याय विचारशील आलोचकों को हाथों-हाथ लेना चाहिए

समाजवादी पार्टी समर्थकों/शुभचिंतकों को डा० ओमशंकर जैसे सामाजिक-न्याय विचारशील आलोचकों को हाथों-हाथ लेना चाहिए

by Umrao Vivek Samajik Yayavar
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जितना मैं समझता हू डा० ओमशंकर जाति, धर्म, राजनैतिक-दल इत्यादि पूर्वाग्रह से तथ्यों, तत्वों, घटनाओं व सामाजिकता को नहीं देखते हैं। सामाजिक न्याय, रचनात्मकता, सुधार, विकास, उन्नति व परीक्षण इत्यादि के आधार पर देखते हैं। ईमानदार व समग्र दृष्टि रखते हैं। डा० ओमशंकर ऊलजुलूल बात करने वाले लोगों में नहीं हैं, इसलिए उनकी बातों को गंभीरता से देखने समझने का प्रयास करना चाहिए, न कि उनकी बात पसंद न आने पर उन पर पिल पड़ना चाहिए।
चुनाव हारना जीतना मतदाताओं के मतों के ऊपर निर्भर करता है, भले ही मतदाता ने मत किसी पूर्वाग्रह, स्वार्थ, नफरत, क्षणिक-लाभ इत्यादि के आग्रह या आवेश में आकर दिया हो। मूल्य मत का होता है न कि मत देने के पीछे निहित कारण पर।
यदि समाजवादी पार्टी समाजवादी है और समाजवादी पार्टी के समर्थक केवल सत्ता प्राप्त को ही समाजवाद नहीं कहते हैं, वास्तव में समाजवाद को थोड़ा सा भी जानते बूझते हैं तो उनको यह पता ही होगा कि समाजवाद की शुरुआत सामाजिक न्याय से होती है, किसी भी अन्य तरीके से नहीं। सामाजिक न्याय के लिए कोई शार्टकट भी नहीं होता है। रूस में लगभग 100 साल होने को हैं, चीन में आधा-शतक पार हो चुका है, लेकिन राजनैतिक सत्ताएं लगातार काबिज रहने के बावजूद सामाजिक-न्याय के ककहरे का “क” तक भी नहीं चल पाईं हैं। बदलाव राजनैतिक-सत्ताओं से नहीं हुआ करते हैं, सत्ताओं का अपना चरित्र होता है। मूल बात व्यक्ति, लोग व समाज की दृष्टि, समझ व चरित्र पर निर्भर करती है।
हम देश के प्रतिष्ठित संस्थान के वरिष्ठ प्रोफेसर व अंतर्राष्ट्रीय ख्याति चिकित्सा-विशेषज्ञ जो यदि चाहे तो करोड़ों रुपए महीने का आलीशान सुविधापूर्ण जीवन जी सकता है, लेकिन देश के करोड़ों लोगों के दूरगामी हितों के लिए आवाज उठाता है आंदोलन करता है, जमीन पर उतर संघर्ष करता है, भ्रष्टाचार के खिलाफ व्हिसल-ब्लो करता है, ऐसे व्यक्तित्व की गंभीर बात को गंभीरता से लेते हुए आत्म-मूल्यांकन करने की ओर चलते हैं या उसके साथ छीटाकसी करते हैं उपहास करते हैं। यह हमारी दृष्टि, सामाजिक ईमानदारी, विचारशीलता व आंतरिक चरित्र का स्तर तय करता है कि हम कैसा व्यवहार करते हैं।
कटु बात तो यह है कि बहुजन समाजवादी पार्टी व समाजवादी पार्टी दोनों को ही बहुमत के साथ कम से कम पांच-पांच वर्ष सरकार चलाने का अवसर प्राप्त हुआ। लेकिन सत्ता-केंद्रों के साथ सटे हुए लोगों ने जमकर मलाई खाई जैसा कि भाजपा व अन्य पार्टियों की सत्ताओं पर होता है।
सामाजिक न्याय की ओर गंभीर व ठोस कदम क्या चले गए, इसका जवाब ईमानदारी से तो नहीं ही है, जबरिया कुछ क कुछ साबित करने की लफ्फाजी की जाए तो बात अलग है। सामाजिक न्याय की ओर गंभीरता से चंद कदम भी चले गए होते तो बहुजन जागरूक हो गया होता, मजबूत हो गया होता। राजनैतिक दिशाओं को नियंत्रित कर रहा होता, दीर्घकालीन प्रतिबद्धता होती, दिशाहीनता के साथ भटकाव नहीं हो रहा होता।
सत्ता-लोलुपता, सत्ता-चाटुकारिता, भगतई इत्यादि वाला चरित्र का मतलब समझ होना नहीं होता, दृष्टि होना नहीं होता, सामाजिक प्रतिबद्धता होना नहीं होता, सामाजिक-न्याय की समझ होना नहीं होता। समाजवादी नाम जोड़ लेने से समाजवाद की समझ पा लेना नहीं होता है।
हार का डर हो या जीत की संभावना का दंभ या पूर्वाग्रह या नफरत या कुछ भी कारण हों। रचनात्मक आलोचना का स्वागत करना सीखिए। रचनात्मक आलोचाना का स्वागत कर पाने लायक समझ नहीं, साहस नहीं, बुद्धि नहीं, दृष्टि नहीं तो कम से कम गाली-गलौच तो न कीजिए इतनी तो शर्म होनी ही चाहिए। शर्म तो केवल ईमानदारी से सामाजिक प्रतिबद्धता व जमीन पर उतर कर संघर्ष करने की इच्छाशक्ति व प्रतिबद्धता को ही देखकर आ जानी चाहिए।
जो बंदा लाखों लोगों का जीवन बचाता आया हो। देश के करोड़ों लोगों व उनकी आने वाली पीढ़ियों के कल्याण के लिए स्वास्थ्य-नीतियों के लिए जमीन पर उतर संघर्ष व आंदोलन करता आया हो। उस बंदे की रचनात्मक आलोचना के लिए धन्यवाद ज्ञापन व आभार प्रकट करने की बजाय प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष गाली-गलौच करना, अपमान करना, सरासर गलत है, निंदनीय है।
बिना किसी किंतु-परंतु के समाजवादी पार्टी के समर्थकों व शुभचिंतकों को डा० ओमशंकर जैसे लोगों की आलोचनाओं का स्वागत किया जाना चाहिए, धन्यवाद ज्ञापित करना चाहिए, आभार प्रकट करना चाहिए।
भारतीय समाज में जिस तरह का माहौल बना दिया गया है, उसमें दलगत पूर्वाग्रह से बाहर निकल कर समाज के हित के लिए बात ही कितने लोग कर पाते हैं। बहुतों में साहस नहीं होता है, जो साहस दिखाते भी हैं, उनको अपमानित किया जाता है चुप करा दिया जाता है। जबकि जो चंद लोग साहस दिखा पाते हैं, उनको सहेजने की जरूरत है, परिपक्व लोग व समाज ऐसा ही करते हैं।
(यदि आप इस पोस्ट के लिए मुझे गालियां देते हैं, उपहास करते हैं, खिल्ली उड़ाते हैं − तो यह मेरे लिए कोई अचंभे की बात नहीं होगी। आप ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं।)
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विवेक उमराव
“सामाजिक यायावर”

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