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सरकारी बनाम प्राइवेट :

नितिन त्रिपाठी

by Nitin Tripathi
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मैं नमक से लेकर सुई तक ऑनलाइन शॉपिंग करता हूँ. महीने में पचास पैकेट आते हैं. असम्भव है कि कभी भी एक भी पैकेट लेट हुआ हो / मिस हुआ हो. इक्का दुक्का केस में ऐसा हुआ भी तो उससे पहले ही अमेजन की ओर से माफ़ी माँगी जा चुकी होती है. एकाध बार सामान टूटा निकला तो अमेजन ने माफ़ी माँग पैसे वापस किए, बोला सामान आप ही रख लो. इन दिनों शहर में ज़बर्दस्त जाड़ा है, पर अमेजन के डिलीवरी boy सुबह आठ से लेकर रात आठ तक डिलीवरी करने आते रहते हैं, कभी आमने सामने पड़ जाएँ तो प्रसन्नता से ग्रीट भी करते हैं. बमुश्किल दस पंद्रह हज़ार तनख़्वाह में बग़ैर किसी पेंशन/ pf / अडिशनल सुविधा के पिछले एक साल में इन्होंने हज़ार प्लस पैकेट मुझे डिलीवर किए बग़ैर इसू.
आधार कार्ड आना है. स्पीड पोस्ट से आ रहा है. आठ तारीख़ से पोस्ट ऑफ़िस में पड़ा हुआ है. शिकायत करने पर ऑप्शन यह दिया जाता है कि ठंड बहुत है, खुद जाकर ले लो. ऐसा नहीं कि यह किसी गाँव देहात का क़िस्सा हो, यह क़िस्सा है लखनऊ शहर के बीच एक शहरी कालोनी का. आप सोचिए पचास हज़ार तनख़्वाह, छुट्टियाँ, पेंशन – इन सबके बावजूद यह नहीं कि कम से कम दोपहर में ही बाहर निकल डिलीवरी कर आएँ.
और यह इकलौता क़िस्सा नहीं है. ख़ास बात यह भी है कि अमेजन डिलीवरी boy ने कभी टिप की उम्मीद तक न रखी, यह पोस्ट मैन होली / दीवाली के समय पैकेट लेकर आता है टिप भी लेता है.
सरकारी कर्मी यदि ज़्यादा नहीं जो उनकी डूटी है उसके प्रति ही ईमानदार हो जाएँ तो हम जैसे लोगों की तो तीन चौथाई नाराज़गी समाप्त हो जाए. सरकारी बैंकों के सिस्टम का अब भले मज़ाक़ बनाएँ, पर कर्मियों से विशेष नाराज़गी अब नहीं रहती, क्योंकि नई पीढ़ी के कर्मचारी अपनी क्षमता भर कार्य करते नज़र आते हैं. हमें भी मालूम है यदि यह प्राइवट हुवे तो थोड़े संघर्ष के बाद सेट हो जाएँगे. जिन सरकारी विभागों के कर्मी कार्य करते हैं, उनके प्रति सदैव सद्भावना रहती है. वहीं bsnl, पुलिस, पोस्ट ऑफ़िस आदि कुछ ऐसे विभाग हैं जो अकर्मण्यता के पर्याय बन चुके हैं. इसमें bsnl, पोस्ट ऑफ़िस जैसे विभाग तो अब ज़रूरत भी खो चुके हैं यह प्राइवट करने की जगह बंद कर दिए जाएँ तो भी आम जनता पर विशेष फ़र्क़ न पड़ेगा.

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