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इस घटना से क्या समझे…?

एक कहावत है …
यदि समाज में बदलाव लाना है तो समाज में बने रहना है , यदि सिस्टम में बदलाव लाना है तो सिस्टम में बने रहना बहुत जरूरी है ।
1857 की क्रांति असफल क्यों हुई..?
ये देखने का आपका कोई भी दृष्टिकोण हो सकता है लेकिन मेरा एक और अलग दृष्टिकोण है और वह है कि छोटे छोटे गुटों में बटी अनियंत्रित भीड़ ……
उनमें ब्रिटिश साम्राज्य को लेकर सिर्फ नफरत थी और वो नफरत भीड़ बनकर कूद पड़ी, कुछ क्रांतिकारियों ने गोरी चमड़ी से इतनी नफरत पाल रखी थी कि कुछ जगह छोटे अंग्रेज बच्चों और महिलाओं की हत्या भी उनके द्वारा की गई जो यहां घूमने आए थे….
क्रांतिकारियों की आंखे लाल थी, वास्तव में कोई भी उन्हें निर्देशित नहीं कर पा रहा था क्योंकि क्रांतिकारी किसी झंडे के नीचे खड़े जरूर थे लेकिन बात किसी की नहीं सुन रहे थे।
नफरती नारे थे जैसे “हमने किसी भी म्लेच्छ को जिंदा नहीं छोड़ा”
बाद में कुछ लोगों को लगा कि हमें केंद्रीय नेतृत्व की आवश्यकता है और वो सभी बहादुर शाह जफर के पास पहुँचे तो वो डर गया इस भीड़ को देखकर ।
बहादुर शाह जफर ने अपने कुछ व्यक्तियों को अंग्रेजी हुकूमत के पास भेजा कि क्रांतिकारी आये हैं क्या करूँ…?
बाद में डरते डरते उसने नेतृत्व सम्हाला लेकिन तब भी उसकी कोई सुनने वाला नहीं था फिर अंग्रेजों ने कुछ राजाओं की मदद से आंदोलन को कुचल दिया।
बंगाल , मद्रास में हिन्दू जनता हाथों में मोमबत्ती लिए अंग्रेजों की जीत के लिए प्रार्थना कर रही थी ,
सिख सैनिकों की मदद से किले का दरवाजा तोड़ दिया गया और अंग्रेजों ने पुनः किले पर अपना अधिकार जमा लिया…
1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने कई सुधार किए और उन्होंने निर्णय किया कि हम एक सेफ्टी वॉल्व की रचना करते हैं जिससे हम ऐसे बड़े आंदोलनों को रोक सके हालांकि कई अंग्रेज अफसरों ने सेफ्टी वॉल्व बनाने की निंदा की और कहा , यह कदम हमारे लिए विनाशकारी साबित हो सकता है , कहीं उल्टा न पड़ जाए…..
वह सेफ्टी वॉल्व ह्यूम द्वारा कांग्रेस की स्थापना करना था..!
भारतीयों के पास न माइक था , न स्टेज
पर अंग्रेजों ने अपने फायदे के लिए भारतीयों को माइक भी दिया और स्टेज भी..!
भारतीयों का बुद्धिजीवी वर्ग कांग्रेस से जुड़ गया और सिस्टम में जुड़ कर सिस्टम को अपने अनुकूल बनाने में लग गया।
सोचिये कैसे सिस्टम में रहकर जनता के अंदर जागरण पैदा करना है उसके लिए किस हद तक भारतीयों ने समझौता किया,
अपनी कविता के माध्यम से जनता को जागरूक करने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र भी विक्टोरिया की प्रशंसा में पंक्ति लिखते हैं कि…
” पूरी अमी कि कटोरिया सी जियो सदा विक्टोरिया रानी”
कांग्रेस में शामिल लोगों की कई भारतीय लोग तीखी आलोचना करते हुए कहते हैं कि कांग्रेस के लोग सत्ता के भूंखे हैं…..
मगर इतने व्यंग के बाद भी कांग्रेस में शामिल लोग जुड़े रहे अंग्रेजों से। अभी तक कोई भी बहुत बड़ी भीड़ इकट्ठा नहीं कर पा रहा था।
जब गांधी भारत आये तो गोपाल कृष्ण गोखले ने उन्हें सम्पूर्ण भारत का भ्रमण करने को कहा और कई लोग गांधी के बारे में गांव गांव जाकर झूठी बातें फैलाने लगे….
जैसे कि गांधी में दिव्य शक्ति है, बहुत ही चमत्कारित व्यक्ति हैं ऐसे न जानी कितनी बातें फैलाई गई..! बहुत सारी जनता गांधी को देखने नहीं आती थी बल्कि चमत्कार देखने आती थी….
जो लोग गांधी से असहमत रहते थे वो लोग भी गांधी को ब्रांड बना रहे थे,
एक कम्युनिष्ट नेता कहते हैं भले ही हमारे विचार गांधी से न मिलते हैं लेकिन हमें गांधी के तख्त का पावा बनना पड़ेगा।
यही कारण है कि भीड़ बहुत ज्यादा आ गयी , ये पहली बार हुआ था कि किसी भारतीय को लेकर देश की जनता इतनी उत्साहित थी।
नरेटिव खड़ा किया जा चुका था,
लोग गांधी के आंदोलनों में आते लेकिन जब असहमत होते तो एक नया रास्ता बनाते इससे यह हुआ कि सोये हुए जाग रहे थे और दो दलों में विभक्त हो रहे थे , दो दल अर्थात गरम और नरम दल,
बंगाल में जरूरी था कि सुभाष चंद्र बोस जैसे लोग जन्में क्योंकि बंगाली काले अंग्रेज बनते जा रहे थे। सुभाष बाबू की सहमति गांधी से थी या नहीं थी यह मायने नहीं रखता मगर सुभाष बाबू एक्टिव थे और दिशात्मक थे यह मायने रखता है।
अंग्रेजों की मूल समस्या थी जनता में जनजागरण का फैलना और वो फैल चुका था…!
गांधी पैदा नहीं होते बल्कि गोपाल कृष्ण गोखले जैसे कई नेताओं के दूरदर्शी सोच से बनाये जाते हैं । नरेटिव पैदा नहीं होते बल्कि उन्हें निरंतर प्रयास से बनाया जाता है…!
जरूरी है सिस्टम में बने रहना और उसके लिए जरूरी है अपनी बात इस हिसाब से कहना कि जनता के पास संदेश भी पहुंच जाए और आप सिस्टम को मात भी दे दो..!
जोश में आकर बहुत कुछ बोल देना वीरता नहीं है ।
अब बताईये आप जेल में हो, आपकी जरूरत यहां है मगर आपने यह ख्याल नहीं रखा कि सिस्टम कैसा है…?
अब इससे संदेश क्या गया कि एक बन्दा हिन्दू बना और उसे लोग बचा भी नहीं पाए.

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