एक सच्चा इतिहास विद्यार्थी और शोधकर्ता न्यायाधीश की तरह तथ्यों के प्रति निर्मम होता है और वही बाबा साहेब ने किया।
‘भारत का विभाजन’ में जहाँ उन्होंने मु स्लिमों के राष्ट्र्घाती व देशद्रोही चरित्र को रेखांकित किया वहीं उन्होंने ‘शूद्र कौन थे’ में शूद्रों के पतन के लिये उनके द्वारा ब्राह्मणों पर किये अत्याचारों को जिम्मेदार ठहराया।
बाबा साहेब को जानना हो तो उनको पढ़ना बहुत जरुरी है ।आजकल के शोहदे जो अपने आपको उनका समर्थक कहतें है और जयभीम जय मीम करते हैं उनमें से भी किसी ने बाबा साहेब को सही से नही पढ़ा । कुछ जगहों पर अगर बाबा साहेब की कही बात आपको समझ नहीं आती तो ये आपका दोष है क्योंकि आडम्बर और झूठ पर उन्होने कड़ा प्रहार किया है । फिर भी ज्ञानी जनों के लिए कुछ बातें मै नीचे लिख रहा हूँ उसको पढ़े और समझे उनके विचारों को ।![👇](https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/t4f/1/16/1f447.png)
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1. मैं यह स्वीकार करता हूँ कि कुछ बातों को लेकर सवर्ण हिन्दुओं के साथ मेरा विवाद है, परन्तु मैं आपके समक्ष यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। – (राष्ट्र पुरुष बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर, कृष्ण गोपाल एवं श्री प्रकाश, फरवरी 1940, पृष्ठ 50)
2. शुद्र राजाओं और ब्राह्मणों में बराबर झगड़ा रहा जिसके कारण ब्राह्मणों पर बहुत अत्याचार हुआ। शूद्रों के अत्याचारों के कारण ब्राह्मण लोग उनसे घृणा करने लगे और उनका उपनयन (जनेऊ) करना बंद कर दिया। उपनयन न होने के कारण उनका पतन हुआ। (डॉ अम्बेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज,खण्ड 13, पृष्ठ 3)
3. आर्यों के मूलस्थान (भारत के बाहर) का सिद्धांत वैदिक सहित्य से मेल नहीं खाता। वेदों में गंगा, यमुना, सरस्वती के प्रति आत्मीय भाव है। कोई विदेशी इस तरह नदियों के प्रति आत्मस्नेह सम्बोधन नहीं कर सकता। (डॉ अम्बेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज,खण्ड 7, पृष्ठ 70 )
4. हिन्दू समाज ने अपने धर्म से बाहर जाने के मार्ग तो खुला रखा है, किन्तु बाहर से अंदर आने का मार्ग बंद किया हुआ है। यह स्थिति पानी की उस टंकी के समान है जिसमें पानी के अंदर आने का मार्ग बंद किया हुआ है। किन्तु निकास की टोटीं सैदेव खुली है। अंत: हिन्दू समाज को आने वाले अनर्थ से बचाने के लिए इस व्यवस्था में परिवर्तन होना आवश्यक है। (बाबा साहेब बांची भाषणे- खण्ड 5, पृष्ठ 16)
क्या हृदय में जातिवाद का ज़हर घोले लोगों से इतनी वैचारिक सत्यनिष्ठा की आशा भी की जा सकती है ? चाहे वे पेरियारवादी वामसेफ के लोग हों या करपात्री के चरबीगोला एंड कम्पनी के घृणित जन्मनाजातिगतश्रेष्ठतावादी चेले हों।